गौतम बुद्ध से पहले भी बुद्ध थे। बुद्धवंस, बुद्धवंस की अट्ठकथा, महापदानसुत्त आदि में बुद्धों की परंपरा का वर्णन है। डाॅ. भदंत आनंद कौशल्यायन ने " गौतम बुद्ध से पहले के बुद्ध " नाम से पुस्तक भी लिखी है। ( चित्र - 12 )
देशी और विदेशी दोनों स्रोत बताते हैं कि गौतम बुद्ध के पहले बुद्ध थे। साहित्यिक और पुरातात्विक स्रोत भी बताते हैं कि गौतम बुद्ध से पहले बुद्ध थे।
फाहियान बताता है, श्रीलंकाई- तिब्बती स्रोत बताते हैं, अशोक का निग्लीवा अभिलेख बताता है, भरहुत अभिलेख बताता है, साँची का स्तूप बताता है, अजंता की गुफाएँ बताती हैं, पालि साहित्य बताता है, ये सभी बताते हैं कि बुद्धों की परंपरा रही है।
जब सिख धर्म में 10 गुरूओं की परंपरा हो सकती है तो बौद्ध धर्म में 28 गुरूओं की परंपरा क्यों नहीं हो सकती है?
Name of 28 Buddhas (28 बुद्धों के नाम) -
1) Taṇhaṅkara Buddha (तण्हन्कर बुद्ध)
2) Medhaṅkara Buddha (मेधन्कर बुद्ध)
3) Saraṇkara Buddha (सरणंकर बुद्ध)
4) Dīpankara Buddha (दीपंकर बुद्ध)
5) Koṇdañña Buddha (कोण्डिन्य बुद्ध)
6) Maṅgala Buddha (मङ्गल बुद्ध)
7) Sumana Buddha (सुमन बुद्ध)
8) Revata Buddha (रेवत बुद्ध)
9) Sobhita Buddha (सोभित बुद्ध)
10) Anomadassi Buddha (अनोमदस्सी बुद्ध)
11) Paduma Buddha (पदुम बुद्ध)
12) Nārada Buddha (नारद बुद्ध)
13) Padumuttara Buddha (पदमुत्तर बुद्ध)
14) Sumedha Buddha (सुमेध बुद्ध)
15) Sujāta Buddha (सुजात बुद्ध)
16) Piyadassi Buddha (पियदस्सी बुद्ध)
17) Atthadassi Buddha (अत्थदस्सी बुद्ध)
18) Dhammadassī Buddha (धम्मदस्सी बुद्ध)
19) Siddhattha Buddha (सिद्धत्थ बुद्ध)
20) Tissa Buddha (तिस्स बुद्ध)
21) Phussa Buddha (फुस्स बुद्ध)
22) Vipassī Buddha (विपस्सी बुद्ध)
23) Sikhī Buddha (सिखी बुद्ध)
24) Vessabhū Buddha (वेस्सभू बुद्ध)
25) Kakusandha Buddha (ककुसंध बुद्ध)
26) Koṇāgamana Buddha (कोणागमन बुद्ध)
27) Kassapa Buddha (कस्सप बुद्ध)
28) Gotama Buddha ( गोतम बुद्ध)
जैसा कि हम जानते हैं कि जातकट्ठकथा ( दूरेनिदान 2 - 26 ) एवं बुद्धवंस ( 3 - 26 ) में 24 बुद्धों एवं उनके बोधिवृक्षों का विवरण है। यह विवरण दीपंकर बुद्ध से आरंभ होकर कस्सप बुद्ध पर खत्म हो जाता है।
दीपंकर बुद्ध से पहले के तीन बुद्धों तणहंकर, मेधंकर और सरणंकर का वर्णन इनमें नहीं है। ऐसा कहा गया है कि दीपंकर बुद्ध से पहले के 3 बुद्धों के कोई बोधिसत्व नहीं थे। इसीलिए ये तीनों बुद्ध इनकी सूची से बाहर हैं।
गौतम बुद्ध बौद्ध धर्म के संस्थापक नहीं थे। वे तो बौद्ध धर्म के प्रवर्तक थे। संस्थापक और प्रवर्तक में अंतर होता है।
गौतम बुद्ध ने धर्म चक्र का प्रवर्तन किया था। वे धर्म चक्र के भी संस्थापक नहीं थे।
संस्थापक किसी धर्म की स्थापना करता है, जबकि प्रवर्तक पहले से चले आ रहे किसी धर्म को परिमार्जित करते हुए नए सिरे से चालू करता है। बौद्ध धर्म गौतम बुद्ध से पहले भी था।
न केवल गौतम बुद्ध के फादर बल्कि उनके फादर इन लाॅ भी पहले से ही बौद्ध धारा के थे। इसलिए गौतम बुद्ध के फादर इन लाॅ का नाम सुप्पबुद्ध था। सुप्पबुद्ध नाम बौद्ध धारा का है।
फाहियान ने बताए हैं कि देवदत्त के अनुयायी शाक्य मुनि बुद्ध के प्रति श्रद्धाभाव निवेदित नहीं करते हैं बल्कि वे लोग पहले के तीन बुद्धों में श्रद्धाभाव निवेदित करते हैं, वे बुद्ध थे - ककुसंध, कोणागमन और कस्सप बुद्ध। फाहियान के यात्रा - काल तक बुद्ध से पहले के बुद्ध की परंपराएँ जिंदा थीं। भारत में बुद्धों की परंपरा रही है।
एक शाक्यमुनि बुद्ध थे, जिनकी स्मृति में सम्राट अशोक ने रुम्मिनदेई अभिलेख के अनुसार लुंबनी के भूमिकर में कटौती की थी।
एक कोनाकमन बुद्ध थे, जिनकी स्मृति में सम्राट अशोक ने निगलीवा अभिलेख के अनुसार निगालि सागर के स्तूप को दुरुस्त किया था।
एक कस्सप बुद्ध थे, जिनके स्मृति - स्थल को चीनी यात्री फाहियान ने श्रावस्ती के पश्चिम में देखा था।
एक क्रकुच्छंद ( ककुसंध ) बुद्ध थे,जिनके स्मृति - स्थल को चीनी यात्री फाहियान ने श्रावस्ती के दक्षिण - पश्चिम में देखा था। ( चित्र - 13 )
यदि सम्राट अशोक के अभिलेख और फाहियान का यात्रा - विवरण झूठ है तो आपका प्राचीन भारत का इतिहास सच कैसे है?
आपने गुप्त काल का इतिहास फाहियान के उस यात्रा - विवरण के आधार पर लिख दिया, जिसमें गुप्त साम्राज्य, गुप्त वंश और गुप्त वंश के किसी राजा का उल्लेख तक नहीं है।
मगर आपने गोतम बुद्ध से पहले के तीन बुद्ध ककुसंध, कोणागमन और कस्सप बुद्ध का इतिहास क्यों नहीं लिखा, जबकि फाहियान इनके स्मृति - स्थलों तक खुद गया, आँखों से देखा और ये भी बताया कि ये स्मृति- स्थल कहाँ और कितनी दूरी पर हैं।
यदि सम्राट अशोक के अभिलेख और फाहियान का यात्रा - विवरण सच है तो फिर कई बुद्ध हुए यह झूठ कैसे है?
28 बुद्धों में से सप्तबुद्ध ( The Seven Buddhas ) की स्तुति बौद्ध साहित्य में अधिक लोकप्रिय है। दीघनिकाय के महापदानसुत में सप्तबुद्ध का विस्तृत वर्णन है। सप्तबुद्ध में विपस्सी बुद्ध, सिखी बुद्ध, वेस्सभू बुद्ध, ककुसंध बुद्ध, कोणागमन बुद्ध, कस्सप बुद्ध और गोतम बुद्ध शामिल हैं।
सप्तबुद्ध की मंडली के पाँच नाम भरहुत स्तूप पर अंकित हैं। सिखी बुद्ध का नाम स्पष्ट नहीं है, जबकि वेस्सभू के नाम की जगह " भगवतो बोधि सालो " लिखा है। बाकी पाँच बुद्धों के नाम कोई दो हजार साल से भी पहले अंकित कराए गए हैं।एक में लिखा है - भगवतो कोणागमनस्स बोधि और दूसरे में लिखा है - भगवतो विपस्सिनो बोधि।
सप्तबुद्ध का दूसरा प्रमाण हमें साँची स्तूप पर मिलता है। इसमें 3 स्तूप एवं 4 बोधिवृक्ष के माध्यम से सप्तबुद्ध को दर्शाया गया है।
सप्तबुद्ध का तीसरा सबूत हमें एलोरा की गुफा संख्या 12 में मिलता है। इसमें सप्तबुद्ध को पत्थरों पर उकेरा गया है।
सप्तबुद्ध के अनेक पुरातात्त्विक प्रमाण हैं।कैलिफोर्निया के एक म्यूज़ियम में पाकिस्तान एवं भारत से प्राप्त सप्तबुद्ध की अलग - अलग दो मूर्तियाँ रखी हुई हैं।
कुल मिलाकर सप्तबुद्ध का वर्णन हमें न सिर्फ साहित्य में बल्कि हजारों साल पहले की कलाओं में भी अंकित मिलता है। ऐसा पुरातात्त्विक अंकन हमें संस्कृत साहित्य में वर्णित सप्तर्षि का नहीं मिलता है। ऐसे में माना जाना चाहिए कि संस्कृत साहित्य में सप्तर्षि की अवधारणा बौद्ध परंपरा के सप्तबुद्ध की देन है।
28 बुद्धों की परंपरा सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर गौतम बुद्ध तक फैली हुई है।
कस्सप बुद्ध, ककुच्छंद बुद्ध और कोणागमन बुद्ध के जन्मस्थान पर जाने का यात्रा - विवरण फाहियान ने अपनी पुस्तक के इक्कीसवें खंड में लिखा है।
गौतम बुद्ध से पहले भी बुद्ध हुए हैं और यदि हुए हैं तो बौद्ध सभ्यता का पिछला छोर पीछे कहाँ तक जाएगा ?
अमूमन 28 बुद्ध माने जाते हैं। एक बुद्ध का कार्य - काल यदि 50 साल भी मानें तो 28 बुद्ध का 1400 साल हुए। अब गौतम बुद्ध के कार्य - काल छठी सदी ईसा पूर्व से 1400 साल पीछे की ओर जाएंगे तो वहीं पहुँचेंगे, जब भारत में सिंधु घाटी की सभ्यता मौजूद थी।
सिंधु घाटी के लोग द्रविड़ थे और सिंधु घाटी की सभ्यता द्रविड़ों की बौद्ध सभ्यता थी। बौद्ध सभ्यता का विकास रातों - रात नहीं हुआ। कई नृवंशों, कई पीढ़ियों, कई गणों ने इसके विकास में अपना - अपना योगदान किया है।
गौतम बुद्ध से पहले जो 27 बुद्धों के नाम मिलते हैं, भाषाई दृष्टिकोण से वे नाम काफी दिलचस्प हैं।
एकदम से आरंभिक बुद्धों के नाम हमें द्रविड़ नामों की याद कराते हैं। शायद इसलिए कि इन बुद्धों की मौजूदगी सिंधु घाटी की द्रविड़ बौद्ध सभ्यता में रही होगी।
मिसाल के तौर पर, पहले बुद्ध का नाम तणहंकर बुद्ध है। तण द्रविड़ शब्द है, जो शीतलता का, तृप्ति का बोधक है। तणहंकर का तण न तो संस्कृत में है और न प्राकृत में है। आर्य भाषाओं में तण के अवशेष नहीं मिलते हैं। तणहंकर द्रविड़ नाम है।
तीसरे बुद्ध का नाम सरणंकर बुद्ध है। यहीं द्राविड़ों का शंकरण है। शंकरण द्राविड़ क्षेत्र के प्रचलित नामों में मिलते हैं जैसे शंकरण नायर, वी. शंकरण आदि। इसे भाषाविज्ञान में वर्ण - व्यत्यय कहते हैं जैसे वाराणसी का बनारस, लखनऊ का नखलऊ आदि।
पाँचवें बुद्ध का नाम कोण्डभ है। यह भी द्रविड़ नाम है। मगर ज्यों - ज्यों हम सिंधु घाटी सभ्यता से गौतम बुद्ध की तरफ चलते हैं, त्यों - त्यों बुद्धों के नाम प्राकृत भाषा का होते जाते हैं। मिसाल के तौर पर तिस्स, विपस्सी, वेस्सभू, कस्सप जैसे नाम प्राकृत के हैं।
28 बुद्धों के नामों से हम सिंधु घाटी सभ्यता से गौतम बुद्ध के काल तक की सभ्यताई यात्रा कर सकते हैं।
आनुवांशिकी विज्ञान ने राखीगढ़ी में मिले नर - कंकालों का परीक्षण कर बता दिया कि इनमें आर्य जीन नहीं हैं तो मामला शीशे की तरह साफ हो गया कि राखीगढ़ी के निवासी आर्य नहीं थे। राखीगढ़ी द्रविड़ों की सभ्यता थी।
राखीगढ़ी हरियाणा के हिसार जिले में है। इसकी खोज 1963 में हुई थी। यह सिंधु घाटी सभ्यता का अभिन्न अंग है, जिसकी पुष्टि वहाँ की नगर - योजना, अन्नागार, सड़कें, जलनिकासी - व्यवस्था, सील, लिखावटें आदि से हो जाती है।
ऐसे भी दुनिया में आर्य नस्ल की भाषाएँ उत्तरी भारत और श्रीलंका से लेकर ईरान और आर्मेनिया होते पूरे यूरोप में फैली हुई हैं। मगर सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष सिर्फ भारतीय प्रायद्वीप में ही मिलते हैं, उसका फैलाव यूरोप तक नहीं है। आश्चर्य कि द्रविड़ नस्ल की भाषाएँ भी सिंधु घाटी सभ्यता की तरह सिर्फ भारतीय प्रायद्वीप में ही मिलती हैं। भारतीय प्रायद्वीप को छोड़कर दुनिया के किसी कोने से द्रविड़ नस्ल की भाषाओं के बोले जाने के सबूत नहीं मिलते हैं।
सिंधु घाटी क्षेत्र से हमें आर्य भाषाओं के बीच नदी के द्वीप की तरह एक द्रविड़ भाषा मिलती है। उसका नाम ब्राहुई है। ब्राहुई भाषा पूरबी बलूचिस्तान में बोली जाती है। इसके पूरबी किनारे पर सिंधु घाटी की सभ्यता मौजूद है।
मगर सिंधु घाटी की सभ्यता द्राविड़ों की बौद्ध सभ्यता थी। शायद इसीलिए आरंभिक बुद्धों के नाम द्रविड़ भाषा के सबूत प्रस्तुत करते हैं। मिसाल के तौर पर, पहले बुद्ध का नाम तणहंकर बुद्ध है। तण द्रविड़ शब्द है, जो शीतलता का बोधक है। आर्य भाषाओं में तण के अवशेष नहीं मिलते हैं। तीसरे बुद्ध का नाम सरणंकर है। यहीं द्राविड़ों का शंकरण है। शंकरण द्राविड़ क्षेत्र में प्रचलित नामों में मिलते हैं जैसे शंकरण नायर, वी. शंकरण आदि। इसे भाषाविज्ञान में वर्ण - व्यत्यय कहते हैं जैसे वाराणसी का बनारस, लखनऊ का नखलऊ आदि।
प्राकृत में पस्स अर्थात देखना। पस्सी अर्थात देखने वाला। विपस्स अर्थात विशेष रूप से देखना। विपस्सी अर्थात विशेष रूप से देखने वाला।
अंग्रेजी में भी ऐसा है। spect अर्थात देखना। re - spect अर्थात दुबारा देखना। दुबारा हम उसी को देखते हैं, जिसके प्रति आदर हो। इसीलिए re - spect आदर का भाव देता है। spectacle, spectacles, spectator आदि सभी spect अर्थात देखने से संबंधित हैं।
एक विपस्सी बुद्ध थे। वे अंदर और बाहर की दुनिया को विशेष रूप से देखते थे। इसीलिए उनका नाम विपस्सी बुद्ध पड़ा। उन्हीं के नाम पर बौद्ध सभ्यता में विपस्सना का प्रचलन हुआ।
फाहियान जब भारत आए थे, तब विपस्सी बुद्ध को गुजरे हुए कोई 1300 साल बीत चुके थे। इसीलिए वे विपस्सी बुद्ध का स्मारक नहीं देख पाए। वे काल - कवलित हो चुके थे। फाहियान ने गोतम बुद्ध से ठीक पहले के सिर्फ तीन बुद्धों के स्मारक देखे थे, वे बुद्ध हैं - ककुसंध, कोणागमन और कस्सप।
विपस्सी बुद्ध का पुरातत्व में हमें लिखित सबूत पहली बार भरहुत स्तूप पर मिलता है, जिस पर लिखा है - भगवतो विपस्सिनो बोधि। ( चित्र - 14 )
विपस्सी बुद्ध का दूसरा सबूत हमें साँची स्तूप पर मिलता है। साँची स्तूप पर सप्तबुद्ध का प्रतीकात्मक अंकन है। सबसे बाएँ विपस्सी बुद्ध हैं और सबसे दाएँ गोतम बुद्ध हैं। ( चित्र - 15 )
विपस्सी बुद्ध का तीसरा सबूत हमें अजंता की गुफा सं. 17 में मिलता है। इसमें विपस्सी बुद्ध की तस्वीर अंकित है। विपस्सी बुद्ध के बाल ललाट पर लटके मिलते हैं। ( चित्र - 16 )
सप्त बुद्धों की परंपरा विपस्सी बुद्ध से आरंभ होती है और गोतम बुद्ध तक चलती है। इसलिए जहाँ - जहाँ सप्तबुद्ध का अंकन है, वहाँ - वहाँ विपस्सी बुद्ध भी मौजूद हैं।
कोनागमन बुद्ध की प्रामाणिकता।
राॅबिन कनिंघम ने एक किताब लिखी है। किताब का नाम है - " दि आर्कियोलॉजी आॅफ साउथ एशिया फ्राॅम इंडस टू असोका "। इसमें सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर अशोक के समय तक का पुरातात्त्विक विश्लेषण है, जिसमें कोनागमन बुद्ध भी शामिल हैं।
पाँचवीं सदी के आरंभ में फाहियान भारत आए थे। उन्होंने अपनी पुस्तक के इक्कीसवें खंड में कोनागमन बुद्ध के स्तूप का आँखों देखा वर्णन किया है।
कोनागमन बुद्ध का स्तूप मौर्य काल से काफी पहले मौजूद था। इतना पहले कि वह अशोक के समय तक जर्जर हो चुका था। इसीलिए अशोक को उसकी मरम्मत करानी पड़ी। स्तूप निगाली गाँव के पास था। अशोक ने कोनागमन बुद्ध की स्मृति में स्तूप के पास स्तंभ लिखवाया है। स्तंभ पर " बुधस कोनाकमनस " लिखा है। ( चित्र -17 )
तीसरी सदी ईसा पूर्व में भरहुत का स्तूप मौजूद था। स्तूप पर कोनागमन बुद्ध का नाम लिखा है - " भगवतो कोणागमनस्स बोधि "। ( चित्र -18 )
हमारे पास अनेक पुरातात्त्विक और साहित्यिक सबूत हैं कि गौतम बुद्ध से पहले भी बुद्ध थे और गौतम बुद्ध से पहले भी स्तूप थे।
बौद्ध मूर्तिकला की गहन खोजबीन से पता चलता है कि सप्तबुद्ध ( The Seven Buddhas ) की मंडली में सबसे दाएँ गोतम बुद्ध हैं, दूसरे नंबर पर कस्सप बुद्ध हैं, तीसरे नंबर पर कोणागमन बुद्ध हैं, चौथे नंबर पर ककुसंध बुद्ध हैं, पाँचवें नंबर पर वेस्सभू बुद्ध हैं, छठे नंबर पर सिखी बुद्ध हैं और सबसे बाएँ विपस्सी बुद्ध हैं।
इस क्रम की जानकारी हमें साँची स्तूप पर अंकित सप्तबुद्ध के रेखांकन से मिलती है।
बौद्ध ग्रंथों में भी सप्तबुद्ध का विस्तृत वर्णन है। अनेक बौद्ध कलाओं में भी इसका अंकन है। भरहुत, साँची, बोधगया तथा सारनाथ की कला में सप्तबुद्धों का अंकन हुआ है।
भरहुत में सप्तबुद्धों का सात बोधिवृक्ष के रूप में सात अंकन है। प्रत्येक बोधिवृक्ष के नीचे अभिलेख है, जिसमें पूर्व बुद्ध के नाम अंकित हैं।
कोणागमन और विपस्सी बुद्ध की पुरातात्विक प्रामाणिकता की बात ऊपर हो चुकी है। अब बात ककुसंध और कस्सप बुद्ध की होगी।
भरहुत स्तूप पर ककुसंध और कस्सप बुद्ध के नाम भी अंकित हैं। अभिलेख में ककुसंध बुद्ध के लिए लिखा है - भगवतो ककुसंधस्स बोधि और कस्सप बुद्ध के लिए लिखा है - भगवतो कस्सप बोधि।
नेपाल के गोटिहवा में ककुसंध बुद्ध का स्मारक है। वहाँ सम्राट अशोक का स्तंभ है। इतिहासकारों ने कहा है कि सम्राट अशोक ककुसंध बुद्ध के स्मृति - स्थल पर आए थे और उनकी स्मृति में यह स्तंभ खड़े किए थे।
दीपवंस, महावंस और महाबोधिवंस के अनुसार ककुसंध, कोणागमन एवं कस्सप बुद्ध लंका गए थे। इन त्रिबुद्धों के बोधिवृक्ष का वहाँ प्रत्यारोपण हुआ था। अनागतवंस में गौतम बुद्ध तीन पूर्व बुद्धों ककुसंध, कोणागमन और कस्सप का उल्लेख करते हैं।
बर्मा के एक अभिलेख में त्रिबुद्धों का उल्लेख है ( द ग्लास पैलेस क्रानिकल, अनुवादक मेंग तिन एवं लुईस, पृ. 6 - 7 )। कहीं- कहीं खुदाई में तीन मुखों वाली बुद्ध की जो प्रतिमाएँ मिलती हैं, वे वस्तुतः गौतम बुद्ध की त्रिमुखी प्रतिमा नहीं है बल्कि वे त्रिबुद्ध की प्रतिमाएँ हैं।
त्रिबुद्ध में उन बुद्धों की गणना होती है, जिनके बोधिवृक्ष लंका में प्रत्यारोपित हुए। गौतम बुद्ध से पहले ककुसंध, कोणागमन और कस्सप बुद्ध के ही बोधिवृक्ष लंका में प्रत्यारोपित हुए थे। इसीलिए इन्हें त्रिबुद्ध का दर्जा प्राप्त है।
ऐसे में हम कह सकते हैं कि बुद्ध की मुद्रा में बैठी हर मूर्ति गोतम बुद्ध की नहीं है। हर बुद्ध मुद्रा में बैठी मूर्ति को गोतम बुद्ध की मूर्ति मान लेने से बुद्धों की परंपरा नहीं समझ में आएगी।
सिंधु घाटी की सभ्यता में पीपल का बहुत महत्व था। अनेक मुहरों और मिट्टी के बर्तनों पर पीपल के वृक्षों की आकृतियाँ हैं। छोटे - मोटे देवता इसे सिर पर धारण करते हैं। पीपल वृक्ष के लिए युद्ध भी हुआ करते थे और उसकी शाखाओं को पास में रखने की होड़ भी थी। ( चित्र- 19 )
न सिर्फ टैब्लिट पर, न सिर्फ सील पर, न सिर्फ बर्तनों पर बल्कि हड़प्पा की मिट्टी पर भी पीपल के पत्ते की छाप मिली है।
सिंधु घाटी के सीलों में सिर्फ पीपल छाप वाली सील पर अभिलेख नीचे लिखा मिलता है, शेष सील पर ऊपर लिखा मिलता है। हर हाल में पीपल सिंधु घाटी सभ्यता का विशेष वृक्ष है।
पीपल का चित्रांकन न सिर्फ हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में मिलता है बल्कि चान्हुदड़ो से भी प्राप्त होता है।
बौद्ध ग्रंथों में जिन 28 बुद्धों के नाम मिलते हैं, उन बुद्धों के साथ बोधिवृक्ष का भी उल्लेख है।
चौथे बुद्ध दीपंकर थे। दीपकंर बुद्ध का बोधिवृक्ष पीपल था। संभव है कि सिंधु घाटी सभ्यता में पीपल वृक्ष की जो गरिमा है, वह दीपंकर बुद्ध के बोधिवृक्ष पीपल होने के नाते हो।
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