विश्व में धार्मिक परिवर्तन (आने वाले 10 सालों में)

Sooraj Krishna Shastri
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 विश्व में धार्मिक परिवर्तन (आने वाले 10 सालों में)

आगामी दशक में विश्व की धार्मिक जनसंख्या में परिवर्तन कई कारकों पर निर्भर करेगा, जैसे प्रजनन दर, धर्मांतरण, प्रवासन, आर्थिक स्थिति, और शिक्षा स्तर। प्यू रिसर्च सेंटर और अन्य स्रोतों से उपलब्ध डेटा के आधार पर संभावित रुझानों का विस्तार से अध्ययन नीचे प्रस्तुत है।



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1. वैश्विक स्तर पर धर्मों का विस्तार


(i) इस्लाम


सबसे तेज़ी से बढ़ने वाला धर्म:

इस्लाम की वृद्धि दर सबसे तेज़ रहने की संभावना है। इसके पीछे उच्च प्रजनन दर मुख्य कारण है। मुस्लिम परिवारों में औसत जन्मदर अन्य धर्मों के परिवारों से अधिक होती है।


अफ्रीका और एशिया में प्रमुखता:

अफ्रीका और दक्षिण एशिया में मुस्लिम जनसंख्या सबसे अधिक बढ़ेगी।


2050 का अनुमान:

इस्लाम ईसाई धर्म के बाद दूसरा सबसे बड़ा धर्म बना रहेगा। कुछ अनुमानों के अनुसार, यह 2050 तक ईसाई धर्म को पछाड़ सकता है।



(ii) ईसाई धर्म


धीमी वृद्धि:

ईसाई धर्म में वृद्धि की दर अपेक्षाकृत धीमी रहेगी। विकासशील देशों में ईसाई धर्म बढ़ेगा, जबकि पश्चिमी देशों में धर्मनिरपेक्षता के कारण स्थिरता या कमी देखी जा सकती है।


अफ्रीका में उभरता केंद्र:

अफ्रीका ईसाई धर्म का केंद्र बन रहा है, जहाँ युवा आबादी तेजी से ईसाई धर्म अपना रही है।



(iii) हिंदू धर्म


स्थिरता और क्षेत्रीय प्रभाव:

हिंदू धर्म मुख्य रूप से भारत और नेपाल में सीमित है। इसकी वृद्धि दर भारत की जनसंख्या वृद्धि दर के अनुरूप रहेगी।


2050 का अनुमान:

भारत में हिंदू जनसंख्या का प्रतिशत वर्तमान 80% से घटकर 77% हो सकता है, क्योंकि मुस्लिम जनसंख्या तेज़ी से बढ़ रही है।


प्रवासन का प्रभाव:

हिंदू प्रवासियों की संख्या अमेरिका, कनाडा, और ऑस्ट्रेलिया में बढ़ेगी, लेकिन यह कुल वैश्विक संख्या पर कोई बड़ा प्रभाव नहीं डालेगा।



(iv) नास्तिकता और धर्मनिरपेक्षता


धर्म से दूरी:

यूरोप, अमेरिका, और चीन जैसे विकसित क्षेत्रों में धर्म से दूरी बढ़ती जा रही है।


2050 तक अनुमान:

नास्तिकों और धर्मनिरपेक्ष लोगों की संख्या स्थिर रहेगी, लेकिन उनका प्रतिशत घट सकता है, क्योंकि धार्मिक समुदायों (विशेष रूप से इस्लाम और ईसाई) की प्रजनन दर अधिक है।



(v) अन्य धर्म (बौद्ध, सिख, यहूदी, आदि)


बौद्ध धर्म:

बौद्ध धर्म मुख्य रूप से स्थिर रहेगा, लेकिन चीन और जापान में इसके अनुयायियों की संख्या कम हो सकती है।


सिख धर्म:

सिख समुदाय की वृद्धि दर भारत (पंजाब) और प्रवासी सिख समुदाय के कारण बनी रहेगी।


यहूदी धर्म:

यहूदी समुदाय में वृद्धि मुख्यतः इज़राइल में देखी जाएगी।




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2. प्रमुख कारण जो परिवर्तन को प्रभावित करेंगे


(i) प्रजनन दर


मुस्लिम: मुस्लिम परिवारों में प्रजनन दर सबसे अधिक (2.9 बच्चे प्रति महिला) है, जो उनकी जनसंख्या वृद्धि का मुख्य कारण है।


ईसाई: ईसाईयों की प्रजनन दर औसतन 2.6 बच्चे प्रति महिला है।


हिंदू: हिंदू प्रजनन दर 2.3 है, जो भारत की समग्र जन्म दर के करीब है।



(ii) धर्मांतरण (Conversion)


इस्लाम: इस्लाम में धर्मांतरण की दर अधिक है, विशेषकर अफ्रीका और यूरोप में।


ईसाई धर्म: कुछ क्षेत्रों में ईसाई धर्म तेजी से फैल रहा है, लेकिन पश्चिमी देशों में लोग ईसाई धर्म छोड़ भी रहे हैं।


हिंदू धर्म: हिंदू धर्म में धर्मांतरण की दर कम है, लेकिन हिंदू से अन्य धर्मों (विशेषकर ईसाई और इस्लाम) में धर्मांतरण होता है।



(iii) प्रवासन (Migration)


प्रवासन से कई देशों में धार्मिक संरचना बदल रही है।


यूरोप में मुस्लिम प्रवासियों की संख्या बढ़ रही है।


हिंदू प्रवासियों की संख्या अमेरिका और कनाडा में बढ़ रही है।




(iv) आर्थिक और शैक्षिक प्रभाव


धर्म से दूरी: अधिक विकसित और शिक्षित समाज में लोग धर्म से दूरी बनाते हैं।


धार्मिक जागरूकता: विकासशील देशों में धार्मिकता अधिक प्रचलित रहती है।




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3. भारत में धर्म का भविष्य


भारत में धार्मिक जनसंख्या का वितरण धीरे-धीरे बदल सकता है:


मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि:

भारत में मुसलमानों की संख्या 2050 तक 18% तक पहुँच सकती है।


हिंदू धर्म:

हिंदू जनसंख्या का प्रतिशत घट सकता है, लेकिन यह अभी भी बहुसंख्यक धर्म बना रहेगा।


अन्य धर्म:

सिख, बौद्ध, और जैन धर्म स्थिर रहेंगे।




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4. वैश्विक भविष्यवाणी (2050 तक के रुझानों के आधार पर)


ईसाई और इस्लाम के बीच प्रतिस्पर्धा:

ईसाई धर्म और इस्लाम में सबसे अधिक अनुयायी रहेंगे।


धर्मनिरपेक्षता का बढ़ना:

पश्चिमी देशों में नास्तिक और धर्मनिरपेक्ष जनसंख्या का विस्तार होगा।


प्रवासी प्रभाव:

धार्मिक प्रवासी नई संरचनाएँ बनाएंगे, विशेषकर यूरोप और उत्तरी अमेरिका में।




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निष्कर्ष


आने वाले 10 वर्षों में धार्मिक परिवर्तन धीरे-धीरे शुरू होंगे और 2050 तक ये बड़े बदलावों का रूप ले सकते हैं। इस्लाम और ईसाई धर्म का विस्तार जारी रहेगा, जबकि हिंदू धर्म अपनी पारंपरिक स्थिरता बनाए रखेगा। धर्मनिरपेक्षता और धर्मांतरण वैश्विक धार्मिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएँगे।



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