सुमति

Sooraj Krishna Shastri
By -
0

  एक बार किसी ने तुलसी दास जी से पूछा - महाराज! सम्पूर्ण रामायण का सार क्या है? क्या कोई चौपाई ऐसी है जिसे हम सम्पूर्ण रामायण का सार कह सकते हैं?

तुलसी दास जी ने कहा - हाँ है और वह है -

जहां सुमति तह सम्पत्ति नाना। 

जहां कुमति तहँ विपत्ति आना।।

  जहां सुमति होती है, वहां हर प्रकार की सम्पत्ति, सुख-सुविधाएं होती हैं और जहां कुमति होती है वहां विपत्ति, दुःख और कष्ट पीछा नहीं छोड़ते।

सुमति थी अयोध्या में!

  भाई-भाई में प्रेम था, पिता और पुत्र में प्रेम था, राजा-प्रजा में प्रेम था, सास-बहू में प्रेम था और मालिक-सेवक में प्रेम था तो उजड़ी हुई अयोध्या फिर से बस गई । 

कुमति थी लंका में!

  एक भाई ने दूसरे भाई को लात मारकर निकाल दिया। कुमति और अनीति के कारण सोने की लंका राख का ढेर हो गई। 

गुरु वाणी में आता है -

इक लख पूत सवा लख नाती। 

ता रावण घर दीया ना बाती।।

  पाँच पाण्डवों में सुमति थी तो उन पर कितनी विपदाएं आईं लेकिन अंत में विजय उनकी ही हुई और हस्तिनापुर में उनका राज्य हुआ।

कौरवों में कुमति थी, अनीति थी, अनाचार था, अधर्म था तो उनकी पराजय हुई और सारे भाई मारे गए।

 यदि जीवन को सुखी बनाना चाहते हैं तो जीवन में सुमति अपनाओ।

भगवान "कृष्ण" स्वयं कहते हैं कि; -

"राधा" उनकी आत्मा है, वह "राधा" में व "राधा" उनमें बसती है!

"गोविन्द" को यही पसंद है कि, लोग भले ही उनका नाम नहीं लें लेकिन "राधा" का नाम जपते रहें।

प्रेम से बोलो "जय श्री राधे"

"जय" बोलने से मन को शांति मिलती है, "श्री" बोलने से शक्ति मिलती है, "राधे" बोलने से पापों से मुक्ति मिलती है और निरंतर "जय श्रीराधे" बोलने से भक्ति मिलती है तो प्रेम से बोलो.....  "जय श्री राधे"

Post a Comment

0 Comments

Post a Comment (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!