सनातन परम्परा में प्रयुक्त सभी वस्तु आदि के शास्त्रीय स्वरूप निर्धारित हैं। सभी सम्प्रदायों में जप का विधान है । जपार्थ माला को गोमुखी के अन्दर रखना अनिवार्य है। शान्त्यर्थ जप के समय गोमुखी से तर्जनी को बाहर करके मणिबन्ध पर्यन्त हाथ को अन्दर रखने का विधान है । प्रकृति में गोमुखी के शास्त्रीय लक्षण पर विचार किया जाता है। गोमुखी माने गौ के मुख जैसा वस्त्र ।
"वस्त्रेणाच्छाद्य च करं दक्षिणं य: सदा जपेत् ।
तस्य स्यात्सफलं जाप्यं तद्धीनमफलंस्मृतम् ।।
अत एव जपार्थं सा गोमुखी ध्रियते जनै: ।।
(आ.सू.वृद्धमनु)
गोमुखी से अतिरिक्त आधुनिक झोली में मणिबन्धपर्यन्त दायें हाथ को ढँकना सम्भव नहीं है ।
गोमुखादौ ततो मालां गोपयेन्मातृजारवत् ।
कौशेयं रक्तवर्णं च पीतवस्त्रं सुरेश्वरि ।।
अथ कार्पासवस्त्रेण यन्त्रतो गोपयेत्सुधी: ।
वाससाऽऽच्छादयेन्मालां सर्वमन्त्रे महेश्वरि ।।
न कुर्यात्कृष्णवर्णं तु न कुर्याद्बहुवर्णकम् ।
न कुर्याद्रोमजं वस्त्रमुक्तवस्त्रेण गोपयेत्।।
(कृत्यसारसमुच्चय)
सूती वस्त्र का गोमुखादि कौशेय, रक्त अथवा पीत वर्ण का हो । काला, हरा, नीला, बहुरङ्गी या रोमज न हो । पुन: इसके विशेष मान भी हैं-
चतुर्विंशाङ्गुलमितं पट्टवस्त्रादिसम्भवम् ।
निर्मायाष्टाङ्गुलिमुखं ग्रीवायां षड्दशाङ्गुलम् ।
ज्ञेयं गोमुखयन्त्रञ्च सर्वतन्त्रेषु गोपितम् ।
तन्मुखे स्थापयेन्मालां ग्रीवामध्यगते करे ।
प्रजपेद्विधिना गुह्यं वर्णमालाधिकं प्रिये ।
निधाय गोमुखे मालां गोपयेन्मातृजारवत् ।।
(मुण्डमालातन्त्र)
२४ अङ्गुल परिमित पट्टवस्त्रादि से निर्माण करे, जिसमें ८ अङ्गुल का मुख और १६ अङ्गुल की ग्रीवा हो । गोमुखवस्त्र के मुख से माला को प्रवेश कराये और ग्रीवा के अभ्यन्तर में हाथ को रखकर गोपनीयता से यथाविधि जप करे ।
इसी प्रकार के अनेक आगमप्रमाण हैं । आधुनिक झोली की शास्त्रीयता उपलब्ध नहीं होती है । प्रचुरमात्रा में कुछ गोविरोधियों ने किसी भारतीय पन्थविशेष में प्रवेश कर अतिशय भक्ति का अभिनय दिखाकर पवित्र गोमुखी के बदले अवैध झोली का दुष्प्रचार कर दिया और दुर्भाग्य से यहाँ के बड़े-बड़े धर्मोपदेशकों ने भी चित्र-विचित्र उस अशास्त्रीय वस्त्र को स्वीकार कर लिया।
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