प्राचीन काल में अग्नि की एक पुत्री हुई, जिसका नाम अपाला पडा। अपाला चर्म रोग से पीड़ित थी । इन्द्र अपाला को अग्नि के निर्जन आश्रम में देखकर उस पर आसक्त हो गये। अपाला तपस्विनी थी, अतः वह अपनी तपस्या द्वारा इन्द्र की समस्त इच्छाओ को जान गयी। तत्पश्चात वह जल कुम्भ लेकर पानी लाने के लिए गयी। उस समय वह जल के किनारे सोम को देखा । तदनन्तर वह वन में ही एक ऋचा से उसकी स्तुति की। कन्यावा:' मे इसका वर्णन मिलता है।
एक बार जब अपाला ने अपने मुख में सोम को दबा रखा था, तत्पश्चात् 'असो भएषि ऋचा से इन्द्र का आह्वान किया। अपाला के आवाहन करने पर इन्द्र ने उसके घर अपूप और सत्तू खाने के पश्चात् उसके मुख से सोम का पान किया तथा अपाला ने एक ऋचा से इन्द्र की स्तुति की। इस प्रकार अपाला ने तीन ऋचाओं द्वारा उसे सम्बोधित करते हुए कहा- हे इन्द्र। मुझे सुलोभ और दोषरहित अड. गो वाली तथा श्रेष्ठ त्वचा वाली बनाओ ।
अपाला के इस वचन को सुनकर इन्द्र अत्यन्त प्रसन्न हुए। गाडी के जुये के बीच के छिद्र से उसे प्रक्षिप्त करते हुए इन्द्र ने उसे तीन बार बाहर खींचा, जिससे अपाला सुन्दर त्वचा वाली हो गयी।
अपाला की प्रथम अपहृत त्वचा शल्यक् बन गयी, दूसरी गोध (घड़ियाल ) और अन्तिम त्वचा कृकलात (नेवला) बन गयी।
यास्क और भागुरि ने इस सूक्त को एक इतिहास माना है। जबकि शौनक ने कन्या सूक्त को तथा पात्तम से आरम्भ बाद में आने वाले दो सूक्तों को इन्द्र को सम्बोधित माना है।