उमा कहउँ मैं अनुभव अपना। सत हरि भजनु जगत सब सपना॥

Sooraj Krishna Shastri
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यह अत्यंत भावपूर्ण, ज्ञानमयी एवं प्रेरणास्पद प्रस्तुति है। इसे एक प्रवचनात्मक शैली में, शीर्षकों के अंतर्गत सुव्यवस्थित एवं सुसंगत रूप में प्रस्तुत किया गया है ताकि इसका प्रभाव और भी गहन हो —

उमा कहउँ मैं अनुभव अपना। सत हरि भजनु जगत सब सपना॥
उमा कहउँ मैं अनुभव अपना। सत हरि भजनु जगत सब सपना॥



🌺 राम नाम का अमृत: एक आध्यात्मिक जागरण 🌺

१. अनुभव की गहराई से उपजा सत्य

"उमा कहउँ मैं अनुभव अपना।
सत हरि भजनु जगत सब सपना॥"
श्रीरामचरितमानस

तुलसीदासजी इस चौपाई में गूढ़ अनुभव का सार व्यक्त करते हैं – केवल हरि भजन ही सत्य है, बाकी सारा संसार स्वप्नवत् है। जैसे स्वप्न में हम अनेक सुख-दुख अनुभव करते हैं, किंतु जागरण होते ही वे सभी मिट जाते हैं। उसी प्रकार, जब आत्मा "राम नाम" के अमृत में जाग्रत होती है, तब यह संसार एक असार स्वप्न प्रतीत होता है।


२. नाम-जाप: आनंदरूपी जागरण की ओर

जब मनुष्य श्रीहरि के नाम-स्मरण की महिमा को समझता है, तब वह संसार के असार भाव से ऊपर उठकर ऐसे चिरस्थायी आनंद की ओर अग्रसर होता है, जो सत, चित और आनंद स्वरूप होता है। यह नाम-जाप जीवन के हर बंधन को शिथिल करता है और अंतर्मन को प्रभु से जोड़ देता है।


३. श्रीमद्भगवद्गीता में बताए गए सच्चे भक्त के गुण

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं –

अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्रः करुण एव च
निर्ममो निरहङ्कारः समदुःखसुखः क्षमी
संतुष्टः सततं योगी यतात्मा दृढनिश्चयः
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्यो मद्भक्तः स मे प्रियः

सत्यभक्त वही है जो सबमें मित्रता, दया, निर्ममता, समत्व एवं संतोष रखता है, और जो दृढ़ निश्चय से मन-बुद्धि को प्रभु में समर्पित करता है। ऐसा भक्त प्रभु को अत्यंत प्रिय होता है।


४. श्मशान: सत्य का मूर्त पाठशाला

कोई कहता है —
"श्मशान संसार का सबसे बड़ा शिक्षक है"।

यह वह स्थान है जहाँ हर अहंकार, हर संग्रह, हर सांसारिक मोह समाप्त होता है। किन्तु विडंबना यह है कि हम वहाँ से लौटकर फिर से उसी स्वप्नवत जीवन में रम जाते हैं।


५. "ईश्वर अंश जीव अविनाशी": आत्मबोध से मृत्यु का भय मिटता है

जब यह बोध हमारे हृदय में स्थिर हो जाता है कि
“ईश्वर अंश जीव अविनाशी”,
तो मृत्यु का भय स्वतः छू-मंतर हो जाता है। आत्मा का अंतिम लक्ष्य अपने परम स्रोत – ईश्वर से मिलन है।


६. भक्ति का सर्वोच्च मंत्र: आत्मसमर्पण और धैर्य

भागवतपुराण कहती है —

तत्तेऽनुकम्पां सुसमीक्षमाणो
भुञ्जान एवात्मकृतं विपाकम्।
हृद्वाग्वपुर्भिर्विदधन्नमस्ते
जीवेत यो मुक्तिपदे स दायभाक्॥

जो व्यक्ति पूर्व जन्मों के पापफलों को धैर्यपूर्वक सहते हुए, प्रभु के प्रति नम्रता और प्रेम बनाए रखता है, वह मुक्ति का अधिकारी बन जाता है।


७. श्रीराम नाम की महिमा: तुलसीदास का अमृत-वचन

"करमनास जलु सुरसरि परई।
तेहि को कहहु सीस नहिं धरेई॥
उलटा नामु जपत जगु जाना।
बालमीकि भए ब्रह्म समाना॥"

तुलसीदास जी कहते हैं —
जो राम नाम को उलटे भाव से भी जपते हैं, उनका भी कल्याण होता है। अजामिल इसका जीता-जागता उदाहरण है जिसने अंत समय में अपने पुत्र नारायण को पुकारा और प्रभु ने उसे मुक्त कर दिया।


८. प्रेरक कथा: बकरी और राम नाम की महिमा

एक अत्यंत मार्मिक कथा:

गांव में साधु श्रीराम नाम लिखे बेलपत्रों से रुद्राभिषेक कर रहे थे। एक बकरी ने उन बेलपत्रों को खा लिया। उस क्षण से उसकी "मैं-मैं" समाप्त हो गई और "राम-राम" प्रारंभ हो गया।

"मैं" समाप्त हुआ तो राम प्रकट हुए।

साथ की बकरियों ने उसे त्याग दिया। वह बकरी वन में पहुँची, वहाँ से किसान के पास और फिर राजमहल तक — केवल राम नाम के प्रभाव से। उसका दूध अमृतवत् हो गया। उससे राजमाता आरोग्य हुई। पूरे राजमहल में रामनाम गूंजने लगा।

कथा का सार:

जब एक बकरी, मात्र राम नाम के प्रभाव से राजमहल पहुँची, तो क्या हम मनुष्य होकर रामनाम से मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकते?


९. रामनाम: अहंकार विनाशक और आनंददायक

बकरी की तरह जब हमारा "मैं" समाप्त हो जाएगा, तब राम प्रकट होंगे। यह संसार तब स्वप्न की भांति प्रतीत होगा और हम सत्-चित्-आनंद स्वरूप के साक्षात्कार में प्रवृत्त होंगे।


१०. समय चेताता है – अब भी जागो!

प्रत्येक क्षण अमूल्य है।

"ऐसे करुणामय प्रभु का एक क्षण भी विस्मरण उचित नहीं।"

समय तीव्र गति से भाग रहा है। यदि चेतना देर से जागी, तो समय बीत चुका होगा। प्रभु स्मरण और नाम-जाप में विलम्ब न करें।


११. निष्कर्ष: राम नाम ही ब्रह्म है

"ब्रह्म राम तें नामु बड़, बर दायक बर दानि।
रामचरित सत कोटि महँ, लिय महेस जियँ जानि॥"

शिवजी ने भी अनुभव से जाना — राम नाम ही सर्वोत्तम है। यह ब्रह्म से भी श्रेष्ठ, दाता और कल्याणकारक है।


🔔 आइए! आज से ही प्रभु का स्मरण करें।
अपने "मैं" को विस्मृत करें और राम नाम की सरिता में अवगाहन करें।
यही जीवन का परम उद्देश्य और सच्चा सुख है।

🙏 जय श्रीराम 🙏

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