जैमिनि पद्धति के चर, स्थिर और द्विस्वभाव राशियों की दृष्टि

Sooraj Krishna Shastri
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जैमिनि पद्धति के चर, स्थिर और द्विस्वभाव राशियों की दृष्टि

 “दृष्टिचक्रोद्धार” विषयक श्लोकों का शास्त्रीय, व्यवस्थित, और भावपूर्ण विश्लेषण के साथ विस्तार से विवेचन करने हेतु यह अंश जैमिनि ज्योतिष के उस गूढ़ तत्त्व को उद्घाटित करता है, जिसमें राशियों की परस्पर दृष्टि का विचार “दृष्टिचक्र” के माध्यम से किया जाता है।

View of variable, fixed and dual nature signs of Jaimini system जैमिनि पद्धति के चर, स्थिर और द्विस्वभाव राशियों की दृष्टि
View of variable, fixed and dual nature signs of Jaimini system जैमिनि पद्धति के चर, स्थिर और द्विस्वभाव राशियों की दृष्टि



🔷 श्लोक

दृष्टिचक्रोद्धार: चक्रन्यासमहं वक्ष्ये यथावद्‌ ब्रह्मणोदितम्‌ |
यस्य विज्ञानमात्रेण दृष्टिभेदः प्रकाश्यते ||

✨ अन्वय एवं पदविच्छेद:

  • दृष्टिचक्र-उद्धारः – दृष्टिचक्र का उद्घाटन / निरूपण
  • चक्रन्यासम् – चक्र में राशियों का नियोजन
  • अहं वक्ष्ये – मैं वर्णन करता हूँ
  • यथावत् ब्रह्मणा उदितम् – जैसा ब्रह्मा जी ने कहा है
  • यस्मिन् विज्ञानमात्रेण दृष्टिभेदः प्रकाश्यते – जिसका थोड़ी भी समझ से दृष्टिभेद (राशिदृष्टि) स्पष्ट हो जाती है।

📘 भावार्थ:

अब मैं ब्रह्माजी द्वारा निर्दिष्ट दृष्टिचक्र का वर्णन करता हूँ, जिसका ज्ञान होने मात्र से राशियों की परस्पर दृष्टियाँ (Aspect relations) स्पष्ट रूप से जान ली जाती हैं।


🔷 श्लोक 

पूर्व मेषवृषी लेख्यौ कर्कसिंहा च दक्षिणे |
तुलाली वारुणे विप्र ! मृगकुम्भौ तथोत्तरे ||

✨ पदविच्छेद:

  • पूर्वे – पूर्व दिशा में
  • मेष-वृषौ लेख्यौ – मेष और वृष राशियाँ लिखी जाएँ
  • दक्षिणे – दक्षिण दिशा में
  • कर्क-सिंहौ – कर्क और सिंह
  • वारुणे – पश्चिम दिशा में (वरुण दिशा)
  • तुला-वृश्चिकौ – तुला और वृश्चिक
  • उत्तर – उत्तर दिशा में
  • मकर-कुम्भौ – मकर और कुम्भ

📘 भावार्थ:

पूर्व दिशा में मेष और वृष, दक्षिण में कर्क और सिंह, पश्चिम में तुला और वृश्चिक, तथा उत्तर में मकर और कुम्भ राशियाँ स्थापित करो।


🔷 श्लोक 

अग्निकोणे तु मिथुनं नैऋत्यां कन्यकां द्विज |
वायव्यां धनुषं लेख्यमीशाने मीनमालिखेत्‌ ||

✨ पदविच्छेद:

  • अग्निकोणे – आग्नेय कोण में (SE)
  • मिथुनम् – मिथुन
  • नैऋत्यां – नैऋत्य कोण में (SW)
  • कन्यकां – कन्या
  • वायव्यां – वायव्य कोण में (NW)
  • धनुषम् – धनु
  • ईशाने – ईशान कोण में (NE)
  • मीनम् – मीन

📘 भावार्थ:

आग्नेय कोण में मिथुन, नैऋत्य कोण में कन्या, वायव्य में धनु और ईशान कोण में मीन राशि को रखें।


🔷 श्लोक 

चतुरभ्नं च विन्यासं ज्ञायते द्विजसत्तम |
वृत्ताकारं विशेषेण ब्रह्मणां चोदितं पुरा ||

✨ पदविच्छेद:

  • चतुरभ्नं विन्यासं – चौकोर रूप में चक्र की रचना
  • ज्ञायते – जाना गया है
  • द्विजसत्तम – हे श्रेष्ठ ब्राह्मण
  • वृत्ताकारं विशेषेण – विशेष रूप से वृत्ताकार में
  • ब्रह्मणां चोदितं – ब्रह्मा जी द्वारा निर्देशित

📘 भावार्थ:

हे द्विजश्रेष्ठ! दृष्टिचक्र को चतुरस्र (चौकोर) रूप में भी समझा गया है, किंतु ब्रह्माजी ने इसे विशेष रूप से वृत्ताकार रूप में स्थापित करने की आज्ञा दी है।


🔷 विश्लेषण: दृष्टि सिद्धान्त (आगे आने वाले श्लोकों का संक्षिप्त भाव)

चर राशियाँ – समीपस्थ स्थिर राशि को छोड़कर शेष तीन स्थिर राशियों को देखती हैं।
स्थिर राशियाँ – समीपस्थ चर राशि को छोड़कर शेष तीन चर राशियों को देखती हैं।
द्विस्वभाव राशियाँ – स्वयं को छोड़कर शेष तीन द्विस्वभाव राशियों को देखती हैं।


🔷 श्लोक 

यथा चरः स्थिरान् एवं स्थिरः पश्यति वै चरान् |
द्विस्वभावो विनात्मानं द्विस्वभावान् प्रपश्यति ||
समीपस्थं परित्यज्य राशीन् त्रीन् ननु पश्यति ||

✨ पदविच्छेद एवं अन्वय:

  • चरः स्थिरान् – चर राशि स्थिर राशियों को देखती है
  • स्थिरः चरान् – स्थिर राशि चर राशियों को देखती है
  • द्विस्वभावः आत्मानं विना – द्विस्वभाव राशि स्वयं को छोड़कर
  • द्विस्वभावान् पश्यति – अन्य तीन द्विस्वभाव राशियों को देखती है
  • समीपस्थं परित्यज्य – समीपस्थ राशि को छोड़कर
  • राशीन् त्रीन् पश्यति – तीन राशियों को देखती है

📘 भावार्थ:

जैसे चर राशियाँ स्थिर राशियों को (समीपस्थ को छोड़कर) देखती हैं, वैसे ही स्थिर राशियाँ चर राशियों को (समीपस्थ को छोड़कर) देखती हैं, और द्विस्वभाव राशियाँ स्वयं को छोड़कर अन्य तीन द्विस्वभाव राशियों को देखती हैं।


🔷 सूत्रात्मक दृष्टि नियम

चर धनं विना स्थास्नुः, स्थिरमन्त्यं विना चरम् |
युग्मं स्वेन विना युग्मं पश्यन्तीति अयमागमः ||

📘 भावार्थ : चर राशियाँ समीपस्थ स्थिर को छोड़ शेष स्थिरों को; स्थिर राशियाँ समीपस्थ चर को छोड़ शेष चर राशियों को, और द्विस्वभाव राशियाँ स्वयं को छोड़ शेष तीन द्विस्वभावों को देखती हैं — यही शास्त्रीय नियम है।


🔶 दृष्टिचक्र का ग्राफिकल विन्यास (सारांश):

दिशा राशियाँ
पूर्व मेष (१), वृष (२)
आग्नेय मिथुन (३)
दक्षिण कर्क (४), सिंह (५)
नैऋत्य कन्या (६)
पश्चिम तुला (७), वृश्चिक (८)
वायव्य धनु (९)
उत्तर मकर (१०), कुम्भ (११)
ईशान मीन (१२)

🔶 1. चर राशियों की दृष्टि

(अपने समीपस्थ स्थिर राशि को छोड़कर शेष तीन स्थिर राशियों को देखती हैं)

चर राशि समीपस्थ स्थिर राशि (जिसे नहीं देखती) देखी जाने वाली स्थिर राशियाँ
मेष वृष सिंह, वृश्चिक, कुम्भ
कर्क सिंह वृष, वृश्चिक, कुम्भ
तुला वृश्चिक वृष, सिंह, कुम्भ
मकर कुम्भ वृष, सिंह, वृश्चिक

🔶 2. स्थिर राशियों की दृष्टि

(अपने समीपस्थ चर राशि को छोड़कर शेष तीन चर राशियों को देखती हैं)

स्थिर राशि समीपस्थ चर राशि (जिसे नहीं देखती) देखी जाने वाली चर राशियाँ
वृष मेष कर्क, तुला, मकर
सिंह कर्क मेष, तुला, मकर
वृश्चिक तुला मेष, कर्क, मकर
कुम्भ मकर मेष, कर्क, तुला

🔶 3. द्विस्वभाव राशियों की दृष्टि

(स्वयं को छोड़कर शेष तीन द्विस्वभाव राशियों को देखती हैं)

द्विस्वभाव राशि देखी जाने वाली द्विस्वभाव राशियाँ
मिथुन कन्या, धनु, मीन
कन्या मिथुन, धनु, मीन
धनु मिथुन, कन्या, मीन
मीन मिथुन, कन्या, धनु

🧭 दृष्टिचक्र दिशा अनुसार राशियाँ

(जैसा कि ब्रह्माजी द्वारा निर्दिष्ट दृष्टिचक्र विन्यास में वर्णित है)

दिशा राशियाँ
पूर्व मेष, वृष
दक्षिण कर्क, सिंह
पश्चिम (वारुण) तुला, वृश्चिक
उत्तर मकर, कुम्भ
आग्नेय मिथुन
नैऋत्य कन्या
वायव्य धनु
ईशान मीन


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