संस्कृत श्लोक: "स्वभावं न जहात्येव साधुरापद्गतोऽपि सन्" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद
🙏 जय श्री राम 🌷सुप्रभातम् 🙏
प्रस्तुत यह श्लोक संस्कृत नीति-साहित्य का एक अत्यंत सुंदर और सारगर्भित रत्न है, जो सज्जनों के मूल स्वभाव की अमिट विशेषता को रूपक के माध्यम से दर्शाता है।
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संस्कृत श्लोक: "स्वभावं न जहात्येव साधुरापद्गतोऽपि सन्" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद |
📜 श्लोक:
स्वभावं न जहात्येव साधुरापद्गतोऽपि सन्।कर्पूरः पावकस्पृष्टः सौरभं कुरुतेतराम्॥
📘 1. शाब्दिक अर्थ:
पद | अर्थ |
---|---|
स्वभावं | स्वाभाविक गुण / प्राकृतिक चरित्र |
न जहाति एव | बिल्कुल नहीं त्यागता |
साधुः | सज्जन पुरुष |
आपद्गतः अपि सन् | संकट में पड़ा हुआ भी |
कर्पूरः | कपूर |
पावकस्पृष्टः | अग्नि के स्पर्श में आया |
सौरभं | सुगंध |
कुरुते | उत्पन्न करता है |
अतराम् | और भी अधिक (विशेष रूप से) |
🧠 2. व्याकरणिक विश्लेषण:
- स्वभावं न जहाति एव — नित्यस्वभाव को कभी नहीं छोड़ता, यहाँ "न जहाति" = त्यागता नहीं।
- साधुः – पुंलिंग, प्रथमा विभक्ति, एकवचन
- आपद्गतः – आपद् (संकट) + गतः (प्राप्त) = संकट में पड़ा हुआ
- पावकस्पृष्टः – पावक (अग्नि) + स्पृष्ट (छुआ हुआ)
💡 3. भावार्थ:
"सज्जन पुरुष विपत्ति में पड़ने पर भी अपने शुभ स्वभाव को नहीं त्यागता। जैसे कपूर अग्नि के संपर्क में आने पर और भी अधिक सुगंधित हो जाता है।"
🔹 स्वाभाविक गुण, जैसे — दया, क्षमा, सत्य, करुणा आदि, सज्जनों के अंतर्मन में इतनी गहराई से रचे-बसे होते हैं कि विपरीत परिस्थितियाँ भी उन्हें डिगा नहीं सकतीं।
🔹 कपूर (Camphor) जब जलता है तो वह नष्ट होता हुआ भी सुगंध देता है, ठीक वैसे ही सज्जन कष्ट में भी दूसरों को सुख, स्नेह और शांति ही देते हैं।
🪔 4. रूपक सौंदर्य:
यह श्लोक एक अत्यंत प्रभावशाली रूपक अलंकार का प्रयोग करता है, जहाँ:
- सज्जन पुरुष = कपूर
- विपत्ति = अग्नि
- सुगंध = सज्जनता का विस्तार
🌍 5. आधुनिक सन्दर्भ में सन्देश:
"आज की दुनिया में जब थोड़ी-सी असुविधा में लोग अपने मूल्यों से समझौता कर लेते हैं, यह श्लोक हमें बताता है कि सच्चा सज्जन वही है, जो संकट में भी सज्जन ही बना रहता है।"
🔸 नौकरी चली जाए, अपमान हो, धोखा मिले — फिर भी जो क्रोध, घृणा या छल नहीं करता, वही "कपूरवत् सज्जन" कहलाता है।
🔸 नैतिकता की सुगंध तभी प्रकट होती है, जब जीवन अग्नि-स्पर्श से तप रहा हो।
🧘 6. नैतिक दृष्टांत (संक्षिप्त कथा):
एक बार एक संत को नगर से निकाला गया। उन्होंने गाली देने वालों को भी मुस्कुराकर आशीर्वाद दिया। जब किसी ने पूछा, "आप क्रोधित क्यों नहीं हुए?"
संत बोले – "क्योंकि मेरा स्वभाव क्रोध नहीं, करुणा है। और जैसे कपूर जलकर भी सुगंध देता है, वैसे ही संत विपत्ति में भी शुभ ही करता है।"
🪷 7. निष्कर्ष:
🔸 सच्चे सज्जन की पहचान संकट में होती है।🔸 विपत्ति में भी सज्जन उदारता, शांति, और प्रेम की सुगंध ही बिखेरता है।🔸 "सज्जन अग्नि में तपकर स्वर्ण बनता है — और कपूर बनकर सुगंध देता है।"