संस्कृत श्लोक "वैरायते सुहृद्भावः प्रदानं हरणायते" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण
🌞 🙏 जय श्रीराम 🌷 सुप्रभातम् 🙏
प्रस्तुत श्लोक अत्यंत गूढ़ मानव-स्वभावविज्ञान और नीतिशास्त्र का परिचायक है। यह श्लोक विशेषकर दर्पयुक्त व्यक्ति की मानसिकता को उजागर करता है — जहाँ सद्गुण भी विकृति का रूप ले लेते हैं।
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संस्कृत श्लोक "वैरायते सुहृद्भावः प्रदानं हरणायते" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण |
✨ श्लोक ✨
वैरायते सुहृद्भावः प्रदानं हरणायते।दर्पभूताभिभूतस्य विद्या मौर्ख्यशतायते॥
vairāyate suhṛdbhāvaḥ pradānaṁ haraṇāyate।darpabhūtābhibhūtasya vidyā maurkyaśatāyate॥
🔍 व्याकरणीय एवं पदविश्लेषण:
पद | अर्थ | व्याकरणिक टिप्पणी |
---|---|---|
वैरायते | वैर (शत्रुता) में परिवर्तित हो जाता है | धातु: इ, आत्मनेपदी, लट् लकार |
सुहृद्भावः | मित्रता की भावना | पुल्लिंग, प्रथमा एकवचन |
प्रदानम् | दान | नपुंसकलिंग, प्रथमा एकवचन |
हरणायते | हरण जैसा प्रतीत होता है | “हरण” + “आयते” (→ लगता है, होता है) |
दर्पभूत-अभिभूतस्य | अहंकार से अभिभूत व्यक्ति का | “दर्प” = अहंकार; “भूत” = युक्त; “अभिभूत” = आच्छन्न |
विद्या | ज्ञान | स्त्रीलिंग, प्रथमा एकवचन |
मौर्ख्यशतायते | सौ गुना मूर्खता बन जाती है | मौर्ख्य = मूर्खता; शत = सौ; आयते = प्रतीत होती है |
🪷 भावार्थ:
"जो व्यक्ति अहंकार से ग्रस्त हो गया है —
उसकी मित्रता भी शत्रुता बन जाती है,
उसका दान भी जैसे किसी से छीनना हो,
और उसकी विद्या सौ गुना मूर्खता जैसी प्रतीत होती है।"
🌿 प्रेरणादायक कथा: “अहंकारी विद्वान” 🌿
एक नगर में एक अत्यंत पण्डित था, पर वह अहंकार से पीड़ित था।
वह जब भी किसी से स्नेह दिखाता — लोग डर जाते, क्योंकि वह अगले ही क्षण अपमान करता।
जब वह दान देता — वह कहता, “देखो, मैं कितना बड़ा हूँ।”
और जब वह ज्ञान देता — लोग कहते, “यह ज्ञान नहीं, अपमान है।”
एक दिन एक संत ने उससे कहा:
“हे पण्डित! तुम्हारा स्नेह वैर बन गया, दान हरण बन गया, और ज्ञान सौ गुना मूर्खता।क्योंकि जहाँ दर्प है, वहाँ धर्म नहीं।”
पण्डित ने कहा: “मुझे तो सब कुछ है — तो कमी क्या है?”
संत बोले: “जो कुछ है, वो तुम्हें नहीं, तुम्हारे दर्प को मिला है।
और दर्प के पास सब कुछ होते हुए भी, वो सब कुछ छीन लेता है।”
उस दिन से पण्डित ने स्वयं को बदला और विनम्रता को अपनाया।
🌟 शिक्षा / प्रेरणा:
- अहंकार, सच्चे सद्गुणों की परछाईं को भी कालेपन में बदल देता है।
- स्नेह हो या दान, विद्या हो या सेवा — यदि उसमें विनम्रता नहीं, तो वह अपवित्र हो जाता है।
- ज्ञान के साथ जब दर्प होता है, तो वह अहंकार का शस्त्र बन जाता है, जिससे दूसरों को चोट लगती है।
- सज्जनता का प्रथम लक्षण है — दर्पशून्यता।
🕯️ मनन योग्य पंक्ति:
“गर्वयुक्त गुण, विष से भी अधिक घातक होता है।विनम्र मूर्ख, कभी-न-कभी बुद्धिमान बन सकता है;पर दर्पयुक्त ज्ञानी — केवल अकेला रह जाता है।”
🌸 यदि आप चाहें:
- इस श्लोक पर आधारित नाट्यसंवाद,
- कक्षा शिक्षण हेतु नीति-चित्र,
- अथवा “श्लोकों के माध्यम से आत्मनिरक्षण” श्रृंखला भी तैयार की जा सकती है।