समझदारी- भावना सहित

Sooraj Krishna Shastri
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"मैं इस बुढ़िया के साथ स्कूल नहीं जाऊँगा और न वापस आऊँगा" ।

 सपना अपने दस वर्षीय बेटे सार्थक के शब्द सुन कर सन्न रह गई । ये क्या कह रहा है ? अपनी दादी को बुढ़िया क्यों कह रहा है ?  कहाँ से सीख रहा है इतनी अपमानजनक भाषा ?

 सपना सोच रही थी कि बगल के कमरे से सार्थक के चाचा निकले और पूछा "क्या हुआ बेटा ?

  सार्थक ने फिर कहा "चाहे कुछ भी हो जाए ,मैं इस बुढ़िया के साथ स्कूल नहीं जाऊँगा, हमेशा डाँटती रहती है ,मेरे दोस्त मेरा उपहास उड़ाते हैं ।"घर के सब लोग चकित थे ।

 सपना के पति ,दो देवर और देवरानी ,एक ननद ,ससुर और नौकर भी ।सार्थक को स्कूल छोड़ने और लाने की जिम्मेदारी दादी की थी । पैरों में दर्द रहता था ,पर पोते के प्रेम में कभी शिकायत नहीं करती थीं ,बहुत प्यार करती थीं पोते को ,क्योंकि घर का पहला पोता था ।

 पर अचानक सार्थक के मुँह से उनके लिए ऐसे शब्द सुनकर सबको आश्चर्य हो रहा था । रात को खाने पर उसे बहुत समझाया गया पर वो अपनी जिद्द पर अड़ा रहा । सार्थक के पापा ने उसे थप्पड़ भी मार दिया । सबने तय किया कि कल से उसे स्कूल छोड़ने और लेने माँ जी नहीं जाएँगी। अगले दिन से कोई और उसे लाने ले जाने लगा स्कूल ,पर सपना का मन विचलित रहने लगा कि आखिर उसने ऐसा क्यों किया ? सपना नाराज भी बहुत थी सार्थक से ।

  शाम का समय था । सपना ने दूध गर्म किया और बेटे को देने के लिए ढूँढने लगी । छत पर पहुँच बेटे की बात सुनकर ठिठक गयी और छुप कर सुनने लगी । सार्थक अपनी दादी की गोद में अपना सर रखकर कह रहा था ।

 मैं जानता हूँ दादी कि मम्मी मुझसे नाराज हैं ,पर मैं क्या करता ? इतनी ज्यादा गर्मी में भी , वो आपको मुझे लेने भेज देते थे ।आपके पैरों में दर्द भी तो रहता है ,मैंने मम्मी से कहा तो उन्होंने कहा दिया कि दादी अपनी इच्छा से जाती हैं ।दादी मैंने झूठ बोला ... बहुत पाप किया ,पर आपको परेशानी से बचाने के लिए मुझे और कुछ नहीं सूझा ...

  आप मम्मी से कह दो कि मुझे क्षमा कर दें ।

  सार्थक कहता जा रहा था , सपना के पैर और मन सुन्न पड़ गए थे । अपने बेटे के झूठ बोलने के पीछे के बड़प्पन को महसूस कर गर्व हो रहा था उसे । सपना ने दौड़ कर सार्थक को गले लगा लिया और बोली ... " नहीं बेटे । तुमने कुछ गलत नहीं किया । हम सभी पढ़े लिखे नासमझों को समझाने का यही तरीका ठीक था ।

"अच्छा- बहुत अच्छा बेटा । ।" 

शिक्षा

  प्रिय आत्मीय जनों !  हमें अपने जीवन मे अपने माता पिता ,दादा दादी के हर उस पड़ाव में साथ देना चाहिए जिसमें वो दुर्बल होने लगते है लेकिन व्यस्तता के कारण हम अपने दायित्व से पीछे हटते जा रहे है,एक छोटे बच्चे के कारण आज घर के बड़े बुजुर्गों की परेशानी को समझने लगे है, उसी प्रकार आज से हमें भी अपने बड़े बुजुर्गों का साथ देना और उनका हालचाल पूछना तथा समझना होगा।

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