जो गुरु शिष्य का धन हरण करता है, पर शोक नहीं हरण करता, वह घोर नरक में पड़ता है। माता-पिता बालकों को बुलाकर वही धर्म सिखलाते हैं, जिससे पेट भरे॥
पढ़ने जा रहे हैं, पेट भरने की विद्या सीखने। पढ़कर आए तो अब विवाह हो गया। अब जो ममता माता-पिता में थी वह अब श्रीमती जी से बंध गई।
युवावस्था ऐसे ही गुजर गया। अब जब बुढ़ापा आया तो रोग ग्रस्त हो गया। पकड़ लिया रोगों ने। अब जैसे आए थे वैसे ही चले गए।
पुनरपि जनमं पुनरपि मरणं।
पुनरपि जननी जठरे शयनं।।
बार-बार हम जन्म लेते हैं, बार-बार मरते हैं। यह आने जाने से छुटकारा तो तभी मिलेगा । जीव जब भक्ति का आश्रय लेगा।
एक बार माता देवहूति ने कपिल मुनि जी से पूछा कि माता के गर्भ में जीव को काफी सुकून मिलता होगा, न ठंडी की चिंता न गर्मी की चिंता और न भोजन की, तो भगवान कपिल कहते हैं- माता !
अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च ॥
समस्त प्राणियों में मैं विराजमान हूं। जिसने मुझे सब में नहीं देखा, उसको मैं मंदिर में भी मिल जाऊं यह पक्का नहीं है। सब में जो मेरा दर्शन करते हैं, उन्हीं को मेरी प्राप्ति मंदिर में होती है। इन भावनाओं से ओतप्रोत जिनका अंतर ह्रदय नहीं है। वह इस संसार सागर में भटकते रहते हैं। बार-बार आना बार-बार जाना, यही क्रम उनका बना होता है।
माता ने पूछा- यह नरक स्वर्ग में जीव जाता है इसका पता कैसे लगता है ?
भगवान कहते हैं- माता! हमारा शरीर तीन प्रकार का होता है। उसमें एक होता है, पांच भौतिक शरीर।
क्षिति जल पावक गगन समीरा।
पंच रचित अति अधम शरीरा।।
इन पांच तत्वों से जो हमारा शरीर बनता है। परंतु इस शरीर की मृत्यु के बाद इस शरीर से जो निकल कर जाता है। उसे कहते हैं सूक्ष्म शरीर और वह इतना छोटा होता है, कि एक बाल के अग्रभाग के हम सौ टुकडे करें। उनमें फिर जो एक टुकड़ा बचे उसके सौ टुकड़े करें। उसमें फिर जो एक टुकड़ा बचे उसके सौ टुकड़े करें। उसमें जो एक टुकड़ा बचे उतना बड़ा होता है।
मतलब उसे इन आंखों से तो देखा ही नहीं जा सकता माता। उस सूक्ष्म शरीर से जीव जाता है। तब जाते-जाते बीच में उसका बदलाव हो जाता है। यदि उसने पाप कर्म किया है, तो उसे मिलेगा यातना शरीर और पुण्य किया है; तो मिलेगा दिव्य शरीर। अब यातना शरीर के द्वारा व्यक्ति जाता है नरक में और नरक की यातनाओं को भोगने के बाद वह मनुष्य फिर आता है मृत्यु लोक में।
यदि मुक्ति नहीं मिली तो फिर आएगा वह यहां आकर मान लो किसी कीड़े मकोड़ों में प्रवेश कर गया। किसी जानवर के जानवर के शरीर में प्रवेश कर गया। या फिर पिताजी के रेता कर्ण का आश्रय लेकर प्राणी माता के गर्भ में चला जाता है।
कललं त्वेकरात्रेण पंचरात्रेण बुद्बुदम्।
दशाहेन तु कर्कन्धु: पेश्यण्डं वा तत: पारम्।।
अर्थात माता के गर्भ में जीव जब आता है न मैया तो -
कललं त्वेकरात्रेण
जब यह एक रात्रि का होता है, तब कलल नाम की इसकी संज्ञा होती है। इसका नाम होता है कलल और पंचरात्रेण बुद्बुदम्।
पांचवें रात्रि में यह बुलबुला जैसा हो जाता है। *दशाहेन तु कर्कन्धु:* जब यह 10 रात्रि का होता है। तब बेर के फल जैसा होता है।
पेश्यण्डं वा तत: पारम्।।
एक माह में यह अंडे जितना हो जाता है। और 2 माह का होते होते जीव के सिर का निर्माण होता है। इसमें सात मटेरियल मिलाया जाता है।
हम मकान बनाते हैं न। देखो उसमें सरिया डालते हैं पत्थर डालते हैं। इसमें सीमेंट लगाते हैं और फिर प्लास्टर कर देते है। ऐसे ही जब भगवान शरीर को बनाते हैं ना, तो इसमें सात पदार्थ लगते हैं भागवत में लिखा है।
त्वक् चर्म मांस रुधिर मेदमज्जास्थिधातव।।
ये सात प्रकार के धातु से शरीर बनता है। त्वक, चर्म, मांस, रुधिर, मेद, मज्जा, और सरिया मतलब हड्डी। यह मॉडल तीन महीने में बनकर तैयार हो जाता है।
अब यह कन्या के रूप में है तो माता के बाएं कुक्षी में रहता है और पुरुष के रूप में हो, तो दाहिनी कुक्षी में वास करता है। माता बोली- ठीक बात है! तो माता के गर्भ में ठीक ठाक तो रहता होगा ना मनुष्य। बोले- यही मत पूछो माता!
गर्भवास समं दुःखं, न भूतो न भविष्यति।
माता के गर्भ में जितना कष्ट होता है, इतना कष्ट तो ना कभी हुआ है और ना कभी होगा। बहुत तकलीफ पाता है यह जीवात्मा। क्योंकि बहुत कोमल होता है ना, गर्भ में जो छोटे-छोटे जीव हैं। कीटाणु परमाणु वे इसको काटते हैं। अब कभी-कभी माताजी कड़वी चीज खा लेती हैं, तो इसको कष्ट होता है। गर्म चीज पाली तो भी बड़ा कष्ट होता है। अब सातवां महीना आते-आते मैया! यह बिल्कुल तैयार हो जाता है और इस सातवें महीना में इसको, जन्म जन्मांतर की बातें याद आती हैं। और भगवान से खूब प्रार्थना भी करता -
तस्योपसन्नवितुं जगदिच्छयात्त
नाना तनो र्भुवि चलच्चरणारविंदम्।
सोहं वृजामि शरणं ह्यकुतो भयं मे
ये नेदृशी गतिरदर्श्य सतोनुरूपा।।
जीव, भगवान से कहता है- मुझे एक बार इस गर्व से बाहर निकालो केशव। फिर मैं ऐसा भजन करूंगा, ऐसा भजन करूंगा। कि कभी गर्भ में आना ही ना पड़े, मैं सत्य कहता हूं आपने बड़ी कृपा की जो मानव बनाया मुझे।
जीव कहता है कि बस इस बार भेजो मुझे दुनिया में फिर तो भजन करते-करते ढेर लगा दूंगा। ऐसी स्तुति करता है। भगवान की, मानो कभी-कभी कहता है। नहीं-नहीं बाहर तो मुझे माया पकड़ लेगी। मैं तो यही ठीक हूं।
तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम्॥
भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि तुम सब काल में मेरा निरन्तर स्मरण करो; और युद्ध करो मुझमें अर्पण किये मन, बुद्धि से युक्त हुए निःसन्देह तुम मुझे ही प्राप्त होओगे।।
हरिर्हि साक्षात्भगवान् शरीरिणामात्मा झाषाणामिव तोयमिप्सितम्
ईश्वर सभी प्राणियों की आत्मा का आत्मा है । गोविंद कहते हैं- मुझे सब मालूम है, यह गर्भ ज्ञान, गर्भ में ही छोड़कर जाएगा। दसवां मास आरंभ होते-होते प्रसव के वायु का वेग आया। और जीव संसार में आ गया।
मैया बोली अच्छा हुआ। तुम कहते थे ना कि गर्भ में बड़ा दु:ख पाता है।
जनमत मरत दुसह दुख होई।
जन्म और मृत्यु के समय अपार कष्ट होता है। ग्रामीण क्षेत्र के लोग कहते हैं मरते समय 100 बिच्छू एक साथ काट रहे हों उतना कष्ट मरने वाले को होता है।
कपिलजी बोले- यहां भी तो सुख नहीं है माता। बालक जन्म लेता है, पालने में सो रहा है और खटमल खा रहे हैं। तब वह किसी को बता नहीं सकता कि मुझे खटमल खा रहा है, कि मच्छर काट रहा है। वह रोता है तो मां सोचती है भूखा है। तो मुंह में बोतल दे देती है। जब भूख से पीड़ित हो रोता है तो मां सोचती है ज्यादा पीने से अपच हो गया है इसलिए रो रहा है। अब वह बता नहीं सकता कि मुझे कष्ट किस बात का है।
उसका बचपन ऐसे ही निकल जाता है फिर थोड़ा और बड़ा हुआ तो श्रीमान् जी पढ़ने जा रहे हैं DOG डॉग माने कुत्ता, RAT रैट रैट माने…. अब देखो चूहा, बिल्ली, कुत्ता, गधा यह सब जपने लग गया।
ईश्वर को याद करने में कृपणता क्यों ?
आज के मानव तो आधुनिक युग में आधुनिक शिक्षा पद्धति ग्रहण कर ईश्वर को भूला बैठा है
एक कहानी याद आती है - एक महात्मा ने किसी भक्त की सेवा-भावना से प्रसन्न होकर उसे चार दिन के लिए पारसमणि देकर कहा, वैसे भी लोग कहते हैं कि जिंदगी चार दिन की है, तो उसी चार दिन के पारसमणि दिया। इसे छूने से लोहा सोना हो जाता है। जितने सोने की जरूरत हो, बना लो, चार दिन बाद वह वापस ले ली जाएगी।"
भक्त बड़ा प्रसन्न हुआ कि अब मेरा सारा दरिद्र दूर हो जाएगा। पर वह था बड़ा कंजूस । सस्ता लोहा बड़ी तादाद में ढूँढ़ने लगा। जिस दुकान पर वह गया, वहाँ उसकी समझ में लोहा थोड़ा था और महँगा भी था। बहुत सस्ता और बहुत बड़ा ढेर ढूँढ़ने के लालच में वह कई नगरों में गया, पर उसे कहीं संतोष न हुआ।
इसी भाग-दौड़ में चार दिन पूरे हो गए। मणि वापस ले ली गई और वह रत्ती भर भी राम नाम रुपी सोना प्राप्त न कर सका। अंत में उसे चार दिन के बाद चार लोग मिले जो राम नाम सत्य है का जाप कर रहे थे।
सुमिरन की सुधि यों करो, ज्यों गागर पनिहार।
बोलत डोलत सुरति में, कहे कबीर विचार॥
भगवान को उसी तरह याद करो जैसे गाँव की महिला अपने सिर पर रखे पानी के बर्तन को याद रखती है। वह दूसरों से बात करती है और रास्ते पर चलती है, लेकिन उसका हाथ बर्तन को पकड़े रहता है।
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