शिवजी को क्यों बनना पड़ा अयोध्या में ज्योतिषी ?

Sooraj Krishna Shastri
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  भगवान शिव श्रीराम के अनन्य भक्त थे । रामचरितमानस में शिवजी के श्रीराम के दर्शन के लिए आने के कई प्रसंग हैं। एक प्रसंग तो देवी सती के आत्मदाह से भी जुड़ा है। पहले बालक श्रीराम के दर्शन से जुड़ा प्रसंग सुनाते हैं।

 जब श्रीराम ने राजा दशरथ के यहां अयोध्या में अवतार ले लिया तो भोलेनाथ के मन में श्रीराम के दर्शन की प्रबल इच्छा पैदा हुई। परंतु परेशानी यह थी आखिर दर्शन कैसे करें ।

असली रूप में गए तो लालसा पूरी न होने पाएगी। रूप बदल कर गए तो राजमहल में सुरक्षा कड़ी रहती होगी। इस पर भी अगर किसी तरह पहुंच गए तो उनकी माता क्यों उन्हें किसी अपरिचित के साथ खेलने दें।

भोलेनाथ विचार करने लगे। उन्हें एक युक्ति सुझी। उन्होंने श्रीराम के परमभक्त काक भुशुंडी को बुलाया और उन्हें साथ लेकर अयोध्या चल दिए। अयोध्या पहुंचते ही महादेव ने ज्योतिषी का रूप धरा और काक भुशुंडी को शिष्य बना लिया।

अयोध्या की गलियों में दोनों ने बहुत चक्कर मारा लेकिन श्रीराम के दर्शन का कोई मौका हाथ न लग सका। दोनों गुरू-शिष्य कुछ विचार करने के लिए एक पेड़ के नीचे बैठे। शिवजी ने आसन जमा लिया।

 चेले काक भुशुंडी चले अयोध्या की गलियों में और शोर मचा दिया कि एक परमसिद्ध ज्योतिषी अयोध्या पधारे हैं। वर्तमान, भूत, भविष्य सब चुटकियों में बस एक नजर देखकर ही बता सकते हैं।

अयोध्यावासी दौड़ पड़े सिद्ध से मिलने। महादेव की लीला थी। कुछ ही देर में पूरे अयोध्या में उनके ही ज्योतिष ज्ञान की चर्चा होने लगी। यह सूचना राजमहल भी पहुंच गई।

महारानी कौशल्या ने दूत भेजकर ज्योतिषी महाराज को सम्मानपूर्वक महल में बुलवाया। महादेव को तो बस इसी की प्रतीक्षा थी। उनके आनंद की कोई सीमा ही न रही। वह महल पहुंचे।

वहां बालरूप श्रीराम को माता की गोद में बैठे मंद-मंद मुस्कुराते देखा। अन्य रानियां भी लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न को लेकर पहुंचीं। सभी बालकों से ज्योतिषी महाराज के चरणों में शीश नवाया गया। सबने उनसे बालकों के भविष्य वर्णन का अनुरोध किया।

उन्होंने ज्यादा से ज्यादा समय बिताने के लिए विश्वामित्र के यज्ञ में पराक्रम, राक्षसों का वध, विवाह आदि के प्रसंग विस्तार से सुनाए। माता को पुत्र के विवाह प्रसंग में विशेष रूचि होती है।

उन्होंने बहुओं के बारे में भी बताया। इस तरह महादेव ने श्रीराम के दर्शन लाभ लिए। रामचरित मानस में तुलसीदासजी ने इस प्रसंग का बहुत मोहक वर्णन किया है।

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