वराह अवतार

Sooraj Krishna Shastri
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 वराह अवतार हिंदू धर्म में भगवान विष्णु के दशावतारों में से तीसरा अवतार है। यह अवतार उन्होंने पृथ्वी को राक्षस हिरण्याक्ष के चंगुल से बचाने और सृष्टि को पुनः स्थापित करने के लिए लिया। इस अवतार में भगवान विष्णु ने एक विशाल जंगली सूअर (वराह) का रूप धारण किया।



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वराह अवतार की कथा


1. हिरण्याक्ष का उत्पात:


हिरण्याक्ष, कश्यप ऋषि और दिति का पुत्र था। वह अत्यंत बलशाली और अहंकारी राक्षस था।


हिरण्याक्ष ने अपनी शक्ति के बल पर सभी देवताओं और ऋषियों को परेशान करना शुरू कर दिया और पृथ्वी को समुद्र में डुबो दिया।


इस स्थिति में पृथ्वी को बचाने और धर्म की रक्षा करने के लिए भगवान विष्णु ने वराह अवतार लिया।




2. वराह अवतार का प्राकट्य:


ब्रह्मा जी जब सृष्टि की रचना कर रहे थे, तब हिरण्याक्ष ने पृथ्वी का अपहरण कर उसे पाताल लोक के समुद्र में छिपा दिया।


ब्रह्मा जी की प्रार्थना पर भगवान विष्णु ने एक विशाल वराह (सूअर) का रूप धारण किया।


वराह का आकार इतना बड़ा था कि उसका स्पर्श आकाश तक हो रहा था। उसकी गर्जना ने राक्षसों को भयभीत कर दिया।




3. हिरण्याक्ष से युद्ध:


वराह रूप में भगवान विष्णु ने समुद्र में प्रवेश किया और पृथ्वी को खोज निकाला।


जब भगवान विष्णु पृथ्वी को समुद्र से बाहर निकाल रहे थे, तब हिरण्याक्ष ने उन्हें रोकने की कोशिश की।


दोनों के बीच घमासान युद्ध हुआ, जो हजार वर्षों तक चला। अंततः भगवान विष्णु ने हिरण्याक्ष का वध कर दिया और पृथ्वी को उसकी स्थिति में स्थापित किया।




4. पृथ्वी की स्थापना:


भगवान विष्णु ने अपने वराह रूप में पृथ्वी को अपने दो विशाल दांतों (अग्रदंत) पर उठाया और समुद्र से बाहर निकालकर उसे संतुलित स्थिति में स्थापित किया।


इस प्रकार वराह अवतार ने पृथ्वी की रक्षा की और धर्म की पुनर्स्थापना की।






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वराह अवतार का प्रतीकात्मक अर्थ


1. पृथ्वी का संरक्षण:


वराह अवतार यह सिखाता है कि जब भी पृथ्वी पर संकट आएगा, भगवान सृष्टि और धर्म की रक्षा के लिए प्रकट होंगे।




2. अहंकार का विनाश:


हिरण्याक्ष का वध यह संकेत देता है कि अहंकार और अधर्म का अंत निश्चित है।




3. प्रकृति और संतुलन:


यह अवतार पृथ्वी के महत्व और पर्यावरण संतुलन के प्रति जागरूकता को भी इंगित करता है।






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वराह अवतार की पूजा और महत्व


1. वराह जयंती:


वराह अवतार के प्राकट्य को वराह जयंती के रूप में मनाया जाता है। इसे भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है।




2. मंदिर और पूजा स्थल:


वराह अवतार को समर्पित कई मंदिर हैं, जैसे कि:


वराह मंदिर (खजुराहो, मध्य प्रदेश)।


वराह मंदिर (तिरुमाला, आंध्र प्रदेश)।





3. धार्मिक संदेश:


यह अवतार धर्म, भक्ति और कर्तव्य के महत्व को रेखांकित करता है।






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निष्कर्ष


वराह अवतार न केवल एक पौराणिक कथा है, बल्कि यह धर्म और सत्य की विजय का प्रतीक भी है। यह हमें सिखाता है कि जब भी पृथ्वी या मानवता पर संकट आता है, तो भगवान सृष्टि की रक्षा के लिए अवतरित होते हैं। वराह अवतार से यह शिक्षा मिलती है कि हर परिस्थिति में धर्म, प्रकृति और सत्य का संरक्षण करना आवश्यक है।


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