Secure Page

Welcome to My Secure Website

This is a demo text that cannot be copied.

No Screenshot

Secure Content

This content is protected from screenshots.

getWindow().setFlags(WindowManager.LayoutParams.FLAG_SECURE, WindowManager.LayoutParams.FLAG_SECURE); Secure Page

Secure Content

This content cannot be copied or captured via screenshots.

Secure Page

Secure Page

Multi-finger gestures and screenshots are disabled on this page.

getWindow().setFlags(WindowManager.LayoutParams.FLAG_SECURE, WindowManager.LayoutParams.FLAG_SECURE); Secure Page

Secure Content

This is the protected content that cannot be captured.

Screenshot Detected! Content is Blocked

श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 11 ( Srimad Bhagwat Geeta Chapter 11) - विश्व-रूप-दर्शन योग

Srimad Bhagwat Geeta Chapter 11 Vishwa-roop-darshan Yoga, श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 11 ( Srimad Bhagwat Geeta Chapter 11) - विश्व-रूप-दर्शन योग,

Srimad Bhagwat Geeta Chapter 11 Vishwa-roop-darshan Yoga
Srimad Bhagwat Geeta Chapter 11
Vishwa-roop-darshan Yoga



                  

                अर्जुन उवाच

 

मदनुग्रहाय परमं गुह्यमध्यात्मसंज्ञितम् ।

यत्त्वयोक्तं वचस्तेन मोहोऽयं विगतो मम ॥ १॥

 

भवाप्ययौ हि भूतानां श्रुतौ विस्तरशो मया ।

त्वत्तः कमलपत्राक्ष माहात्म्यमपि चाव्ययम् ॥ २॥

 

एवमेतद्यथात्थ त्वमात्मानं परमेश्वर ।

द्रष्टुमिच्छामि ते रूपमैश्वरं पुरुषोत्तम ॥ ३॥

 

मन्यसे यदि तच्छक्यं मया द्रष्टुमिति प्रभो ।

योगेश्वर ततो मे त्वं दर्शयात्मानमव्ययम् ॥ ४॥

 

                  श्रीभगवानुवाच

 

पश्य मे पार्थ रूपाणि शतशोऽथ सहस्रशः ।

नानाविधानि दिव्यानि नानावर्णाकृतीनि च॥ ५॥

 

पश्यादित्यान्वसून्रुद्रानश्विनौ मरुतस्तथा ।

बहून्यदृष्टपूर्वाणि पश्याश्चर्याणि भारत ॥ ६॥

 

इहैकस्थं जगत्कृत्स्नं पश्याद्य सचराचरम् ।

मम देहे गुडाकेश यच्चान्यद् द्रष्टुमिच्छसि ॥ ७॥

 

न तु मां शक्यसे द्रष्टुमनेनैव स्वचक्षुषा ।

दिव्यं ददामि ते चक्षुः पश्य मे योगमैश्वरम् ॥ ८॥

 

                 सञ्जय उवाच

 

एवमुक्त्वा ततो राजन्महायोगेश्वरो हरिः ।

दर्शयामास पार्थाय परमं रूपमैश्वरम् ॥ ९॥

 

अनेकवक्त्रनयनमनेकाद्भुतदर्शनम् ।

अनेकदिव्याभरणं दिव्यानेकोद्यतायुधम् ॥ १०॥

 

दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्यगन्धानुलेपनम् ।

सर्वाश्चर्यमयं देवमनन्तं विश्वतोमुखम् ॥ ११॥

 

दिवि   सूर्यसहस्रस्य    भवेद्युगपदुत्थिता ।

यदि भाः सदृशी सा स्याद्भासस्तस्य महात्मनः॥ १२॥

 

तत्रैकस्थं जगत्कृत्स्नं प्रविभक्तमनेकधा ।

अपश्यद्देवदेवस्य शरीरे पाण्डवस्तदा ॥ १३॥

 

ततः स विस्मयाविष्टो हृष्टरोमा धनञ्जयः ।

प्रणम्य शिरसा देवं कृताञ्जलिरभाषत ॥ १४॥

 

                   अर्जुन उवाच

 

पश्यामि देवांस्तव देव देहे

           सर्वांस्तथा भूतविशेषसङ्घान् ।

ब्रह्माणमीशं कमलासनस्थ-

           मृषींश्च सर्वानुरगांश्च दिव्यान् ॥ १५॥

 

अनेकबाहूदरवक्त्रनेत्रं

         पश्यामि त्वां सर्वतोऽनन्तरूपम्।

नान्तं न मध्यं न पुनस्तवादिं

             पश्यामि विश्वेश्वर  विश्वरूप ॥ १६॥

 

किरीटिनं गदिनं चक्रिणं च

          तेजोराशिं सर्वतो दीप्तिमन्तम् ।

पश्यामि त्वां दुर्निरीक्ष्यं समन्ताद्

               दीप्तानलार्कद्युतिमप्रमेयम् ॥ १७॥

 

त्वमक्षरं परमं वेदितव्यं

          त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम् ।

त्वमव्ययः शाश्वतधर्मगोप्ता

             सनातनस्त्वं पुरुषो मतो मे ॥ १८॥

 

अनादिमध्यान्तमनन्तवीर्य-

              मनन्तबाहुं शशिसूर्यनेत्रम् ।

पश्यामि त्वां दीप्तहुताशवक्त्रं

          स्वतेजसा विश्वमिदं तपन्तम् ॥ १९॥

 

द्यावापृथिव्योरिदमन्तरं हि

          व्याप्तं त्वयैकेन दिशश्च सर्वाः ।

दृष्ट्वाद्भुतं रूपमुग्रं तवेदं

          लोकत्रयं प्रव्यथितं महात्मन् ॥ २०॥

 

अमी हि त्वां सुरसङ्घा विशन्ति

        केचिद्भीताः प्राञ्जलयो गृणन्ति ।

स्वस्तीत्युक्त्वा महर्षिसिद्धसङ्घाः

   स्तुवन्ति त्वां स्तुतिभिः पुष्कलाभिः॥ २१॥

 

रुद्रादित्या वसवो ये च साध्या

          विश्वेऽश्विनौ मरुतश्चोष्मपाश्च ।

गन्धर्वयक्षासुरसिद्धसङ्घा

        वीक्षन्ते त्वां विस्मिताश्चैव सर्वे ॥ २२॥

 

रूपं महत्ते बहुवक्त्रनेत्रं

               महाबाहो बहुबाहूरुपादम् ।

बहूदरं बहुदंष्ट्राकरालं

        दृष्ट्वा लोकाः प्रव्यथितास्तथाहम्॥ २३॥

 

नभःस्पृशं दीप्तमनेकवर्णं

            व्यात्ताननं दीप्तविशालनेत्रम् ।

दृष्ट्वा हि त्वां प्रव्यथितान्तरात्मा

        धृतिं न विन्दामि शमं च विष्णो॥ २४॥

 

दंष्ट्राकरालानि च ते मुखानि

               दृष्ट्वैव कालानलसन्निभानि ।

दिशो न जाने न लभे च शर्म

                प्रसीद देवेश जगन्निवास ॥ २५॥

 

अमी च त्वां धृतराष्ट्रस्य पुत्राः

                सर्वे सहैवावनिपालसङ्घैः ।

भीष्मो द्रोणः सूतपुत्रस्तथासौ

             सहास्मदीयैरपि योधमुख्यैः ॥ २६॥

 

वक्त्राणि ते त्वरमाणा विशन्ति

             दंष्ट्राकरालानि भयानकानि ।

केचिद्विलग्ना दशनान्तरेषु

             सन्दृश्यन्ते चूर्णितैरुत्तमाङ्गैः ॥ २७॥

 

यथा नदीनां बहवोऽम्बुवेगाः

               समुद्रमेवाभिमुखा द्रवन्ति ।

तथा तवामी नरलोकवीरा

        विशन्ति वक्त्राण्यभिविज्वलन्ति ॥ २८॥

 

यथा प्रदीप्तं ज्वलनं पतङ्गा

             विशन्ति नाशाय समृद्धवेगाः ।

तथैव नाशाय विशन्ति लोका-

            स्तवापि वक्त्राणि समृद्धवेगाः ॥ २९॥

 

लेलिह्यसे ग्रसमानः समन्ताल्-

            लोकान्समग्रान्वदनैर्ज्वलद्भिः ।

तेजोभिरापूर्य जगत्समग्रं

         भासस्तवोग्राः प्रतपन्ति विष्णो ॥ ३०॥

 

आख्याहि मे को भवानुग्ररूपो

               नमोऽस्तु ते देववर प्रसीद ।

विज्ञातुमिच्छामि भवन्तमाद्यं

           न हि प्रजानामि तव प्रवृत्तिम् ॥ ३१॥

 

                 श्रीभगवानुवाच

 

कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो

                लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः।

ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे

         येऽवस्थिताः प्रत्यनीकेषु योधाः ॥ ३२॥

 

तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व

        जित्वा शत्रून् भुङ्क्ष्व राज्यं समृद्धम्।

मयैवैते निहताः पूर्वमेव

           निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन् ॥ ३३॥

 

द्रोणं च भीष्मं च जयद्रथं च

           कर्णं तथान्यानपि योधवीरान् ।

मया हतांस्त्वं जहि मा व्यथिष्ठा

           युध्यस्व जेतासि रणे सपत्नान् ॥ ३४॥

 

                     सञ्जय उवाच

 

एतच्छ्रुत्वा वचनं केशवस्य

              कृताञ्जलिर्वेपमानः किरीटी ।

नमस्कृत्वा भूय एवाह कृष्णं

                सगद्गदं भीतभीतः प्रणम्य ॥ ३५॥

 

                    अर्जुन उवाच 

 

स्थाने हृषीकेश तव प्रकीर्त्या

                  जगत्प्रहृष्यत्यनुरज्यते च ।

रक्षांसि भीतानि दिशो द्रवन्ति

            सर्वे नमस्यन्ति च सिद्धसङ्घाः ॥ ३६॥

 

कस्माच्च ते न नमेरन्महात्मन्

               गरीयसे ब्रह्मणोऽप्यादिकर्त्रे ।

अनन्त देवेश जगन्निवास

                  त्वमक्षरं सदसत्तत्परं यत् ॥ ३७॥

 

त्वमादिदेवः पुरुषः पुराण-

           स्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम् ।

वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम

                  त्वया ततं विश्वमनन्तरूप ॥ ३८॥

 

वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्कः

                 प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च ।

नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वः

               पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते ॥ ३९॥

 

नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते

                नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व ।

अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वं

             सर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः ॥ ४०॥

 

सखेति मत्वा प्रसभं यदुक्तं

                हे कृष्ण हे यादव हे सखेति ।

अजानता महिमानं तवेदं

                 मया प्रमादात्प्रणयेन वापि ॥ ४१॥

 

यच्चावहासार्थमसत्कृतोऽसि

                    विहारशय्यासनभोजनेषु ।

एकोऽथवाप्यच्युत तत्समक्षं

                  तत्क्षामये त्वामहमप्रमेयम् ॥ ४२॥

 

पितासि लोकस्य चराचरस्य

                त्वमस्य पूज्यश्च गुरुर्गरीयान् ।

न त्वत्समोऽस्त्यभ्यधिकः कुतोऽन्यो

                   लोकत्रयेऽप्यप्रतिमप्रभाव ॥ ४३॥

 

तस्मात्प्रणम्य प्रणिधाय कायं

                प्रसादये त्वामहमीशमीड्यम्।

पितेव पुत्रस्य सखेव सख्युः

              प्रियः प्रियायार्हसि देव सोढुम् ॥ ४४॥

 

अदृष्टपूर्वं हृषितोऽस्मि दृष्ट्वा

                  भयेन च प्रव्यथितं मनो मे ।

तदेव मे दर्शय देव रूपं

                    प्रसीद देवेश जगन्निवास ॥ ४५॥

 

किरीटिनं गदिनं चक्रहस्तं

                 इच्छामि त्वां द्रष्टुमहं तथैव ।

तेनैव रूपेण चतुर्भुजेन

                    सहस्रबाहो भव विश्वमूर्ते ॥ ४६॥

 

                    श्रीभगवानुवाच 

 

मया प्रसन्नेन तवार्जुनेदं

                  रूपं परं दर्शितमात्मयोगात् ।

तेजोमयं विश्वमनन्तमाद्यं

                   यन्मे त्वदन्येन न दृष्टपूर्वम् ॥ ४७॥

 

न वेदयज्ञाध्ययनैर्न दानै-

                 र्न च क्रियाभिर्न तपोभिरुग्रैः ।

एवंरूपः शक्य अहं नृलोके

                       द्रष्टुं त्वदन्येन कुरुप्रवीर ॥ ४८॥

 

मा ते व्यथा मा च विमूढभावो

                     दृष्ट्वा रूपं घोरमीदृङ्ममेदम् ।

व्यपेतभीः प्रीतमनाः पुनस्त्वं

                      तदेव मे रूपमिदं प्रपश्य ॥ ४९॥

 

                    सञ्जय उवाच

 

इत्यर्जुनं वासुदेवस्तथोक्त्वा

                  स्वकं रूपं दर्शयामास भूयः ।

आश्वासयामास च भीतमेनं

                भूत्वा पुनः सौम्यवपुर्महात्मा ॥ ५०॥

 

                    अर्जुन उवाच

 

दृष्ट्वेदं   मानुषं   रूपं   तव सौम्यं जनार्दन ।

इदानीमस्मि संवृत्तः सचेताः प्रकृतिं गतः ॥ ५१॥

 

                  श्रीभगवानुवाच

 

सुदुर्दर्शमिदं   रूपं    दृष्टवानसि   यन्मम ।

देवा अप्यस्य रूपस्य नित्यं दर्शनकाङ्क्षिणः॥ ५२॥

 

नाहं वेदैर्न तपसा न दानेन न चेज्यया ।

शक्य एवंविधो द्रष्टुं दृष्टवानसि मां यथा ॥ ५३॥

 

भक्त्या त्वनन्यया शक्य अहमेवंविधोऽर्जुन ।

ज्ञातुं   द्रष्टुं  च  तत्त्वेन  प्रवेष्टुं   च   परन्तप ॥ ५४॥

 

मत्कर्मकृन्मत्परमो  मद्भक्तः सङ्गवर्जितः ।

निर्वैरः सर्वभूतेषु यः स मामेति पाण्डव ॥ ५५॥

 

ॐतत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां

  योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे विश्वरूपदर्शनयोगो

              नामैकादशोऽध्यायः ॥११॥

 

COMMENTS

BLOGGER

FOLLOW ME

नाम

अध्यात्म,200,अनुसन्धान,21,अन्तर्राष्ट्रीय दिवस,4,अभिज्ञान-शाकुन्तलम्,5,अष्टाध्यायी,1,आओ भागवत सीखें,15,आज का समाचार,22,आधुनिक विज्ञान,22,आधुनिक समाज,151,आयुर्वेद,45,आरती,8,ईशावास्योपनिषद्,21,उत्तररामचरितम्,35,उपनिषद्,34,उपन्यासकार,1,ऋग्वेद,16,ऐतिहासिक कहानियां,4,ऐतिहासिक घटनाएं,13,कथा,6,कबीर दास के दोहे,1,करवा चौथ,1,कर्मकाण्ड,121,कादंबरी श्लोक वाचन,1,कादम्बरी,2,काव्य प्रकाश,1,काव्यशास्त्र,32,किरातार्जुनीयम्,3,कृष्ण लीला,2,केनोपनिषद्,10,क्रिसमस डेः इतिहास और परम्परा,9,गजेन्द्र मोक्ष,1,गीता रहस्य,2,ग्रन्थ संग्रह,1,चाणक्य नीति,1,चार्वाक दर्शन,3,चालीसा,6,जन्मदिन,1,जन्मदिन गीत,1,जीमूतवाहन,1,जैन दर्शन,3,जोक,6,जोक्स संग्रह,5,ज्योतिष,50,तन्त्र साधना,2,दर्शन,35,देवी देवताओं के सहस्रनाम,1,देवी रहस्य,1,धर्मान्तरण,5,धार्मिक स्थल,49,नवग्रह शान्ति,3,नीतिशतक,27,नीतिशतक के श्लोक हिन्दी अनुवाद सहित,7,नीतिशतक संस्कृत पाठ,7,न्याय दर्शन,18,परमहंस वन्दना,3,परमहंस स्वामी,2,पारिभाषिक शब्दावली,1,पाश्चात्य विद्वान,1,पुराण,1,पूजन सामग्री,7,पौराणिक कथाएँ,64,प्रत्यभिज्ञा दर्शन,1,प्रश्नोत्तरी,28,प्राचीन भारतीय विद्वान्,100,बर्थडे विशेज,5,बाणभट्ट,1,बौद्ध दर्शन,1,भगवान के अवतार,4,भजन कीर्तन,39,भर्तृहरि,18,भविष्य में होने वाले परिवर्तन,11,भागवत,1,भागवत : गहन अनुसंधान,27,भागवत अष्टम स्कन्ध,28,भागवत अष्टम स्कन्ध(हिन्दी),1,भागवत एकादश स्कन्ध,31,भागवत एकादश स्कन्ध(हिन्दी),1,भागवत कथा,134,भागवत कथा में गाए जाने वाले गीत और भजन,7,भागवत की स्तुतियाँ,4,भागवत के पांच प्रमुख गीत,3,भागवत के श्लोकों का छन्दों में रूपांतरण,1,भागवत चतुर्थ स्कन्ध,31,भागवत चतुर्थ स्कन्ध(हिन्दी),1,भागवत तृतीय स्कंध(हिन्दी),3,भागवत तृतीय स्कन्ध,33,भागवत दशम स्कन्ध,91,भागवत दशम स्कन्ध(हिन्दी),1,भागवत द्वादश स्कन्ध,13,भागवत द्वादश स्कन्ध(हिन्दी),1,भागवत द्वितीय स्कन्ध,10,भागवत द्वितीय स्कन्ध(हिन्दी),10,भागवत नवम स्कन्ध,38,भागवत नवम स्कन्ध(हिन्दी),1,भागवत पञ्चम स्कन्ध,26,भागवत पञ्चम स्कन्ध(हिन्दी),1,भागवत पाठ,58,भागवत प्रथम स्कन्ध,22,भागवत प्रथम स्कन्ध(हिन्दी),19,भागवत महात्म्य,3,भागवत माहात्म्य,15,भागवत माहात्म्य(हिन्दी),7,भागवत मूल श्लोक वाचन,55,भागवत रहस्य,53,भागवत श्लोक,7,भागवत षष्टम स्कन्ध,19,भागवत षष्ठ स्कन्ध(हिन्दी),1,भागवत सप्तम स्कन्ध,15,भागवत सप्तम स्कन्ध(हिन्दी),1,भागवत साप्ताहिक कथा,9,भागवत सार,34,भारतीय अर्थव्यवस्था,7,भारतीय इतिहास,21,भारतीय दर्शन,4,भारतीय देवी-देवता,8,भारतीय नारियां,2,भारतीय पर्व,48,भारतीय योग,3,भारतीय विज्ञान,37,भारतीय वैज्ञानिक,2,भारतीय संगीत,2,भारतीय संविधान,1,भारतीय संस्कृति,2,भारतीय सम्राट,1,भाषा विज्ञान,15,मनोविज्ञान,4,मन्त्र-पाठ,8,महाकुम्भ 2025,2,महापुरुष,43,महाभारत रहस्य,34,मार्कण्डेय पुराण,1,मुक्तक काव्य,19,यजुर्वेद,3,युगल गीत,1,योग दर्शन,1,रघुवंश-महाकाव्यम्,5,राघवयादवीयम्,1,रामचरितमानस,4,रामचरितमानस की विशिष्ट चौपाइयों का विश्लेषण,125,रामायण के चित्र,19,रामायण रहस्य,65,राष्ट्रीयगीत,1,रील्स,7,रुद्राभिषेक,1,रोचक कहानियाँ,150,लघुकथा,38,लेख,182,वास्तु शास्त्र,14,वीरसावरकर,1,वेद,3,वेदान्त दर्शन,9,वैदिक कथाएँ,38,वैदिक गणित,2,वैदिक विज्ञान,2,वैदिक संवाद,23,वैदिक संस्कृति,32,वैशेषिक दर्शन,13,वैश्विक पर्व,10,व्रत एवं उपवास,35,शायरी संग्रह,3,शिक्षाप्रद कहानियाँ,119,शिव रहस्य,1,शिव रहस्य.,5,शिवमहापुराण,14,शिशुपालवधम्,2,शुभकामना संदेश,7,श्राद्ध,1,श्रीमद्भगवद्गीता,23,श्रीमद्भागवत महापुराण,17,संस्कृत,10,संस्कृत गीतानि,36,संस्कृत बोलना सीखें,13,संस्कृत में अवसर और सम्भावनाएँ,6,संस्कृत व्याकरण,26,संस्कृत साहित्य,13,संस्कृत: एक वैज्ञानिक भाषा,1,संस्कृत:वर्तमान और भविष्य,6,संस्कृतलेखः,2,सनातन धर्म,2,सरकारी नौकरी,1,सरस्वती वन्दना,1,सांख्य दर्शन,6,साहित्यदर्पण,23,सुभाषितानि,8,सुविचार,5,सूरज कृष्ण शास्त्री,454,सूरदास,1,स्तोत्र पाठ,60,स्वास्थ्य और देखभाल,4,हँसना मना है,6,हमारी प्राचीन धरोहर,1,हमारी विरासत,2,हमारी संस्कृति,98,हिन्दी रचना,33,हिन्दी साहित्य,5,हिन्दू तीर्थ,3,हिन्दू धर्म,2,about us,2,Best Gazzal,1,bhagwat darshan,3,bhagwatdarshan,2,birthday song,1,computer,37,Computer Science,38,contact us,1,darshan,16,Download,3,General Knowledge,31,Learn Sanskrit,3,medical Science,1,Motivational speach,1,poojan samagri,4,Privacy policy,1,psychology,1,Research techniques,38,solved question paper,3,sooraj krishna shastri,6,Sooraj krishna Shastri's Videos,60,
ltr
item
भागवत दर्शन: श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 11 ( Srimad Bhagwat Geeta Chapter 11) - विश्व-रूप-दर्शन योग
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 11 ( Srimad Bhagwat Geeta Chapter 11) - विश्व-रूप-दर्शन योग
Srimad Bhagwat Geeta Chapter 11 Vishwa-roop-darshan Yoga, श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 11 ( Srimad Bhagwat Geeta Chapter 11) - विश्व-रूप-दर्शन योग,
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgBl3uDxL6AihqwZ-yMOU_U6eXiu6kuWrHoWaIW5pmgEy6_uTWSmd5HoSrZwin0-ZW2wheBbpMYzwqNNOfPnMzAWx5Xv_tI-6Mmiy-KaYCI9uErFfwz3CkmndB-jq6QISJJDnbmQXYTO6QcFYS6adJhgjvPxz1ifiXEuF8PXBgsRRqDKOzDM7BG6hm5WUU/s320/geeta%20chapter%2011.png
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgBl3uDxL6AihqwZ-yMOU_U6eXiu6kuWrHoWaIW5pmgEy6_uTWSmd5HoSrZwin0-ZW2wheBbpMYzwqNNOfPnMzAWx5Xv_tI-6Mmiy-KaYCI9uErFfwz3CkmndB-jq6QISJJDnbmQXYTO6QcFYS6adJhgjvPxz1ifiXEuF8PXBgsRRqDKOzDM7BG6hm5WUU/s72-c/geeta%20chapter%2011.png
भागवत दर्शन
https://www.bhagwatdarshan.com/2024/05/11-srimad-bhagwat-geeta-chapter-11.html
https://www.bhagwatdarshan.com/
https://www.bhagwatdarshan.com/
https://www.bhagwatdarshan.com/2024/05/11-srimad-bhagwat-geeta-chapter-11.html
true
1742123354984581855
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content