अतुलित बलशाली रावण !

Sooraj Krishna Shastri
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 आनन्द रामायण में सार कांड के तीसरे सर्ग के श्लोक ६७ से ८५ तक राजा जनक के धनुष यज्ञ के प्रसंग में रावण द्वारा शिव जी का धनुष उठाने का वर्णन आता है। जिसका हिंदी अनुवाद प्रस्तुत है। इस प्रसंग में रावण के अथाह बल का पता चलता है इसलिए रावण भक्तों की प्रसन्नता के लिए दिया जा रहा है। आप सब भी आनंद लें। 

हुआ यूं की जब कोई भी राजा धनुष को हिला भी न सका तब - 

"सभामें धनुष चढ़ाने से सब राजाओं को पराङ्मुख देखकर रावण गर्व के साथ धनुष के पास गया और हंसकर राजा जनक से कहने लगा। 

 हे राजन् ! जिस रावण ने समस्त देवताआ को जीत लिया हैे, जिसने तीनों लोकों को अपने वश में कर लिया है तथा अपनी ही दो भुजाआ से जिसने शिवजी के निवास स्थान कैलाश पर्वत को हिला दिया हैे, उस रावण का यदि तुम राजाओं से भरी सभा में बल देखना चाहते हो तो भले ही देख लो, किंतु तिनके के समान इस हल्के धनुष में क्या वीरता देखोगे ? 

  ऐसा कह कर दशमुख रावणने उस बड़े भारी धनुषको पहिले अपने बायें हाथसे ही हिलाना चाहा, लेकिन वह तनिक भी नहीं हिला। तब उसने दाहिने हाथसे पकड़कर हिलाना चाहा, तिसपर भी जब वह नहीं हिला, तब रावणको बड़ा आश्चर्य हुआ और एक साथ दोनों हाथोंसे उठाना चाहा। फिर तीनसे, फिर चारसे इस प्रकार करते-करते जब बीसो भुजायें एक साथ लगा दीं, तब कहीं वह एक ओर से कुछ ऊंचा हुआ । तब उसने उन्नीस भुजाओंसे उस महान् धनुषको सम्हाला तथा बीसवीं भुजासे जमीनपर लटकती हुई तांत (डोरी) को पकड़कर ज्यों ही उपरको उठाना चाहा, त्यों ही वह धनुष उलटकर उसकी छातीपर गिर पड़ा । तब बीसों हाथोंसे भी रावण उस धनुषको अपनी छातीपर से नहीं हटा सका और उपर मुख किये पृथ्वीपर धड़ामसे गिर पड़ा । उसके सिरका मुकुट दूर जा गिरा और घोती की लांग खुल गयी। यह देख सबके सब राजे खिलखिलाकर हँस पड़े । रावण बेचारेके पसीना निकलने लगा, आँखे घूमने लगी और मुखसे लार गिरने लगी । उसके सब मन्त्रियों तथा सैनिकोंने आकर घेर लिया, परन्तु उन सबसे भी धनुष नहीं उठा। पहिने हुए सुन्दर वस्त्रों में रावणका मल-मूत्र निकल पड़ा। रावण जैसे वीरकी यह दशा देख राजा जनक को और भी शंका हुई और वे घबड़ाकर कहने लगे ।। ८१ ।। क्या कोई भी वीर पुरुष इस भूतलपर नहीं रहा ? क्या पृथ्वी वीरोंसे शून्य हो गयी ? यदि कोई हो तो इस सभा में राजाओंके सामने रावणको जीवनदान देकर बचाये। उनके इस वाक्यरूपी बाण से पीडित होकर राम तथा लक्ष्मण जिनकी भौंहें क्रोधके मारे फड़क रही थीं, विश्वामित्र के मुख के तरफ देखने लगे। तब विश्वामित्र जी ने कहा - हे राघव ! खड़े हो जाओ और इस रावण के प्राण बचाओ। तुम्हारे देखते रावण मर रहा है ये ठीक नहीं है। इसे बचाकर धनुष को भी सज्जित करो (अर्थात् धनुष पर डोरी चढ़ाओ)।"

 तब भगवान राम धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाते हैं और रावण लज्जित होकर लंका भाग जाता है।

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