संस्कृत श्लोक “यस्माच्च येन च यथा च यदा च यच्च…” कर्म–सिद्धान्त का अत्यन्त सूक्ष्म और वैज्ञानिक विवेचन करता है। यह श्लोक स्पष्ट करता है कि मनुष्य द्वारा किया गया प्रत्येक शुभ या अशुभ कर्म—जिस कारण से, जिस साधन से, जिस प्रकार, जिस समय, जिस स्थान पर और जितनी मात्रा में किया गया हो—वही कर्म उसी कारण, उसी विधि, उसी समय, उसी स्थान और उसी सीमा तक प्रारब्ध (Prarabdha Karma) के रूप में उसे प्राप्त होता है।
यह लेख इस श्लोक का शब्दार्थ, व्याकरणात्मक विश्लेषण, भावार्थ, आधुनिक जीवन में प्रासंगिकता, मनोविज्ञान-न्याय-नेतृत्व में कर्मफल सिद्धान्त, संवादात्मक नीति-कथा और निष्कर्ष सहित विस्तृत विवेचन प्रस्तुत करता है।
यदि आप Law of Karma, Karma and Destiny, Indian Philosophy of Action, Sanskrit Shloka Meaning in Hindi, या Life Lessons from Karma Theory जैसे विषयों में रुचि रखते हैं, तो यह लेख आपके लिए अत्यंत उपयोगी और मार्गदर्शक सिद्ध होगा।
कर्म जैसा फल वैसा | Law of Karma Explained – Sanskrit Shloka on Prarabdha
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| कर्म जैसा फल वैसा | Law of Karma Explained – Sanskrit Shloka on Prarabdha |
1️⃣ मूल श्लोक (संस्कृत)
2️⃣ English Transliteration (IAST)
3️⃣ शुद्ध हिन्दी अनुवाद
4️⃣ शब्दार्थ (Padārtha)
| शब्द | अर्थ |
|---|---|
| यस्मात् | जिस कारण से |
| येन | जिस साधन द्वारा |
| यथा | जिस प्रकार |
| यदा | जिस समय |
| यत् | जो |
| यावत् | जितनी मात्रा |
| यत्र | जिस स्थान पर |
| शुभाशुभम् | शुभ और अशुभ |
| आत्मकर्म | स्वयं द्वारा किया गया कर्म |
| तस्मात् | उसी कारण से |
| तेन | उसी साधन से |
| तथा | उसी प्रकार |
| तदा | उसी समय |
| तत् | वही |
| तावत् | उतनी ही मात्रा |
| तत्र | उसी स्थान पर |
| विधातृवशात् | विधाता/प्रारब्ध के अधीन |
| उपैति | प्राप्त होता है |
5️⃣ व्याकरणात्मक विश्लेषण (Grammatical Analysis)
- यस्मात्, येन, यथा, यदा, यत्र – सम्बन्धसूचक सर्वनाम, सप्तमी/तृतीया/अव्यय प्रयोग
- शुभाशुभम् – द्वन्द्व समास, नपुंसकलिङ्ग
- आत्मकर्म – तत्पुरुष समास (स्वकृत कर्म)
- विधातृवशात् – षष्ठी तत्पुरुष समास
- उपैति – लट् लकार, परस्मैपद, प्रथम पुरुष, एकवचन
➡️ यह श्लोक य–त (Relative–Correlative) शैली का उत्कृष्ट उदाहरण है, जिससे कर्म–फल की पूर्ण समरूपता (Exact Correspondence) स्थापित होती है।
6️⃣ भावार्थ एवं तात्त्विक विवेचन
यह श्लोक कर्म-सिद्धान्त का अत्यन्त सूक्ष्म और वैज्ञानिक निरूपण करता है—
- कर्म का फल अनिश्चित या अन्यायपूर्ण नहीं है।
- कर्म और फल के बीच कारण–कार्य की पूर्ण समानता होती है।
- केवल क्या किया नहीं, बल्कि
- क्यों किया
- कैसे किया
- कब किया
- कहाँ किया
- कितना किया—इन सभी का फल पर प्रभाव पड़ता है।
अतः—
भाग्य कोई अलग सत्ता नहीं, कर्म का परिपक्व रूप ही प्रारब्ध है।
7️⃣ आधुनिक सन्दर्भ (Contemporary Relevance)
🔹 व्यक्तिगत जीवन
ईमानदारी, परिश्रम और संवेदना से किए गए कर्म देर-सवेर उसी रूप में लौटते हैं।
🔹 समाज और न्याय
अन्याय, शोषण और अहंकार के कर्म समय आने पर उसी तीव्रता से प्रत्यावर्तित होते हैं।
🔹 मनोविज्ञान और व्यवहार
🔹 प्रशासन और नेतृत्व
नीतिगत निर्णयों का फल भी नीति के अनुरूप ही समाज को मिलता है।
8️⃣ संवादात्मक नीति-कथा (Didactic Dialogue)
9️⃣ नीति-सूत्र (Key Takeaway)
कर्म केवल लौटता नहीं,उसी रूप, उसी मात्रा और उसी समय में प्रत्यावर्तित होता है।

