गोस्वामी तुलसीदास जी नित्य प्रातः भ्रमण के लिए घर से निकलते थे।
एक दिन भ्रमण करते समय उन्होंने देखा कि रास्ते में एक पेड़ सूख रहा है। उन्हें उस सूखते हुए पेड़ को देखकर बड़ा कष्ट हुआ।
उन्होंने सोचा कि इस पेड़ को जीवनदान दिया जाना चाहिए। दरअसल वह पेड़ जल न मिलने के कारण सूख रहा था। तुलसी दास जी ने निश्चय किया कि वह इस सूखते हुये वृक्ष को फिर से हरा-भरा करेंगे।
उस पेड़ के आस पास जल का कोई स्रोत नहीं था। तब उन्होनें निश्चय किया कि वह अपने घर से जल लाकर उस सूखते हुये पेड़ को सींचेगे।
अब तुलसीदास जी जब भी नित्य भ्रमण के लिए निकलते तो वह अपने साथ एक जल का कमंडल भी ले जाते।
यह जल उनके भ्रमण मार्ग के उस वृक्ष के लिए था, जो सूख रहा था। वह नित्य उस सूखते हुये वृक्ष को जल देने लगे। उन्होंने उस पेड़ के आसपास की गंदगी और झाड़-झंकाड़ भी हटा दी।
कुछ ही दिनों में गोस्वामी तुलसीदास जी की मेहनत रंग लायी और वह सूखा हुआ पेड़ फिर से हरा-भरा होने लगा। उस पेड़ के हरा-भरा होने पर पता चला कि वह पेड़ कीकर का था।
उस पेड़ पर एक प्रेत रहता था। गोस्वामी जी के अच्छे आचरण के कारण वह प्रेत उन पर प्रसन्न हो गया।
एक दिन प्रातःकाल के समय गोस्वामी तुलसीदास जी जब उसी वृक्ष के निकट ही बैठे थे कि तभी उस पेड़ का प्रेत गोस्वामी तुलसीदास जी के सामने आ गया।
वह तुलसी दास जी से बोला कि हे महात्मा, मैं आपसे बहुत प्रसन्न हूँ। मैं इसी कीकर के पेड़ पर रहता हूं। पानी के अभाव में यह पेड़ लगभग मृतप्राय हो गया था, लेकिन आप की देखभाल से इसने पुनः जीवन पा लिया।
हे महात्मा, आपने मेरा आवास नष्ट होने से बचा लिया।
मैं आपसे बहुत प्रसन्न हूँ, यदि आपकी कोई मनोकामना हो तो मुझे बतायें। मैं आपका मनोरथ सिद्ध करने में आपकी सहायता करना चाहता हूँ।
तुलसी दास जी ने उस प्रेत से कहा कि तुम मेरी सहायता किस प्रकार कर सकते हो? तुम तो खुद ही प्रेत योनि में भटक रहे हो?
तब उस प्रेत ने बताया कि मैं मनुष्य योनि में एक सिद्ध साधु था, शायद किसी गलती के कारण प्रेत बना। हो सकता है़ कि मेरी पूजा-पाठ का लाभ आपको मिल जाये।
प्रेत की बात सुनकर तुलसी दास जी को यह विश्वास हो गया कि यह प्रेत कोई भली आत्मा है़, हो सकता है़ वह मुझे मेरे प्रभुजी के दर्शन का कोई मार्ग दिखा दे।
इसीलिए तुलसी दास जी ने अपने मन की बात उस प्रेत को बता दी।
गोस्वामी तुलसीदास जी ने उस प्रेत को बताया कि वह श्री रामजी और हनुमान जी के भक्त हैं। उन्होंने उस प्रेत से भगवान श्री रामजी और हनुमान जी के दर्शन कराने की बात कही।
उस प्रेत ने तुलसीदास जी से कहा कि हे महात्मा, मैं आपकी इस मनोकामना को अवश्य पूर्ण करवाने की कोशिश करूंगा।
उस प्रेत ने गोस्वामी तुलसीदास जी को बताया कि हनुमान जी राम जी की कथा में सबसे पहले आते हैं, और सबसे अंत में उठ कर जाते हैं। आप भी उस कथा में जाइए और वहां उनके दर्शन आपके लिए सुगम हो सकते हैं। तुलसीदास जी भी उस कथा में जाने लगे। वहां एक कोड़ी के रूप में हनुमान जी कंबल ओढ़ कर सबसे पहले आ बैठते, वह सबसे अंत में श्री राम जी कथा समाप्त हो जाने पर उठ कर जाते। तुलसीदास जी ने उनके चरण पकड़ लिये, और कहा कि हे हनुमंतलाल जी! मैंने आपको पहचान लिया आप ही श्री राम जी के दर्शन करवाने में मेरी मदद कर सकते हैं। पहले तो हनुमान जी ने मना किया कि वह तो कोड़ी है। लेकिन तुलसीदास जी की ज़िद करने पर अंत में हनुमान जी अपने असली स्वरूप में आ गए और भगवान श्री राम जी के दर्शनों का मार्ग बताया कि चित्रकूट में प्रभु राम जी के आपको दर्शन होंगे। एक दिन तुलसीदास जी जंगलों में राम नाम का जाप कर रहे थे। तभी दो बालक घुड़सवार उस जंगल में आए। उन्होंने तुलसीदास जी से मार्ग पूछा, तुलसीदास जी ने उन्हें वह मार्ग बता दिया। बाद में हनुमान जी आए उन्होंने तुलसीदास जी से कहा कि उन्होंने श्री राम जी और श्री लक्ष्मण जी के दर्शन कर लिए होंगे। वे बालक रूप में घोड़े पर आकर आपको रास्ता पूछ रहे थे। तुलसीदास जी बहुत पछताये कि उन्होंने प्रभु जी के दर्शन तो कर लिए, लेकिन उनको ना पहचान पाने के कारण प्रणाम तक ना कर पाए। उन्होंने हनुमान जी से प्रभु राम जी के दोबारा दर्शन करवाने का अनुरोध किया हनुमान जी की प्रेरणानुसार अगले दिन तुलसीदास जी चित्रकूट के घाट पर चंदन घिसने लगे। और आम जनमानस को तिलक करने लगे वहां प्रभु राम जी भी आए। उन्होंने तुलसीदास जी से कहा, बाबाजी तिलक लगा दो। तुलसीदास जी ने तिलक लगा दिया। वहां ऊपर से पेड़ पर बैठे हनुमान जी सोचने लगे कि आज भी तुलसीदास जी ने प्रभु राम जी को नहीं पहचाना, तो वे बोले,
"चित्रकूट के घाट पर भई संतान की भीड़! तुलसीदास चंदन घिसे तिलक लेत रघुवीर!
अब तुलसीदास जी ने पहचान लिया और प्रभु श्री राम जी के चरणों में लोट गए। इस प्रकार उस प्रेत ने गोस्वामी तुलसीदास जी की हनुमान जी व श्री राम जी के दर्शन कराने में सहायता की। भगवान जी के दर्शन होने के पश्चात उन्हें श्री राम जी द्वारा श्री रामचरितमानस जी की रचना करने की प्रेरणा प्राप्त हुई..।
thanks for a lovly feedback