यह संस्कृत नीति श्लोक “अस्ति जलं जलराशौ…” जीवन का एक अत्यंत व्यावहारिक और सार्वकालिक सत्य प्रकट करता है—Quantity से अधिक Quality का महत्व। श्लोक बताता है कि यदि किसी विशाल जलाशय का जल खारा होने के कारण पीने योग्य न हो, तो उसकी विशालता व्यर्थ है। इसके विपरीत, एक छोटा-सा कुआँ भी श्रेष्ठ है, जहाँ से मनुष्य आकण्ठ शुद्ध जल पी सकता है।
यह लेख इस श्लोक का शब्दार्थ, व्याकरणात्मक विश्लेषण, भावार्थ, आधुनिक जीवन में प्रासंगिकता, शिक्षा-नेतृत्व-समाज-डिजिटल युग में उपयोग, संवादात्मक नीति कथा तथा निष्कर्ष सहित विस्तृत विवेचन प्रस्तुत करता है।
यदि आप Sanskrit Niti Shlokas, Quality Over Quantity Quotes, Life Lessons from Sanskrit, Indian Moral Philosophy, या Value-Based Living जैसे विषयों में रुचि रखते हैं, तो यह लेख आपके लिए अत्यंत उपयोगी और प्रेरणादायक सिद्ध होगा।
लघुरपि वरं स कूपः | Small but Useful in Life – Sanskrit Niti
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| लघुरपि वरं स कूपः | Small but Useful in Life – Sanskrit Niti |
1️⃣ मूल श्लोक (संस्कृत)
2️⃣ English Transliteration (IAST)
3️⃣ शुद्ध हिन्दी अनुवाद
4️⃣ शब्दार्थ (Padārtha)
| शब्द | अर्थ |
|---|---|
| अस्ति | है |
| जलम् | पानी |
| जलराशौ | जलाशय/समुद्र में |
| क्षारम् | खारा |
| तत् | वह |
| किम् | क्या |
| विधीयते | उपयोग/कार्य करता है |
| तेन | उससे |
| लघुः अपि | छोटा भी |
| वरम् | श्रेष्ठ |
| सः कूपः | वह कुआँ |
| यत्र | जहाँ |
| आकण्ठम् | भरपेट |
| जनः | मनुष्य |
| पिबति | पीता है |
5️⃣ व्याकरणात्मक विश्लेषण (Grammatical Analysis)
- अस्ति – लट् लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन (क्रिया)
- जलम् – नपुंसकलिङ्ग, प्रथमा/द्वितीया एकवचन
- जलराशौ – पुंलिङ्ग, सप्तमी विभक्ति, एकवचन
- क्षारम् – नपुंसकलिङ्ग, विशेषण
- विधीयते – लट् लकार, कर्मणि प्रयोग
- लघुः अपि – विशेषण + अव्यय (even if small)
- कूपः – पुंलिङ्ग, प्रथमा एकवचन
- आकण्ठम् – अव्ययीभाव, मात्रा सूचक
- पिबति – लट् लकार, प्रथम पुरुष एकवचन
➡️ श्लोक में दृष्टान्त-अलंकार तथा गुणात्मक मूल्यांकन (Quality over Quantity) का स्पष्ट प्रयोग है।
6️⃣ भावार्थ एवं तात्त्विक विवेचन
यह श्लोक सिखाता है कि—
- मात्रा (Quantity) से अधिक महत्त्व गुण (Quality) का है।
- विशालता, प्रसिद्धि या बाह्य वैभव तभी सार्थक है जब वह उपयोगी और हितकारी हो।
- जो वस्तु उपयोग में न आए, वह चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हो—निरर्थक है।
- वहीं छोटा किंतु उपयोगी साधन जीवनदायी सिद्ध होता है।
यह सिद्धान्त केवल भौतिक संसाधनों तक सीमित नहीं, बल्कि—
ज्ञान, संबंध, संस्था, नेतृत्व और जीवन-मूल्यों पर भी समान रूप से लागू होता है।
7️⃣ आधुनिक सन्दर्भ (Contemporary Relevance)
🔹 शिक्षा में
🔹 समाज और नेतृत्व में
🔹 डिजिटल युग में
8️⃣ संवादात्मक नीति-कथा (Didactic Dialogue)
9️⃣ नीति-सूत्र (Key Takeaway)
बड़ा होना नहीं,उपयोगी होना श्रेष्ठता का मापदण्ड है।
🔟 निष्कर्ष
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