11 Mukhya Upanishad in Hindi: परिचय, विषय-वस्तु और प्रसिद्ध महावाक्य (Complete Guide)

Sooraj Krishna Shastri
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 11 मुख्य उपनिषदों (Major Upanishads) का सरल परिचय, विषय-वस्तु, काल-क्रम और प्रसिद्ध महावाक्यों (Mahavakyas) के बारे में विस्तार से जानें। ईश, केन, कठ और मांडूक्य उपनिषद का हिंदी सार।
 इस लेख में 11 मुख्य उपनिषदों का विस्तृत और प्रमाणिक अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। इसमें उपनिषदों का परिचय, उनकी काल-गणना (Chronology), रचना-काल (800 ई.पू. से 200 ई.पू.), गद्य-पद्य विकास, तथा उनके ऐतिहासिक और दार्शनिक महत्व का क्रमबद्ध विश्लेषण किया गया है। बृहदारण्यक, छान्दोग्य, तैत्तरीय, ऐतरेय, कठ, केन, ईश, मुण्डक, प्रश्न, माण्डूक्य और श्वेताश्वतर उपनिषदों को चार ऐतिहासिक चरणों में समझाया गया है। साथ ही यह भी बताया गया है कि उपनिषदों ने किस प्रकार कर्मकांड से ज्ञानकांड की ओर भारतीय चिंतन को मोड़ा, बौद्ध-जैन परंपरा को प्रभावित किया और वेदांत, योग तथा भक्ति परंपरा की नींव रखी। यह लेख विद्यार्थियों, शोधार्थियों, NET/JRF अभ्यर्थियों और भारतीय दर्शन में रुचि रखने वाले पाठकों के लिए अत्यंत उपयोगी है।

11 Mukhya Upanishad in Hindi: परिचय, विषय-वस्तु और प्रसिद्ध महावाक्य (Complete Guide)

11 Mukhya Upanishad in Hindi: परिचय, विषय-वस्तु और प्रसिद्ध महावाक्य (Complete Guide)
11 Mukhya Upanishad in Hindi: परिचय, विषय-वस्तु और प्रसिद्ध महावाक्य (Complete Guide)


मुख्य उपनिषद: परिचय, विषय-वस्तु एवं प्रसिद्ध वाक्य

सामान्य परिचय:

'उपनिषद' शब्द का अर्थ है- 'निकट बैठना' (उप + नि + षद्), अर्थात वह ब्रह्मज्ञान जो शिष्य, गुरु के निकट बैठकर प्राप्त करता है। चूँकि ये वेदों के अंतिम भाग हैं, इसलिए इन्हें 'वेदान्त' भी कहा जाता है। आदि गुरु शंकराचार्य ने 10 उपनिषदों पर भाष्य लिखा है, जिन्हें 'मुख्य' माना जाता है। श्वेताश्वतरोपनिषद् को 11वें स्थान पर रखा जाता है।


उपनिषदों की काल-गणना (Chronology) और उनके ऐतिहासिक महत्व को लेकर विद्वानों में मतभेद है, क्योंकि भारतीय ज्ञान परंपरा श्रुति (सुनी गई) रही है। फिर भी, भाषा शैली (गद्य/पद्य) और विचारों के विकास के आधार पर विद्वानों ने इनका एक सर्वमान्य क्रम निर्धारित किया है।

यहाँ मुख्य उपनिषदों की काल-गणना और उनके ऐतिहासिक महत्व का विवरण दिया गया है:


1. मुख्य उपनिषदों का काल-क्रम (Chronology)

उपनिषदों की रचना का मुख्य समय 800 ई.पू. से लेकर 200 ई.पू. (BCE) के बीच माना जाता है। इसे चार चरणों में समझा जा सकता है:


प्रथम चरण: प्राचीनतम गद्य उपनिषद (लगभग 800 - 700 ई.पू.)

ये सबसे पुराने हैं और वेदों की ब्राह्मण शैली (गद्य/Prose) में लिखे गए हैं। ये बुद्ध के जन्म से पहले के माने जाते हैं।

    1. बृहदारण्यकोपनिषद् (सबसे प्राचीन माना जाता है)
    1. छान्दोग्योपनिषद्

द्वितीय चरण: प्राचीन गद्य उपनिषद (लगभग 700 - 600 ई.पू.)

इनकी भाषा थोड़ी सरल हुई, लेकिन शैली गद्य ही रही।

    1. तैत्तरीयोपनिषद्
    1. ऐतरेयोपनिषद्

तृतीय चरण: पद्य (काव्यात्मक) उपनिषद (लगभग 600 - 400 ई.पू.)

इस समय उपनिषद कविता (Verse/Shloka) के रूप में लिखे जाने लगे। यह समय संभवतः भगवान बुद्ध और महावीर के समकालीन या तुरंत बाद का है।

    1. केनोपनिषद् (गद्य से पद्य में संक्रमण)
    1. कठोपनिषद्
    1. ईशावास्योपनिषद्
    1. मुण्डकोपनिषद्
    1. श्वेताश्वतरोपनिषद्

चतुर्थ चरण: परवर्ती गद्य उपनिषद (लगभग 400 - 200 ई.पू.)

ये बाद के हैं और इनकी रचना शैली अधिक व्यवस्थित और दार्शनिक है।

    1. प्रश्नोपनिषद्
    1. माण्डूक्योपनिषद् (सबसे नवीन और संक्षिप्त)

2. उपनिषदों का ऐतिहासिक महत्व (Historical Significance)

उपनिषदों ने भारतीय चिंतन धारा को पूरी तरह बदल दिया। इनका महत्व निम्नलिखित बिंदुओं से समझा जा सकता है:


1. कर्मकांड से ज्ञानकांड की ओर बदलाव:

वेदों के प्रारंभिक भाग (संहिता/ब्राह्मण) में यज्ञ, बलि और कर्मकांड की प्रधानता थी। उपनिषदों ने पहली बार यह क्रांति की कि—मुक्ति यज्ञों से नहीं, बल्कि आत्मज्ञान से मिलेगी। इन्होंने बाहरी देवताओं (इंद्र, वरुण) के बजाय आंतरिक ईश्वर (आत्मा/ब्रह्म) पर जोर दिया।


2. बौद्ध और जैन धर्म पर प्रभाव:

उपनिषदों का काल 800-500 ई.पू. का है, जो बुद्ध और महावीर के उदय की पृष्ठभूमि तैयार करता है। कर्म, पुनर्जन्म, मोक्ष और अहिंसा (आत्मवत सर्वभूतेषु) के जो बीज उपनिषदों में थे, उन्हीं का विस्तार नास्तिक दर्शनों (बौद्ध/जैन) में अलग रूप में हुआ।


3. भारतीय दर्शन (षड्दर्शन) का आधार:

भारत के छह आस्तिक दर्शन (विशेषकर सांख्य, योग और वेदांत) पूरी तरह उपनिषदों पर आधारित हैं। आदि शंकराचार्य, रामानुजाचार्य और स्वामी विवेकानंद तक ने अपने सिद्धांतों के लिए उपनिषदों को ही प्रमाण माना है।


4. समन्वयवादी संस्कृति:

विशेषकर श्वेताश्वतरोपनिषद् जैसे ग्रंथों ने भक्ति, योग और ज्ञान का समन्वय किया। इसने बाद में गीता और भक्ति आंदोलन के लिए आधार तैयार किया।


5. विश्वव्यापी प्रभाव:

  • 17वीं शताब्दी में मुगल राजकुमार दारा शिकोह ने 50 उपनिषदों का फारसी अनुवाद 'सिर्र-ए-अकबर' (महान रहस्य) नाम से करवाया। इसी के माध्यम से यह ज्ञान यूरोप पहुँचा।
  • जर्मन दार्शनिक शोपेनहावर (Schopenhauer) ने उपनिषदों के लैटिन अनुवाद को पढ़कर कहा था: "यह मेरे जीवन का सांत्वना रहा है और मेरी मृत्यु का भी सांत्वना रहेगा।"

निष्कर्ष:

ऐतिहासिक रूप से, उपनिषद वह पुल (Bridge) हैं जो प्राचीन वैदिक कर्मकांड को बाद के विकसित दार्शनिक और भक्ति आंदोलनों से जोड़ते हैं।


11 मुख्य उपनिषद (Major Upanishads)

यहाँ 11 मुख्य उपनिषदों का विस्तृत विवरण दिया गया है:

  1. ईशावास्योपनिषद् (ईशोपनिषद्)

  • वेद: शुक्ल यजुर्वेद
  • संरचना: 18 मंत्र (अत्यंत संक्षिप्त)।
  • विषय-वस्तु: यह उपनिषद कर्म और ज्ञान के बीच समन्वय सिखाता है। यह जीवन को त्यागपूर्वक भोगने और कर्म करते हुए 100 वर्षों तक जीने का संदेश देता है।
  • प्रसिद्ध वाक्य:
    • "ईशावास्यमिदं सर्वं" (यह संपूर्ण जगत ईश्वर से व्याप्त है।)
    • "तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा" (त्याग पूर्वक भोग करो, लालच मत करो।)

  1. केनोपनिषद्

  • वेद: सामवेद
  • संरचना: 4 खण्ड।
  • विषय-वस्तु: इसका नाम 'केन' (किसके द्वारा) प्रश्न से शुरू होता है। इसमें बताया गया है कि मन, प्राण और इन्द्रियां उस 'ब्रह्म' की शक्ति से ही कार्य करती हैं। इसमें देवताओं के अहंकार टूटने और यक्ष-उमा हैमवती का आख्यान है।
  • प्रसिद्ध वाक्य:
    • यहाँ कोई एक विशिष्ट लोकप्रिय नारा नहीं है, परन्तु इसका मुख्य भाव यह है: "जो मानता है कि वह ब्रह्म को जानता है, वह नहीं जानता; और जो मानता है कि वह नहीं जानता, वह शायद जानता है।"

  1. कठोपनिषद्

  • वेद: कृष्ण यजुर्वेद
  • संरचना: 2 अध्याय (कुल 6 वल्लियाँ)।
  • विषय-वस्तु: बालक नचिकेता और यमराज का प्रसिद्ध संवाद। इसमें आत्मा के स्वरूप, मृत्यु के रहस्य और 'श्रेय' (कल्याण) व 'प्रेय' (भोग) मार्ग का अंतर बताया गया है। इसमें शरीर को रथ और आत्मा को रथी बताया गया है।
  • प्रसिद्ध वाक्य:
    • "उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत" (उठो, जागो और श्रेष्ठ महापुरुषों के सानिध्य में ज्ञान प्राप्त करो।)

  1. प्रश्नोपनिषद्

  • वेद: अथर्ववेद
  • संरचना: 6 प्रश्न (अध्याय)।
  • विषय-वस्तु: इसमें सुकेशा आदि छह ऋषिकुमार महर्षि पिप्पलाद से अध्यात्म विषयक छह प्रश्न पूछते हैं। ये प्रश्न प्राण, प्रजा की उत्पत्ति, स्वप्न, सुष्मना नाड़ी और 'ओम' की उपासना से सम्बंधित हैं।

  1. मुण्डकोपनिषद्

  • वेद: अथर्ववेद
  • संरचना: 3 मुण्डक (प्रत्येक में 2 खण्ड)।
  • विषय-वस्तु: इसमें 'परा विद्या' (ब्रह्म ज्ञान) और 'अपरा विद्या' (सांसारिक ज्ञान) का भेद है। एक ही वृक्ष पर बैठे दो पक्षियों (जीवात्मा और परमात्मा) का दृष्टांत इसी में है।
  • प्रसिद्ध वाक्य:
    • "सत्यमेव जयते नानृतं" (सत्य की ही जीत होती है, झूठ की नहीं।) — भारत का राष्ट्रीय आदर्श वाक्य।

  1. माण्डूक्योपनिषद्

  • वेद: अथर्ववेद
  • संरचना: केवल 12 मंत्र (सबसे छोटा उपनिषद)।
  • विषय-वस्तु: यह पूरी तरह 'ॐ' (ओंकार) की व्याख्या पर केंद्रित है। इसमें चेतना की चार अवस्थाएं बताई गई हैं: जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति और तुरीय।
  • प्रसिद्ध वाक्य (महावाक्य):
    • "अयम् आत्मा ब्रह्म" (यह आत्मा ही ब्रह्म है।)

  1. तैत्तरीयोपनिषद्

  • वेद: कृष्ण यजुर्वेद
  • संरचना: 3 वल्लियाँ (शिक्षा, ब्रह्मानंद, भृगु)।
  • विषय-वस्तु: इसमें 'पंचकोश विवेक' (अन्नमय से आनंदमय कोश तक) और गुरुकुल का दीक्षांत भाषण (Convocation Address) है।
  • प्रसिद्ध वाक्य:
    • "सत्यं वद, धर्मं चर" (सत्य बोलो, धर्म का आचरण करो।)
    • "मातृदेवो भव, पितृदेवो भव, आचार्यदेवो भव, अतिथिदेवो भव।"

  1. ऐतरेयोपनिषद्

  • वेद: ऋग्वेद
  • संरचना: 3 अध्याय।
  • विषय-वस्तु: इसमें सृष्टि की उत्पत्ति और गर्भ में वामदेव ऋषि के ज्ञान प्राप्त करने का वर्णन है।
  • प्रसिद्ध वाक्य (महावाक्य):
    • "प्रज्ञानं ब्रह्म" (शुद्ध चेतना/ज्ञान ही ब्रह्म है।)

  1. छान्दोग्योपनिषद्

  • वेद: सामवेद
  • संरचना: 8 अध्याय (सबसे पुराने और बड़ों में से एक)।
  • विषय-वस्तु: उद्गीथ (ॐ) उपासना, शाण्डिल्य विद्या और उद्दालक-श्वेतकेतु संवाद।
  • प्रसिद्ध वाक्य:
    • "तत्त्वमसि" (महावाक्य) — (वह ब्रह्म तुम ही हो।)
    • "सर्वं खल्विदं ब्रह्म" (यह सब कुछ ब्रह्म ही है।)
    • "एकमेवाद्वितीयम्" (वह एक ही है, दूसरा नहीं।)

  1. बृहदारण्यकोपनिषद्

  • वेद: शुक्ल यजुर्वेद
  • संरचना: 6 अध्याय (सबसे विशाल उपनिषद)।
  • विषय-वस्तु: याज्ञवल्क्य-मैत्रेयी संवाद और याज्ञवल्क्य-गार्गी शास्त्रार्थ। ब्रह्म का वर्णन "नेति नेति" (यह नहीं, यह नहीं) द्वारा।
  • प्रसिद्ध वाक्य:
    • "अहं ब्रह्मास्मि" (महावाक्य) — (मैं ही ब्रह्म हूँ।)
    • "असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मा अमृतं गमय।" (मुझे असत्य से सत्य, अंधकार से प्रकाश और मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो।)

  1. श्वेताश्वतरोपनिषद्

  • वेद: कृष्ण यजुर्वेद
  • संरचना: 6 अध्याय।
  • विषय-वस्तु: भक्ति, सांख्य और योग का समन्वय। इसमें 'रुद्र' (शिव) को परब्रह्म माना गया है और माया व प्रकृति की चर्चा की गई है।
  • प्रसिद्ध वाक्य:
    • "न तस्य प्रतिमा अस्ति" (उस परमात्मा की कोई प्रतिमा या आकार नहीं है।)

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