भौतिक-सुख दु:ख के मूल कारण हैं

Sooraj Krishna Shastri
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  मानव इस संसार रूपी हाट में सभी नाम रूपी सच्चा सौदा लेने आए हैं, लेकिन मन रूपी दलाल के कुचक्र में पड़कर सबने नाम रूपी सच्चे सौदे को भूला दिया है। संत-महात्मा जो पुकारा कर रहे हैं कि सद्‌गुरु ही सहारा देने वाले सहारनपुर हैं। सद्‌गुरु का सहारा लेकर उनके बताये गये मार्ग से जाओ, जहाँ प्रभु का दर्शन होगा। चित्त रूपी अमृत सरोवर में डुबकी लगाना अर्थात् तन्मयता से ईश्वर का भजन करना चाहिए। यह जीवन जो देव-दुर्लभ है, क्षणभंगुर भी है। यह शरीर रूपी मिट्टी का घड़ा मृत्यु की एक ठोकर से ही टूट जायेगा। इसलिए शीघ्रातिशीघ्र परमात्मा के ही भजन लगाना चाहिए। यह बेशकीमती मानव-तन तो भजन के लिए ही मिला है। यह तन तो काँच के महल के समान क्षणभंगुर है। इसके दसों दरवाजे खुले हैं, इस में बसने वाला स्वाँस रूपी पक्षी कभी भी निकल कर उड़ भागने के लिए तैयार है, कभी भी उड़ जायेगा। इसलिए देर मत करो भौतिक सम्पदा और राज्य-वैभव में यदि सच्चा सुख मिलता तो महावीर स्वामी और महात्मा बुद्ध राजपाट का परित्याग कर भजन-ध्यान नहीं करते। उन दोनों महापुरुषों के पास भौतिक सुख-सम्पदा के साधन प्रचुर मात्रा में थे, परन्तु उन्होंने पाया कि भौतिक सुख तो दु:ख के मूल कारण है, इन्द्रिय-सुख क्षणिक है। दु:खों की निवृत्ति एवं मुक्ति का उपाय उन्होंने खोजा। उनके अनुसार जीवन का परम लक्ष्य निर्वाण है, निर्वाण की प्राप्ति सत्कर्म एवं सन्मार्ग से ही संभव है। सत्कर्म ज्ञान से होता है। अतः ज्ञान की उपलब्धि से ही कैवल्य की प्राप्ति होती है।

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