संस्कृत नीति श्लोक द्वारा जानिए कैसे किसी वस्तु का गुण उसके संग से प्रकट होता है। Association defines utility – modern life lesson explained.
यह नीति श्लोक बताता है कि वस्तु नहीं, संग उसके गुण को प्रकट करता है। डॉक्टर, नाई और हत्यारे के हाथ में चाकू का अर्थ समझिए।
Keṣāñcid api vastūnāṃ |Association Defines Utility | नीति श्लोक से जीवन-दर्शन
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| Keṣāñcid api vastūnāṃ|Association Defines Utility | नीति श्लोक से जीवन-दर्शन |
📜 मूल श्लोक (संस्कृत)
केषाञ्चिदपि वस्तुनां गम्यते सङ्गिना गुणः ।
वैद्यनापितहन्तॄणां हस्तेषु क्षुरिका यथा ॥
🔤 English Transliteration (IAST)
Keṣāñcid api vastūnāṃ gamyate saṅginā guṇaḥ |
Vaidya-nāpita-hantṝṇāṃ hasteṣu kṣurikā yathā ||
🌼 हिन्दी अनुवाद
कुछ वस्तुओं का गुण (उपयोग या प्रभाव) उनके संबंध (संग) से ही जाना जाता है।
जिस प्रकार चाकू डॉक्टर, नाई और हत्यारे—तीनों के हाथ में होता है,
परंतु उसका उपयोग हाथ बदलते ही भिन्न-भिन्न हो जाता है।
🧩 शब्दार्थ (Word Meaning)
| शब्द | अर्थ |
|---|---|
| केषाञ्चिदपि | कुछ-कुछ |
| वस्तुनाम् | वस्तुओं का |
| गम्यते | जाना जाता है / समझा जाता है |
| सङ्गिना | संग से / संबंध से |
| गुणः | गुण, प्रभाव, उपयोग |
| वैद्य | चिकित्सक |
| नापित | नाई |
| हन्तॄणाम् | हत्यारों के |
| हस्तेषु | हाथों में |
| क्षुरिका | चाकू / उस्तरा |
| यथा | जैसे |
📐 व्याकरणात्मक विश्लेषण
- केषाञ्चिदपि — षष्ठी बहुवचन (कुछ-कुछ का)
- वस्तुनाम् — षष्ठी बहुवचन (वस्तुओं का)
- गम्यते — लट् लकार, कर्मणि प्रयोग (जाना जाता है)
- सङ्गिना — तृतीया एकवचन (संग के द्वारा)
- गुणः — प्रथमा एकवचन (गुण/प्रभाव)
- वैद्य-नापित-हन्तॄणाम् — षष्ठी बहुवचन (समासयुक्त)
- हस्तेषु — सप्तमी बहुवचन (हाथों में)
- क्षुरिका — प्रथमा एकवचन
- यथा — उपमा सूचक अव्यय
👉 विशेष: यहाँ कर्मणि प्रयोग और दृष्टान्त अलंकार का सुंदर प्रयोग है।
🌍 आधुनिक सन्दर्भ (Modern Context)
-
तकनीक (Technology):वही मोबाइल —📖 छात्र के हाथ में शिक्षा का साधन🎮 बच्चे के हाथ में मनोरंजन❌ अपराधी के हाथ में अपराध का उपकरण
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ज्ञान (Knowledge):ज्ञान स्वयं तटस्थ है — उसका उपयोग चरित्र तय करता है।
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शक्ति और पद:सत्ता का गुण व्यक्ति की नैतिकता से प्रकट होता है, न कि सत्ता से।
👉 निष्कर्ष यह कि वस्तु नहीं, व्यक्ति निर्णायक है।
🗣️ संवादात्मक नीति-कथा
शिष्य: गुरुदेव! क्या वस्तुएँ अच्छी या बुरी होती हैं?
गुरु: नहीं वत्स, वस्तुएँ तो मौन होती हैं।
शिष्य: फिर दोष किसका?
गुरु: हाथों का नहीं, हृदय का।
उसी चाकू से कोई जीवन बचाता है, कोई जीवन हरता है।
इसलिए शास्त्र कहते हैं —
“संग से गुण प्रकट होता है।”
🪔 नीति-सार / निष्कर्ष
- वस्तु का मूल्य उसके संग और उद्देश्य से तय होता है।
- साधन निर्दोष होते हैं; दोष या गुण प्रयोक्ता का होता है।
- इसलिए जीवन में संग-चयन सबसे बड़ी साधना है।
सत्संग से साधन साध्य बनते हैं,कुसंग से वही साधन विनाशक हो जाते हैं।
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