Na Kālasya Asti Bandhutvam | Time Beyond Relations – Sanskrit Wisdom

Sooraj Krishna Shastri
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संस्कृत श्लोक “न कालस्यास्ति बन्धुत्वं…” काल-तत्त्व (Time Principle) की निरपेक्ष और सर्वोच्च सत्ता को स्पष्ट करता है। यह श्लोक बताता है कि समय की न कोई आत्मीयता है, न मित्रता, न जाति-नातेदारी और न ही वह पराक्रम, प्रयास या किसी सत्ता के नियंत्रण में आता है। काल स्वयं कारण है—उसका कोई कारण नहीं।

यह लेख इस श्लोक का शब्दार्थ, व्याकरणात्मक विश्लेषण, भावार्थ, भारतीय दर्शन में काल की अवधारणा, आधुनिक जीवन (Management, Psychology, Science) में समय की भूमिका, संवादात्मक नीति-कथा और निष्कर्ष सहित विस्तृत विवेचन प्रस्तुत करता है।

यदि आप Time Philosophy in Sanskrit, Power of Time, Indian Concept of Kāla, Sanskrit Shloka Meaning in Hindi, या Life Lessons on Time Management जैसे विषयों में रुचि रखते हैं, तो यह लेख आपके लिए अत्यंत उपयोगी, विचारोत्तेजक और व्यवहारिक सिद्ध होगा।

Na Kālasya Asti Bandhutvam | Time Beyond Relations – Sanskrit Wisdom

Na Kālasya Asti Bandhutvam | Time Beyond Relations – Sanskrit Wisdom
Na Kālasya Asti Bandhutvam | Time Beyond Relations – Sanskrit Wisdom


1️⃣ मूल श्लोक (संस्कृत)

न कालस्यास्ति बन्धुत्वं न हेतुर्न पराक्रमः।
न मित्रज्ञातिसम्बन्धः कारणं नात्मनो वशः॥


2️⃣ English Transliteration (IAST)

Na kālasyāsti bandhutvaṁ na hetur na parākramaḥ |
na mitra-jñāti-sambandhaḥ kāraṇaṁ nātmano vaśaḥ ||


3️⃣ शुद्ध हिन्दी अनुवाद

काल (समय) की न कोई आत्मीयता है,
न उसका कोई मूल कारण है,
न वह पराक्रम अथवा प्रयास से नियंत्रित होता है।
न मित्रता, न जाति-नातेदारी उसका कारण बनती है,
और न ही वह किसी के—यहाँ तक कि आत्मा के भी—वश में है।


4️⃣ शब्दार्थ (Padārtha)

शब्द अर्थ
नहीं
कालस्य काल (समय) का
अस्ति है
बन्धुत्वम् आत्मीयता, पक्षपात
हेतुः कारण
पराक्रमः पुरुषार्थ, प्रयास
मित्र मित्र
ज्ञाति कुटुम्बी
सम्बन्धः संबंध
कारणम् कारण
आत्मनः आत्मा का
वशः नियंत्रण

5️⃣ व्याकरणात्मक विश्लेषण (Grammatical Analysis)

  • कालस्य – पुंलिङ्ग, षष्ठी विभक्ति, एकवचन
  • अस्ति – लट् लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन
  • बन्धुत्वम् – नपुंसकलिङ्ग, प्रथमा विभक्ति
  • हेतुः / पराक्रमः – पुंलिङ्ग, प्रथमा विभक्ति
  • मित्रज्ञातिसम्बन्धः – द्वन्द्व/तत्पुरुष समास
  • आत्मनः वशः – षष्ठी तत्पुरुष (आत्मा के नियंत्रण में)

➡️ श्लोक में न…न…न की आवृत्ति द्वारा निषेधात्मक बल (Emphatic Negation) उत्पन्न किया गया है, जो काल की निरपेक्षता (Impartiality) को दर्शाता है।


6️⃣ भावार्थ एवं तात्त्विक विवेचन

यह श्लोक काल को एक सर्वशक्तिमान, निरपेक्ष और अटल तत्त्व के रूप में स्थापित करता है—

  • काल न किसी का मित्र है, न शत्रु
  • वह भावना, संबंध, पराक्रम या याचना से प्रभावित नहीं होता।
  • काल स्वयं कारण है—उसका कोई कारण नहीं।
  • यहाँ तक कि जीवात्मा या महान सत्ता भी काल के प्रवाह से मुक्त नहीं।

भारतीय दर्शन में काल—

ईश्वर की इच्छा का उपकरण नहीं,
बल्कि सृष्टि-नियम का अपरिहार्य आयाम है।


7️⃣ आधुनिक सन्दर्भ (Contemporary Relevance)

🔹 व्यक्तिगत जीवन

समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता—न प्रतिभा की, न रिश्तों की।

🔹 न्याय और समाज

देर-सवेर, समय सत्य को उजागर करता है—न पक्षपात, न दबाव।

🔹 विज्ञान और प्रबंधन

Deadlines, Aging, Entropy—सब काल की निरपेक्ष सत्ता को सिद्ध करते हैं।

🔹 आध्यात्मिक जीवन

समय-बोध से ही वैराग्य, अनुशासन और साधना जन्म लेती है।


8️⃣ संवादात्मक नीति-कथा (Didactic Dialogue)

शिष्य: गुरुदेव! क्या प्रयास से सब कुछ बदला जा सकता है?
गुरु: प्रयास आवश्यक है, पर काल अटल है।
शिष्य: तब उपाय क्या?
गुरु: काल के विरुद्ध नहीं, काल के अनुकूल चलना।
शिष्य: कैसे?
गुरु: समय पर कर्म, समय पर विवेक—यही बुद्धिमत्ता है।


9️⃣ नीति-सूत्र (Key Takeaway)

काल न किसी का पक्ष लेता है,
न किसी के वश में होता है—
वही अंतिम निर्णायक है।


🔟 निष्कर्ष

यह श्लोक मनुष्य को विनय, समय-बोध और यथार्थ-दृष्टि सिखाता है।
जो काल को समझ लेता है, वही जीवन को समझता है।
काल से युद्ध नहीं, काल-सम्मत कर्म ही सफलता का मार्ग है।


काल तत्त्व

Power of Time Sanskrit

Na Kālasya Asti Bandhutvam

Time is Supreme

Sanskrit shloka on time

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