प्राचीन काल मे वारशिखो के साथ अभ्यावर्तिन् चायमान प्रस्तोक का युद्ध हो रहा था। उस युद्ध में वारशिखों द्वारा अभ्यावर्तिन् चायमान् तथा संजय के पुत्र प्रस्तोक ये दोनों राजा पराजित हो गये। पराजित होकर ये लोग भरद्वाज के पास पहुँचे।
ऋषि भरद्वाज की स्तुति करते हुए अपना नाम बताने के पश्चात् चायमान और प्रस्तोक ने भरद्वाज से कहा- ब्रहमन्- हम लोग वारशिखो के द्वारा युद्ध में पराजित हो गये है।
अतः हम लोग आप को अपना पुरोहित बनाकर योद्धाओं को विजित कर सकते हैं। उसे ही योद्धा जानना चाहिए जो शाश्वत ब्रह्म की रक्षा करता है।
चायमान और प्रस्तोक के ऐसा कहने पर भरद्वाज ऋषि ने हाँ कहकर अपने पुत्र वायु को सम्बोधित किया- हे पुत्र तुम चायमान और प्रस्तोक इन दो राजाओं को अपने शत्रुओं द्वारा पराभूत न होने जैसा बना दो।
वायु ने अपने पिता के कथनानुसार उनके आयुधों को (शस्त्रों को) पृथक-पृथक जी भूतस्य द्वारा अभिषिक्त कर दिया।