Guṇī guṇaṁ vetti | गुणी गुणं वेत्ति|Sanskrit Niti Shloka Explained

Sooraj Krishna Shastri
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संस्कृत नीति श्लोक “गुणी गुणं वेत्ति न वेत्ति निर्गुणः” यह गूढ़ सत्य प्रतिपादित करता है कि गुण को वही पहचान सकता है, जिसमें स्वयं गुण हों। गुणहीन व्यक्ति न गुण को समझ सकता है, न बलहीन व्यक्ति बल का मूल्यांकन कर सकता है। इसी प्रकार कोयल ही वसन्त के मधुर गुणों को पहचानती है, कौआ नहीं; और हाथी ही सिंह के बल को समझ सकता है, चूहा नहीं।

यह लेख इस श्लोक का शब्दार्थ, व्याकरणात्मक विश्लेषण, भावार्थ, आधुनिक जीवन में प्रासंगिकता, शिक्षा-कला-नेतृत्व-डिजिटल युग में इसके अनुप्रयोग, संवादात्मक नीति-कथा तथा निष्कर्ष सहित विस्तृत विवेचन प्रस्तुत करता है।

यदि आप Sanskrit Niti Shlokas, Merit Recognition, Quality Understands Quality, Indian Wisdom on Evaluation, या Life Lessons from Sanskrit जैसे विषयों में रुचि रखते हैं, तो यह लेख आपके लिए अत्यंत उपयोगी और विचारोत्तेजक सिद्ध होगा।

Guṇī guṇaṁ vetti|गुणी गुणं वेत्ति|Sanskrit Niti Shloka Explained

Guṇī guṇaṁ vetti | गुणी गुणं वेत्ति|Sanskrit Niti Shloka Explained
Guṇī guṇaṁ vetti | गुणी गुणं वेत्ति|Sanskrit Niti Shloka Explained

1️⃣ मूल श्लोक (संस्कृत)

गुणी गुणं वेत्ति न वेत्ति निर्गुणः ।
बली बलं वेत्ति न वेत्ति निर्बलः ॥
पिको वसन्तस्य गुणं न वायसः ।
करी च सिंहस्य बलं न मूषकः ॥


2️⃣ English Transliteration (IAST)

Guṇī guṇaṁ vetti na vetti nirguṇaḥ |
Balī balaṁ vetti na vetti nirbalaḥ ||
Piko vasantasya guṇaṁ na vāyasaḥ |
Karī ca siṁhasya balaṁ na mūṣakaḥ ||


3️⃣ शुद्ध हिन्दी अनुवाद

गुणी व्यक्ति ही गुण को पहचानता है, गुणहीन नहीं।
बलवान ही बल को समझता है, निर्बल नहीं।
कोयल ही वसन्त के गुण को समझती है, कौआ नहीं।
हाथी ही सिंह के बल को पहचानता है, चूहा नहीं।


4️⃣ शब्दार्थ (Padārtha)

शब्द अर्थ
गुणी गुणों से युक्त व्यक्ति
गुणम् गुण, उत्कृष्टता
वेत्ति जानता/पहचानता है
निर्गुणः गुणहीन
बली बलवान
बलम् शक्ति
निर्बलः कमजोर
पिकः कोयल
वसन्तस्य वसन्त ऋतु का
वायसः कौआ
करी हाथी
सिंहस्य सिंह का
मूषकः चूहा

5️⃣ व्याकरणात्मक विश्लेषण (Grammatical Analysis)

  • गुणी / निर्गुणः / बली / निर्बलः / पिकः / वायसः / करी / मूषकः – पुंलिङ्ग, प्रथमा विभक्ति, एकवचन
  • गुणम् / बलम् – नपुंसकलिङ्ग, द्वितीया विभक्ति
  • वसन्तस्य / सिंहस्य – षष्ठी विभक्ति (सम्बन्ध)
  • वेत्ति – लट् लकार, परस्मैपद, प्रथम पुरुष, एकवचन
    ➡️ श्लोक में अन्वय-समांतरता (Parallelism) और दृष्टान्त-अलंकार का सुन्दर प्रयोग है।

6️⃣ भावार्थ एवं तात्त्विक विवेचन

यह श्लोक कहता है कि मूल्यांकन का अधिकार उसी को है, जिसमें समतुल्य पात्रता हो।

  • गुण की पहचान वही कर सकता है जिसमें स्वयं गुण हों।
  • शक्ति का माप वही कर सकता है जिसने शक्ति का अनुभव किया हो।
  • रस का आस्वादन वही कर सकता है जिसमें रस-ग्राह्यता हो।

अर्थात्—

अयोग्य आलोचना अज्ञान का लक्षण है; योग्य सराहना पात्रता का।


7️⃣ आधुनिक सन्दर्भ (Contemporary Relevance)

🔹 शिक्षा व अकादमिक जगत

विषय-विशेषज्ञ ही विषय की सूक्ष्मता समझते हैं; सतही व्यक्ति गहराई का आकलन नहीं कर पाते।

🔹 कला व साहित्य

रसिक ही काव्य-रस पहचानता है; अरसिक को सब समान लगता है।

🔹 नेतृत्व व प्रशासन

अनुभवी नेता ही दूसरे सक्षम नेता की क्षमता पहचानता है; अनुभवहीन तुलना नहीं कर सकता।

🔹 डिजिटल युग

गुणवत्ता को समझने के लिए डोमेन-नॉलेज आवश्यक है; अन्यथा शोर और सार में भेद नहीं हो पाता।


8️⃣ संवादात्मक नीति-कथा (Didactic Dialogue)

शिष्य: गुरुदेव! सब लोग क्यों आलोचना करते रहते हैं?
गुरु: क्योंकि गुण पहचानने के लिए स्वयं गुण चाहिए।
शिष्य: तब सही मूल्यांकन कौन करेगा?
गुरु: जो स्वयं साधक है, वही साधना को समझेगा।
शिष्य: जैसे?
गुरु: कोयल वसन्त को, हाथी सिंह के बल को—चूहा नहीं।


9️⃣ नीति-सूत्र (Key Takeaway)

समझने की क्षमता, स्वयं की पात्रता से आती है।
अयोग्य की निन्दा से विचलित न हों।


🔟 निष्कर्ष

यह श्लोक हमें विवेक, विनय और आत्म-साधना की शिक्षा देता है।
जो व्यक्ति स्वयं को उन्नत करता है, वही दूसरों की उन्नति को पहचान पाता है।
अतः—पात्र बनिए; मूल्यांकन स्वतः सार्थक हो जाएगा।


गुणी गुणं वेत्ति
Sanskrit Niti Shloka
Only the worthy understand worth
Merit recognition Sanskrit
Sanskrit shloka meaning in Hindi

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