श्री राम चरित

Sooraj Krishna Shastri
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 हिंदू धर्म में भगवान राम को भगवान विष्णु का ही अवतार माना जाता है। वे अयोध्या के महाराजा दशरथ के चारों पुत्रों में से सबसे बड़े पुत्र थे। उन्हें एक आदर्श पुरुष के रूप में देखा जाता है। उनके चरित्र में ऐसी कई विशेषताएं हैं जिन्हें अपनाने पर व्यक्ति हर समस्या का निदान पा सकता है। 

मातृ-पित्र भक्त राम

 भगवान राम सबसे बड़े पुत्र थे, इस अधिकार से उन्हें अध्योया की राजगद्दी सौंपी जानी थी। लेकिन माता कैकेयी के आदेश का पालन करते हुए उन्होंने राजपाट की जगह वनवास चुना। इससे मानव मात्र को यह शिक्षा लेनी चाहिए की माता-पिता की आज्ञा का पालन करना ही संतान का सबसे पहला धर्म है।

धैर्यशीलता की मूर्ति राम

 आज के इस समय में मनुष्य में धैर्य की कमी पाई जाती है, जो व्यक्ति के लिए कई समस्याएं खड़ी कर देती है। ऐसे में राम जी का जीवन धैर्य का एक उत्तम उदाहरण है। जब माता कैकेयी ने राम जी को १४ वर्ष का वनवास का आदेश दिया तब राम जी ने इसे पूरे धैर्य के साथ स्वीकारा। वहीं, समुद्र पर सेतु तैयार करने के लिए तपस्या की। इसके साथ ही जब माता सीता को पुनः वन में जाना पड़ा तब श्री राम ने भी राजा होते हुए भी संन्यासी की तरह जीवन व्यतीत किया।

आदर्श भातृत्व के प्रतीक श्री राम

 एक आदर्श पुत्र होने के साथ-साथ राम जी एक आदर्श भाई का भी उत्तम उदाहरण हैं। आज के इस कलयुग में जब भाई, भाई का दुश्मन बन जाता है। ऐसे में वनवास के दौरान राम जी के भाई भरत उन्हें वापिस अयोध्या लेने आए तो उन्होंने माता-पिता की आज्ञा को ही सर्वोपरि रखा और राजपाट भरत को ही सौंप दिया।

आदर्श मित्र

मित्रता निभाने में भी राम जी सबसे आगे रहे हैं। केवट, सुग्रीव और विभीषण आदि उनके परम मित्र रहे और स्वयं इन सभी के संकट झेले। बिना कोई भेदभाव किए उन्होंने सभी के साथ अपनी दोस्ती निभाई।

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