काव्य परम्परा एवं मुक्तक काव्य

Sooraj Krishna Shastri
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kavya parampara. काव्य परम्परा एवं मुक्तक काव्य

काव्य परम्परा एवं मुक्तक काव्य

  दृश्य एवं श्रव्य काव्य के दो भेद हैं । श्रव्य भी प्रबंधकाव्य तथा मुक्तककाव्य रूप से दो प्रकार का है । मुक्तक काव्य परंपरा का ही "नीतिशतक" एक पुष्प है जिसकी सुगंध साहित्याकाश में सर्वत्र प्रसृत है । 

       मुक्तक रचना का प्रारंभ वैदिक साहित्य में प्राप्त होता है जिसका अधिकांश भाग मुक्तकात्मक है । मंत्र भाग के अतिरिक्त ब्राह्मण ग्रंथों में गत्यात्मक कथानक के माध्यम से उपदेशात्मक पद्य रखे गए हैं जिन्हें मुक्तक कहा जा सकता है । रामायण कथा महाभारत में भी ऐसे उपदेशात्मक नीतिपरक पद्य दिए गए हैं । तत्पश्चात् मुक्तक ग्रंथ रचने की एक परंपरा चली जिसमें भर्तृहरि, अमरुक, गोवर्धनाचार्य का नाम प्रमुखता से लिया जाता है ।

मुक्तक काव्य का स्वरूप

  मुक्तक वह रचना है जो अर्थ की दृष्टि से दूसरे पद्य पर आश्रित ना हो अर्थात अर्थ दृष्टि से अपने में पूर्ण स्वतंत्र हो काव्य शास्त्रीय आचार्यों ने इसका लक्षण इसी प्रकार किया है उन्होंने मुक्तक को अनिबद्धकाव्य भी कहा है ।

   आचार्य अभिनव गुप्त के अनुसार मुक्तक काव्य का लक्षण इस प्रकार है-

"मुक्तकं श्लोक एवेकश्क्षचमत्माकारक्षमः सताम् ।"

अन्यापेक्ष एक श्लोक निबन्धः....।

-ध्वन्यालोक,लोचन टीका


मुक्तक काव्य की श्रेणियां

   मुक्तक काव्य तीन प्रकार के होते हैं -
१. नीति प्रधान
२. श्रृंगार प्रधान
३. वैराग्य प्रधान

 १. नीति प्रधान मुक्तक

 नीतिप्रधान मुक्तकों में कवि अ पने अनुभव को काव्यों में निबद्धकर समाज को एक निर्देश, परामर्श देता है, जो हितकारी हो, यहां कवि का क्षेत्र असीमित होता है । उसका वर्ण्य राजा हो या रंक कोई भी बन सकता है । नीति के यह तत्व समाज में व्यक्ति द्वारा किए जाने वाले व्यवहार के निर्धारण में सहकारी होकर एक उत्तम मार्गदर्शक की भूमिका निभाते हैं । आपद्- विपद् के समय किंकर्तव्यविमूढ़ अवस्था में यह नीतिपरक मुक्तककाव्य सन्मित्र सा आलंबन प्रदान करते हैं अतः मुक्तक काव्य न केवल व्यक्ति का मनोरंजन करता है अपितु उपयोगी सामग्री प्रस्तुत करने में सहृदयहृदयाह्लादकारि कण्ठहार बन जाता है । 

  २.शृंगार प्रधान मुक्तक

     श्रृंगार प्रधान मुक्तककाव्य में श्रृंगार रस युक्त रचना की जाती है जो व्यक्ति के तृतीय पुरुषार्थ, काम से संबंध होती है ।

   ३. वैराग्य प्रधान मुक्तक

 इस प्रकार के काव्य में चतुर्थ पुरुषार्थ मोक्ष सिद्धि हेतु साधनापरक  वचनों का प्रयोग होता है । संसार से विरक्ति के कारकों का अधिक कथन किया जाता है तथा निवृत्ति मार्ग के विविध लाभ एवं उपादेयता को पुष्ट किया जाता है ।
        इस प्रकार मुक्तक काव्य की तीन श्रेणियां प्राप्त होती हैं ।

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