नयी कविता: मानवता के अभि'राम'

Sooraj Krishna Shastri
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 मानवता के अभि'राम'


मेरा आपसे प्रश्न है 

क्या आपको पता है 

क्या आप जानते हो 

आ'राम' और वि'राम' को

जो दीवाली लाती है 

Image of deepawali
Image of deepawali 


व्यस्तता भरे जीवन में 

अपनों से बहुत दूर हुए

बातों के बीच बढे विराम को

साथ लेकर आई दीवाली 

कह रही आ'राम' को


इस मशीनी युग में 

इंसान के बदलते व्यवहार से

मीडिया सोशल हो गया 

छोड़ एकांत के प्रभाव को


हर पल, हर घड़ी 

ऑनलाइन वियोग का डर है

नई पीढ़ी के भटकाव में 

घर, परिवार, समाज से 

अलगाव में दूरी और एकांत है 

सोशल मीडिया प्लेटफार्म से 

चिपकू रहने की आदत में 

डिजिटल अरेस्ट होने से 

कट रहे वनवास को 


अब खत्म करके 

क्या सुन पा रहे हो 

कोई इंतजार में बैठा है 

महीनों, वर्षों से सोच रहा है 

आंखों की राह में 

आंखों को समझाना होगा 

मुरझाती मुस्कान के लिए 

अब कहना होगा 

दीवाली ला रही है 

खुशियों भरे आ'राम' को


माता - पिता, भाई, बहन 

दोस्त, आस पड़ोस की दस्तक में 

दूर देश की बात से

जो गहरी चुप्पी छा गई है 

उनकी खामोशी चीख रही है 

क्या मुझे सुन पा रहे हो 

दीवाली की आहट में 

अगर मुमकिन है तो 

थोड़ा झांककर देखो 

खुशियों के लगे वनवास से

बुला रहे आ 'राम' को

दीवाली अब ला रही है 

नाचते गाते धूम मचाते

खुशियों की सौगात को

हम भी तो कह रहे है  

मन बसे अभि'राम' से 

अब छोड़ भी दो वनवास को ।।


------ शिव

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