एक साहूकार और किसान । एक आध्यात्मिक कथा । समय का चक्र।

Sooraj Krishna Shastri
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  एक गाँव में एक बडा ही नेक दयालु साहुकार था उसके यहाँ सब सुख अपनी मात्रा से भी अधिकाधिक मात्रा में पर्याप्त थे वह हर किसी की मदद अपने सामर्थ्य से भी अधिक करता इस प्रकार उसकी ख्याति दूर दराज के गाँव में व्याप्त थी

 एक गरीब किसान उसके यहाँ मदद मांगने आया किसान बोला माई बाप मेरा कोई अस्तित्व नहीं है मुझ गरीब पर रहम करो 

साहूकार बोले क्या चाहते हैं आप ?

किसान - मुझे दस वीघा खेत दस वर्ष के लिए दे दीजिए उससे उत्पादित अन्न से मैं अपना व्यापार कर सकूँ ।

साहूकार - ठीक है कल से एक दस बीघा खेत तुम्हें दे दिया जायेगा।

  तुम्हारे सहायता के लिए तुम्हारे साथ पांच आदमी भी जायेगें आप उनसे अपने कार्यिकी को आगे बढाना लेकिन उनसे कोई भी उनुचित काम न कराना यदि आपने उन्हें स्वतंत्रता दी तो आपके दस वर्ष व्यर्थ ही चलें जायेगें क्यों कि आपके मुताबिक आपके पास कुल दस वर्ष हैं आप उनके साथ परिश्रम करना और सफल होकर हमारे यहाँ आना 

   इतना सब कुछ मिल जाने पर किसान बहुत ही खुश होकर वहाँ से पांच व्यक्ति को लेकर चला गया दूसरे दिन उसे खेती मिल गयी पांच आदमियों के मिल जाने से वह किसान बहुत ही आलसी प्रवृत्ति का हो गया अब तो वह खेत के किनारे बैठ बस देखता ही रहता पांचों व्यक्ति मनमाना काम करते वह उन पांचों व्यक्तियों पर से अपना नियंत्रण खो बैठा 

  अब वो जब मन आता तो फसल में पानी देते जब कभी खाद देते जब कभी मन आता तो कटाई करते और नहीं तो पकी फसल पर भी कटाई न करते ।

समय यू ही गुजर गया दस वर्ष बाद भी उस किसान के पास दस महीने का अन्न इकत्र न हो सका साहुकार ने अपना खेत वापस ले लिया 

किसान फिर से बोला एक बार दस वर्ष के लिए खेत और दे दो,

साहुकार ने मना कर दिया किसान फिर वोला कि पांच वर्ष केलिए,

साहुकार ने मना कर दिया किसान फिर वोला कि एक वर्ष के लिए,

साहुकार ने मना कर दिया किसान फिर वोला कि छ: महीने के लिए,

साहुकार ने मना कर दिया और बोले कि आपके कहे अनुसार हमने आपको दस वर्ष खेती दी आप असफल रहे आप अपने दुखों को सुख में परिवर्तित कर सकते थे ।

अंत में किसान को रिक्तता ही हाथ लगी सदा की भांति दुखद जीदगीं जीने पर मजबूर होना पड़ा ।

यह कहानी बड़ी ही गहराई का सबक है मित्रजन समझिये  -

वो साहुकार ईश्वर हैं, 

 वो किसान जीव है, 

वो खेत मनुष्य तन है ,

 वो पांच व्यक्ति हमारे मनुष्य शरीर की पांच इन्द्रियाँ है 

नेत्र, कर्ण, नासिका, स्पर्शा, और जिव्हा 

और वो दस वर्ष मनुष्य तन का जीवन काल 

  हमारे जीव को भगवान रूपी साहुकार ने मनुष्य तन को हमे हमारे कल्याण के लिए दिया इन पांचों इन्द्रियों से सत्कर्म कराने के लिए इन पर विजय प्राप्त करने के लिए 

  अन्यथा जब इस खेत रुपी शरीर का समय होगया तो ईश्वर हमारी एक न सुनेगें हम चाहे उनसे कितना भी समय मांग ले ये मनुष्य रूपी खेत केवल एक बार की सम्पदा है।

  आज हमने यह नहीं सोचा कि हमारी स्थिति क्या है हम कहाँ विचरण कर रहे हैं किसके साथ किसको लेकर कहाँ आये और कहाँ जाना है ।

  यह कर्म भूमि है ध्यान से देखिये इस कर्म भूमि में फेका हुआ प्रत्येक बीज अपने से दस गुना होकर वापस आता है  उसी प्रकार हमारा प्रत्येक कर्म दस गुना होकर वापस लौट कर आयेगा ।

  फिर चाहे वो सत्कर्म हो चाहे दुष्कर्म  दस गुना सहने का सामर्थ्य हो वही कर्म कीजिये । साहुकार एक न सुनेगा उसे तो दस गुना देना है । वो देने में कभी भी किसी के साथ कंजूसी नहीं करता इसलिए जो प्राप्त है पर्याप्त है, यही संस्मरण है,यही इस संसार के नियम है ।

  इस संसार में कुछ भी अपना नहीं है कोई भी पद प्रतीष्ठा की गौर ही क्या हमारा नाम हमारा नहीं यह शरीर हमारा नहीं हमारी मृत्यु के पश्चात इस नाम के न जाने कितने मनुष्य होगें हमारे जीवित रहते भी हमारे नाम के असंख्य मनुष्य है स्मरण कीजिये ।

  यह शरीर भी हमारा नहीं जब हमें यह प्राप्त हुआ तब इसका आकार स्वभाव सब भिन्न था समय के अनुसार यह प्रवृत्ति बदलता गया आगे भी बदलता रहेगा 

  एक समय वो भी आ जायेगा कि यही शरीर हमारी आज्ञा को भी नहीं मानेगा।

  हम कितना ही प्रयास कर लें हमारे रिश्ते नाते भी एक सीमित समय और एक निश्चित स्थान तक ही हमारा साथ देगें  कोई भी किसी का नहीं है अगर कोई है जो अनादि काल से हमारा है वो हैं हमारे ईश्वर वही हमारे हैं  तो सदा ईश्वर का चिन्तन कीजिये ।

रस गायन श्री रास विहारी श्री वनवारी ।

मुरली मनोहर मोहन गिरधारी ॥


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