यज्ञस्थल में भगदड़ मच गयी। ऋषिगण भयग्रस्त हो गये। देखते-देखते असुर नमुचि ने यज्ञ भंग कर दिया । त्रस्त ऋषियों ने इन्द्र का आह्वान किया। मायावी असुर नमुचि के संहार की प्रार्थना की । युद्धस्थल पर उपस्थित योद्धा के साथ युद्ध करना सरल था। किन्तु मायावी असुरों के साथ युद्ध करना कठिन था। पराक्रमी इन्द्र ने अपनी शक्ति का प्रयोग किया । दास नमुचि को माया शक्ति से हीन कर दिया। असुर की एक शक्ति का लोप हो गया।
नमुचि प्रबल था। उसकी माया का नाश हुआ । किन्तु उसकी शक्ति का नाश नहीं हुआ। वह इन्द्र के भय से दूर देश मे पलायन कर गया। नमुचि प्रबल था। उसे हराना सरल नहीं था। युद्ध स्थल में नमुचि और इन्द्र निर्णायक युद्ध निमित्त उठ आये।
वजिन इन्द्र परम वेग से नमुचि सेना की ओर बढ़े। उनके सहायक अश्विनी कुमारगण थे। अश्विनीकुमारों ने उन्हें पुष्टिकर सोम पान कराया। सोम पीते ही इन्द्र ने अतुलित बल का अनुभव किया। उनका रूप अत्यन्त उग्र हो गया। रूद्र रूप इन्द्र नमुचि की सेना पर टुट पड़े। अश्विनीकुमार उनकी रक्षा में तत्पर थे।
असुर वाहिनी पराजित हो चुकी थी। शत्रु सेना का संहार हो चुका था। नमुचि बच गया था। नमुचि ने युद्ध स्थल से पलायन किया। इन्द्र ने असुरों के ६६ ने नगरों को नष्ट किया। एक नगर अपने निवास निमित्त नष्ट होने से बचा लिया।
नमुचि भागकर प्राण नहीं बचा सका । इन्द्र प्रबल वेग से उसके समीप पहुँच गये। अपने शत्रु को इन्द्र ने प्रत्यक्ष देखा पराक्रमी इन्द्र का स्वरूप जाज्ज्वल्यमान अग्नि की तरह प्रज्ज्वलित हो उठा। नमुचि हनन से मनु का मार्ग सरल हो गया। वे देवताओ के पास सीधे पहुँच सकते थे। असुर का व्यवधान मार्ग से दूर हो चुका था और दूर हो गया ऋषियों का असुर आतंक | देवता यज्ञों से अपना भाग प्राप्त करने लगे। और नमुचि अर्थात जो जाने न दे, वह स्वयं जल फेन द्वारा इस जगत् से चला गया।
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