संस्कृत श्लोक "कामक्रोधावनिर्जित्य किमरण्ये करिष्यति" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण
🌞 🙏 जय श्रीराम 🌷 सुप्रभातम् 🙏
प्रस्तुत श्लोक अद्भुत रूप से सच्चे वैराग्य और आत्मसंयम की भावना को उजागर करता है। यह उन लोगों के लिए एक गहन आंतरिक साधना का संदेश है, जो मात्र स्थान परिवर्तन या बाह्य तपस्या को ही मोक्ष का मार्ग समझते हैं।
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संस्कृत श्लोक "कामक्रोधावनिर्जित्य किमरण्ये करिष्यति" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण |
✨ श्लोक ✨
कामक्रोधावनिर्जित्य किमरण्ये करिष्यति ।अथवा निर्जितावेतौ किमरण्ये करिष्यति ॥
kāma-krodhāv anirjitya kim araṇye kariṣyati ।athavā nirjitāv etau kim araṇye kariṣyati ॥
🔍 शब्दार्थ व व्याकरण:
पद | अर्थ | व्याकरणिक टिप्पणी |
---|---|---|
काम | वासना / इच्छाएँ | पुल्लिंग, द्वितीया |
क्रोध | ग़ुस्सा / रोष | पुल्लिंग, द्वितीया |
अनिर्जित्य | जीते बिना | कृत्वन्त अव्यय (न जीतकर) |
किम् | क्या | प्रश्नवाचक |
अरण्ये | वन में | सप्तमी |
करिष्यति | करेगा | लट् लकार, प्रथम पुरुष |
अथवा | या फिर | अव्यय |
निर्जितौ | जीत लिए गए | द्विवचन रूप |
एतौ | ये दोनों (काम और क्रोध) | पुल्लिंग, द्विवचन |
🪷 भावार्थ:
"अगर किसी ने काम (वासना) और क्रोध (ग़ुस्सा) को नहीं जीता, तो वह जंगल में जाकर क्या करेगा?
और यदि इन दोनों को जीत लिया है, तो फिर भी जंगल में जाकर क्या करेगा?"
अर्थात्:
👉 जो आंतरिक शत्रु नहीं जीते गए, उसके लिए वनवासी जीवन भी निरर्थक है,
👉 और जिसने आत्मविजय पा ली, उसके लिए वन जाने की कोई आवश्यकता नहीं बचती।
🌿 प्रेरणादायक कथा: "वन और मन" 🌿
प्राचीन काल में राजा जनक ने अपने दरबार में एक प्रश्न रखा —
"क्या कोई ऐसा सन्यासी है, जो संसार में रहकर भी मुक्त हो?"
महामुनि अष्टावक्र ने कहा:
"राजन्!यदि मन नियंत्रित नहीं, तो तपोवन भी विषयवन है।और यदि मन जीत लिया, तो गृहस्थ भी तपस्वी है।"
एक ब्राह्मण तपस्वी जो वन में तप करता था, सदैव क्रोधित रहता था।
राजा जनक ने कहा —
"तुम्हारा शरीर तो जंगल में है, पर मन अभी भी बाजार में है।तुमने न काम जीता, न क्रोध।तो यह वनवास केवल दिखावा है।"
🌟 शिक्षा / प्रेरणा:
- वैराग्य स्थान से नहीं, स्वभाव से होता है।
- बाह्य वन का त्याग सरल है, परन्तु मन का वन जीतना कठिन है।
- मन के शत्रु – काम और क्रोध – हर साधक के वास्तविक युद्धभूमि हैं।
- आंतरिक शांति ही सच्चा अरण्य है।
🕯️ जीवन सूत्र:
"वन का महत्व तभी है, जब मन वश में हो।अन्यथा हर स्थान जंगल है और हर जंगल विषयों का बाजार।"
📘 आधुनिक संदर्भ में:
आज भी कई लोग सोचते हैं कि भीड़ से दूर चले जाने से वे शांति पा लेंगे।
परंतु यदि क्रोध, वासना, और लोभ हमारे अंदर जीवित हैं — तो
कोई आश्रम, कोई पहाड़, कोई एकांत — हमें मुक्ति नहीं दे सकता।
🙏 निष्कर्ष:
यह श्लोक हमें आत्मनिरीक्षण की ओर बुलाता है —
"क्या मैं सचमुच साधना कर रहा हूँ या केवल स्थान बदल रहा हूँ?"