भास: प्राचीन भारत के महान नाटककार

Sooraj Krishna Shastri
By -
0

 

भास: प्राचीन भारत के महान नाटककार
यह महान नाटककार भास का कलात्मक और सांस्कृतिक चित्रण है, जिसमें उनकी विद्वत्ता और प्राचीन भारतीय साहित्यिक परंपरा का आभास होता है।

भास: प्राचीन भारत के महान नाटककार

भास प्राचीन भारत के महानतम संस्कृत नाटककारों में से एक थे। उनकी रचनाएँ भारतीय नाट्य साहित्य की अमूल्य धरोहर मानी जाती हैं। भास के नाटक उनकी कल्पनाशीलता, गहन भावनाओं, और विशिष्ट शिल्प के लिए जाने जाते हैं। वे भारतीय रंगमंच के प्रारंभिक युग के प्रतिनिधि हैं और उनके कार्यों का प्रभाव बाद के कवियों, विशेष रूप से कालिदास, पर भी पड़ा।


भास का जीवन परिचय

  1. काल और स्थान:

    • भास का जीवनकाल लगभग ईसा पूर्व 3वीं से 4वीं शताब्दी माना जाता है।
    • वे मौर्य काल या शुंग काल के नाटककार थे।
    • उनका जन्म स्थान स्पष्ट नहीं है, लेकिन उनके कार्य भारतीय समाज और संस्कृति के व्यापक ज्ञान को दर्शाते हैं।
  2. साहित्यिक महत्व:

    • भास को संस्कृत नाटक साहित्य का अग्रणी लेखक माना जाता है।
    • उनके नाटक भारतीय रंगमंच की शुरुआती शैली और नाट्य परंपराओं का अद्भुत चित्रण करते हैं।
  3. पुनः खोज:

    • भास की रचनाएँ लंबे समय तक खोई रहीं।
    • 20वीं सदी की शुरुआत में, विद्वान महामहोपाध्याय गणपति शास्त्री ने उनकी रचनाओं को खोजा और प्रकाशित किया, जिससे भास का योगदान फिर से सामने आया।

भास की प्रमुख कृतियाँ

भास के 13 नाटकों का संग्रह उपलब्ध है। ये नाटक महाभारत और रामायण जैसे महाकाव्यों, साथ ही ऐतिहासिक और पौराणिक कथाओं पर आधारित हैं।

1. महाभारत पर आधारित नाटक

  • पंचरात्र:
    • यह नाटक दुर्योधन और द्रौपदी के वेश में भीष्म, धृतराष्ट्र और अन्य पात्रों के वार्तालाप का अद्भुत चित्रण करता है।
    • इसमें महाभारत युद्ध के कारणों और उसके प्रभावों का विश्लेषण है।
  • उरुभंग:
    • यह नाटक महाभारत के एक महत्वपूर्ण पात्र दुर्योधन के जीवन और उनकी मृत्यु के अंतिम क्षणों का मार्मिक चित्रण करता है।
    • इसमें दुर्योधन के मानवीय पहलुओं को दिखाया गया है।
  • मध्यम व्यायोग:
    • यह भीम और गज के बीच की मुठभेड़ की कथा है। इसमें भीम के साहस और करुणा का प्रदर्शन किया गया है।

2. रामायण पर आधारित नाटक

  • प्रतीज्ञा यौगंधरायण:
    • इसमें राम के वनवास और सीता के वियोग की कथा का वर्णन है।
  • अभिषेक:
    • यह नाटक राम के राज्याभिषेक की कथा को केंद्र में रखता है।
    • इसमें राम और सीता के पुनर्मिलन का दृश्य अत्यंत संवेदनशील और भावनात्मक है।

3. ऐतिहासिक और अन्य कथाएँ

  • दूतवाक्य:
    • इसमें कृष्ण के द्वारा कौरव सभा में पांडवों का संदेश लाने की कथा है।
  • कर्णभार:
    • यह कर्ण की कथा है, जिसमें उनका बलिदान और दानशीलता प्रमुख रूप से उभरती है।

भास की साहित्यिक विशेषताएँ

  1. संवेदनशीलता और मानवीय दृष्टिकोण:

    • भास के नाटक मानवीय भावनाओं और संवेदनाओं को गहराई से उभारते हैं।
    • वे अपने पात्रों को मानवीय रूप में प्रस्तुत करते हैं, चाहे वे पौराणिक या ऐतिहासिक क्यों न हों।
  2. सरल और प्रभावी भाषा:

    • भास की भाषा सरल, सजीव, और प्रभावी है। यह उनकी रचनाओं को सभी वर्गों के लिए सुलभ बनाती है।
  3. पारंपरिक कथाओं का नवीन दृष्टिकोण:

    • उन्होंने पारंपरिक कथाओं को नई दृष्टि और गहराई दी।
    • उनके पात्र जैसे दुर्योधन और कर्ण, पौराणिक कथाओं के पारंपरिक दृष्टिकोण से परे जाते हैं और मानवीय कमजोरी और महानता को उजागर करते हैं।
  4. सामाजिक और नैतिक संदेश:

    • भास के नाटकों में सामाजिक और नैतिक संदेश प्रमुख रूप से उभरते हैं।
    • उन्होंने धर्म, कर्तव्य, और मानव मूल्यों को अपने कथानक में शामिल किया।
  5. रंगमंच की व्यावहारिकता:

    • भास के नाटक रंगमंच के लिए उपयुक्त हैं। उन्होंने अपने समय की नाट्य परंपराओं और तकनीकों का अद्भुत उपयोग किया।

भास की काव्यशैली

  1. संवेदनशील वर्णन:

    • भास की शैली भावनाओं को गहराई से व्यक्त करती है।
    • उन्होंने करुण रस और शौर्य रस का प्रभावी प्रयोग किया है।
  2. संवाद की प्रधानता:

    • उनके नाटकों में संवाद सजीव और भावनात्मक हैं, जो कथा को गति और गहराई प्रदान करते हैं।
  3. संक्षिप्तता और सटीकता:

    • भास की शैली संक्षिप्त और सटीक है। वे कम शब्दों में गहरे अर्थ व्यक्त करने में निपुण थे।

भास का प्रभाव और विरासत

  1. भारतीय नाट्य साहित्य पर प्रभाव:

    • भास ने भारतीय नाट्य साहित्य को एक आधार प्रदान किया। उनके नाटक बाद के कवियों और नाटककारों, जैसे कालिदास और भवभूति, के लिए प्रेरणा बने।
  2. भारतीय रंगमंच पर प्रभाव:

    • उनके नाटक आज भी रंगमंच पर प्रस्तुत किए जाते हैं और दर्शकों को आकर्षित करते हैं।
  3. वैश्विक मान्यता:

    • भास के कार्यों का अनुवाद कई भाषाओं में हुआ है, और वे संस्कृत साहित्य की अमूल्य धरोहर माने जाते हैं।
  4. संवेदनशील नाट्य परंपरा:

    • भास ने नाट्य परंपरा को गहराई और संवेदनशीलता दी, जिससे यह सामाजिक और मानवीय मूल्यों का दर्पण बना।

भास की शिक्षाएँ

  1. मानवीय भावनाओं का सम्मान:

    • भास ने दिखाया कि प्रत्येक व्यक्ति के भीतर मानवीय संवेदनाएँ होती हैं, चाहे वह पौराणिक पात्र ही क्यों न हो।
  2. नैतिकता और धर्म का महत्व:

    • उनके नाटकों में नैतिकता और धर्म की गहरी भावना झलकती है।
  3. कर्तव्य और बलिदान:

    • भास के पात्र कर्तव्य और बलिदान के उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।
  4. सामाजिक संदेश:

    • उन्होंने समाज में प्रेम, करुणा, और समानता का संदेश दिया।

निष्कर्ष

भास भारतीय नाट्य साहित्य के पथप्रदर्शक थे। उनकी रचनाएँ न केवल मनोरंजन प्रदान करती हैं, बल्कि मानव जीवन, समाज, और धर्म के गहन संदेश भी देती हैं।

उनके नाटक, जैसे "उरुभंग", "कर्णभार", और "दूतवाक्य", संस्कृत साहित्य और भारतीय रंगमंच की अमूल्य धरोहर हैं। भास का साहित्य यह सिखाता है कि मानवीय संवेदनाएँ, कर्तव्य, और नैतिकता जीवन के सबसे महत्वपूर्ण मूल्य हैं। उनकी रचनाएँ आज भी साहित्य और रंगमंच के प्रेमियों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।

Post a Comment

0 Comments

Post a Comment (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!