मां भगवती एवं आचार्य शंकराचार्य जी |
आद्य श्रीशंकराचार्य जी के पिता श्रीशिवगुरु ग्राम में ही विद्यमान कात्यायनी देवी का नित्य पूजन करते थे । स्वादिष्ट गोदुग्ध का भोग लगाने के अनन्तर अवशिष्ट दुग्ध पुत्र को देते थे, देवी का प्रसाद समझकर बालक ग्रहण करता था ।
एकदिन पिता को कुछ दिनों के लिए बाहर जाना पड़ा । उन्होंने पत्नी को पूजन तथा दुग्ध भोग लगाने की आज्ञा दी । माता जी अवशिष्ट प्रसाद बालक को देती थी । बीच में वह मासिक धर्म से युक्त हुई, तब बालक को बुलाकर भगवती का पूजन करने के लिए दुग्ध दिया ।
बालक ने देवी के मंदिर में जाकर भक्तिपूर्वक देवी को स्नान करवाकर माता द्वारा दिया हुआ दुग्ध जगदम्बा के आगे रखकर पीने की प्रार्थना की । दुग्ध को ज्यूँ का त्यूँ देखकर, 'अम्बा कुपित हो गई हैं इसीलिए ग्रहण नहीं करती' यह सोचकर बाल भाव से रुदन करने लगे । इनके आगे पार्वती जी प्रकट हुई, स्वर्ण पात्रस्थ दुग्ध लेकर पीने लगी । पात्र को पूरा खाली होते हुए देखकर उन्होंने कहा---- "हे अम्ब ! क्या सब पी जाओगी ?, हमे नहीं दोगी ?" हठ करते हुए रुदन करने लगे । तब बाल-वत्सला जगदम्बा ने बालक को गोद में लेकर दुलार करती हुई दुग्ध पिलाने लगी । उस दुग्ध में ज्ञान, वैराग्य तथा काव्य धारा भरी थी । यह आचार्य की कुलदेवी थी ।
जगदम्बा के दाहिने स्तन से ज्ञान और वैराग्य की धारा तथा बाएं स्तन से काव्य धारा प्रवाहित हुई । इसी भाव को व्यक्त करते हुए आचार्यपाद ने "सौंदर्य लहरी" के ९७वें श्लोक में कहा है । इस ग्रँथ पर सौभाग्यवर्धिनी, अरुणामोदिनी,आनंदगिरीय तथा भास्कर राय की व्याख्याएं है ।
"हे अम्ब ! आपका यह द्रविड़ शिशु आपके स्तनपान के प्रभाव से ही ज्ञान-वैराग्य को प्राप्त करके काव्य रचना करने में सक्षम हुआ है ।"
भगवती के प्रकट होने पर भक्तिपूर्वक स्तुति करके पूजा समाप्त की । देवी मंदिर से निकलकर आचार्य अपनी माता के साथ घर पहुंचे । कुछ दिनों बाद पिता जब लौटकर आये तब बालक का तेज देखकर अति विस्मय को प्राप्त हुए ।
भगवती ने आकाशवाणी द्वारा कहा----- "आपका यह पुत्र साधारण बालक नहीं है, बल्कि स्वामी कार्तिक ही तुम्हारे पुत्ररूप में है, इसमें संदेह नहीं है,, अथवा विष्णु ने ही बालक रूप धारण किया है या सत्यवती नंदन भगवान व्यास ही इस बालक के रूप में विद्यमान है ।"
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