तरहिं न बिनु सेएँ मम स्वामी। राम नमामि नमामि नमामी॥ सरन गएँ मो से अघ रासी। होहिं सुद्ध नमामि अबिनासी

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
1
 
  कोई भी मेरे स्वामी श्री रामजी का सेवन (भजन) किए बिना नहीं तर सकते। मैं, उन्हीं श्री रामजी को बार-बार नमस्कार करता हूँ। जिनकी शरण जाने पर मुझ जैसे पापराशि भी शुद्ध (पापरहित) हो जाते हैं, उन अविनाशी श्री रामजी को मैं नमस्कार करता हूँ। 
रामनाम कि औषधि खरी नियत से खाय । 
अंगरोग व्यापे नहीं महारोग मिट जाये ॥ 
 राम नाम का जप एक ऐसी औषधि के सामान है जिसे अगर सच्चे मन से खाया जाय भाव नाम जपा जाए तो सभी दुःख दर्द मिट जाते हैं और कोई चिंता नहीं रहती। राम नाम की महिमा सिद्ध करता ऐसा ही एक प्रसंग  है। आइये जानने का प्रयास करते हैं 
 राम सेतु के निर्माण का कार्य चल चल रहा था। सारी वानर सेना अपने-अपने काम में लगी हुयी थी। श्री राम जी सब कुछ देखते हुए मन में विचार करने लगे कि अगर मेरे नाम से ही फेंके गए पत्थर तैर रहे हैं तो मेरे फेंकने पर भी पत्थर तैरने चाहिए।
 यही विचार करते हुए श्री राम जी ने जैसे ही एक पत्थर उठाया और समुद्र में फेंका वैसे ही वो पत्थर डूब गया। श्री राम जी सोच में पड़ गए कि ऐसा क्यों हुआ ?
 हनुमान जी दूर खड़े ये सब देखा रहे थे। उन्होंने श्री राम जी के मन की बात जान ली। हनुमान जी श्री राम जी के पास गए और बोले
‘क्या हुआ प्रभु ? आप किस दुविधा में खोये हुए हैं ?
 हनुमान मेरे नाम से पत्थर तैर रहे हैं। परन्तु जब मैंने अपने हाथ से पत्थर फेंका तो वो डूब गया।
  प्रभु आप के नाम को धारण कर तो सभी अपने जीवन को पार लगा सकते हैं। लेकिन जिसे आप स्वयं त्याग रहे हैं उसे कोई डूबने से कोई कैसे बचा सकता है।
नाम चिन्तामणिः कृष्णश्चैतन्यरसविग्रहः ।
पूर्ण शुद्धो नित्यमुक्तोऽभिन्नत्वं नाम नामिनोः॥ 
 हरिनाम उस चिंतामणि के समान है जो समस्त कामनाओं को पूर्ण सकता है। हरि नाम स्वयं रसस्वरूप कृष्ण ही हैं तथा चिन्मयत्त्व (दिव्यता) के आगार हैं। हरिनाम पूर्ण हैं, शुद्ध हैं, नित्यमुक्त हैं। नामी (हरि) तथा हरिनाम में कोई अंतर नहीं है । जो हरि हैं - वही हरि नाम है
ब्रह्माण्ड पुराण में कहा गया है-
सहस्त्र नाम्नां पुण्यानां, त्रिरा-वृत्त्या तु यत-फलम् ।
एकावृत्त्या तु कृष्णस्य, नामैकम तत प्रयच्छति ॥
 विष्णु के हजार पवित्र नाम (विष्णुसहस्त्रनाम) जप के द्वारा प्राप्त परिणाम (पुण्य) केवल एक बार कृष्ण के पवित्र नाम जप के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।
द्वात्रिंषदक्षरं मन्त्रं नाम षोडषकान्वितम् ।
 प्रजपन् वैष्णवो नित्यं राधाकृष्ण स्थलं लभेत् ॥ 
 जो वैष्णव नित्य बत्तीस वर्ण वाले तथा सोलह नामों वाले महामंत्र का जप तथा कीर्तन करते हैं, उन्हें श्रीराधाकृष्ण के दिव्य धाम गोलोक की प्राप्ति होती है। श्री हरि के नाम संकीर्तन में देश-काल का नियम लागू नहीं होता है। जूठे मुंह अथवा किसी भी प्रकार की अशुद्ध अवस्था में भी नाम-जप को करने का कोई भी निषेध नहीं है।
तुलसी मेरे राम को, रीझ भजो या खीज।
भौम पड़ा जामे सभी, उल्टा सीधा बीज॥
 तुलसीदास कहते हैं कि भूमि में जब बीज बोए जाते हैं तो ये नहीं देखा जाता कि बीज उल्टे पड़े हैं या सीधे, लेकिन समय आने पर सभी बीज अंकुरित होते हैं और सभी उल्टे-सीधे बीजों फसल तैयार हो जाती है। वैसे हमारे प्रभु को कैसे भी याद करो, फल अवश्य मिलता है 
  श्रीमद्भागवत महापुराण का तो यहां तक कहना है कि जप-तप एवं पूजा- पाठ की त्रुटियां अथवा कमियां श्रीहरि के नाम संकीर्तन से ठीक और परिपूर्ण हो जाती हैं। हरि नाम का संकीर्त्तन ऊंची आवाज में करना चाहिए ।
जपतो हरिनामानिस्थानेशतगुणाधिकः ।
आत्मानञ्चपुनात्युच्चैर्जपन्श्रोतॄन्पुनातपच॥
  हरि नाम को जपने वाले की अपेक्षा उच्च स्वर से हरि नाम का कीर्तन करने वाला अधिक श्रेष्ठ है, क्योंकि जपकर्ता केवल स्वयं को ही पवित्र करता है, जबकि नाम- कीर्तनकारी स्वयं के साथ-साथ सुनने वालों का भी उद्धार करता है। हरिवंशपुराण का कथन है-
वेदेरामायणेचैवपुराणेभारतेतथा ।
आदावन्तेचमध्येचहरिः सर्वत्र गीयते ॥
 वेद, रामायण, महाभारत और पुराणों में आदि, मध्य और अंत में सर्वत्र श्रीहरि का ही गुणगान किया गया है। इस मर्त्यलोक में भगवान की कथा साक्षात् अमृत है, अनेक शोक-दुःख से सन्तप्त प्राणियों के ताप को अपहरण करने में समर्थ है, शुक-सनकादि परम विवेकी सत्पुरुषों से स्तुति है। सकल पाप-पंक का शोषण करने वाली है, श्रवणमात्र से मंगलप्रद है। 

एक टिप्पणी भेजें

1 टिप्पणियाँ

thanks for a lovly feedback

एक टिप्पणी भेजें

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top