भागवत महापुराण के स्कंध 1, अध्याय 12 में महाराज परीक्षित के जन्म, उनका नामकरण संस्कार, और उनके भविष्य के बारे में विस्तार से वर्णन किया गया है।
भागवत महापुराण के स्कंध 1, अध्याय 12 में महाराज परीक्षित के जन्म, उनका नामकरण संस्कार, और उनके भविष्य के बारे में विस्तार से वर्णन किया गया है। यह अध्याय इस बात पर केंद्रित है कि भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से परीक्षित जन्म के समय ही मृत्यु से बच गए और वे एक आदर्श धर्मपरायण राजा बने।
अध्याय 12 का सारांश:
1. महाराज परीक्षित का जन्म:
- परीक्षित महाराज का जन्म अभिमन्यु और उत्तरा के पुत्र के रूप में हुआ।
- गर्भ में अश्वत्थामा के ब्रह्मास्त्र से बालक का जीवन खतरे में था, लेकिन भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी कृपा से बालक की रक्षा की।
2. बालक का नामकरण संस्कार:
- जब युधिष्ठिर ने युद्ध के बाद अपना राज्य स्थापित कर लिया, तो बालक का नामकरण संस्कार किया गया।
- ब्राह्मणों ने शुभ मुहूर्त में बालक का नाम "परीक्षित" रखा, क्योंकि गर्भ में रहते समय भगवान श्रीकृष्ण के स्वरूप को देखने के कारण वह जन्म के बाद हर व्यक्ति में भगवान को देखने का प्रयास करता था।
3. ब्राह्मणों द्वारा परीक्षित का भविष्य वर्णन:
- ब्राह्मणों ने भविष्यवाणी की कि महाराज परीक्षित एक महान धर्मपरायण राजा होंगे।
- उन्होंने कहा कि परीक्षित अपने पूर्वजों (पांडवों) के सदृश गुणवान और धर्म की रक्षा करने वाले होंगे।
- उनके व्यक्तित्व के मुख्य गुण इस प्रकार बताए गए:-
- वे युधिष्ठिर की तरह धर्मशील होंगे।
- वे अर्जुन की तरह वीर और पराक्रमी होंगे।
- वे भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अत्यंत भक्ति और समर्पण रखने वाले होंगे।
- वे इंद्र के समान प्रजावत्सल और राज्य को समृद्ध बनाने वाले होंगे।
4. परीक्षित का धर्म और शासन:
- ब्राह्मणों ने कहा कि महाराज परीक्षित अपनी प्रजा की सुख-सुविधा के लिए कार्य करेंगे और धर्म की स्थापना करेंगे।
- उनकी शासन व्यवस्था धर्म, सत्य और न्याय पर आधारित होगी।
- उन्होंने यह भी कहा कि महाराज परीक्षित अपने जीवन के अंत में भगवान की कथा सुनते हुए मोक्ष प्राप्त करेंगे।
5. भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति:
- युधिष्ठिर और ब्राह्मणों ने भगवान श्रीकृष्ण की कृपा की स्तुति की, क्योंकि उनकी कृपा से ही परीक्षित मृत्यु से बच सके।
- भगवान के प्रति उनका प्रेम और आभार प्रकट किया गया।
मुख्य श्लोक:
1. अथ जातः परिक्षिनामकृष्णेन संवृतः।
- परीक्षित का नाम इसलिए रखा गया क्योंकि वे हर जगह भगवान श्रीकृष्ण को देखने का प्रयास करते थे।
2. सर्वाश्रमनमस्कृतः।
- परीक्षित महाराज ऐसे राजा होंगे जिनका सभी आश्रमों और वर्गों द्वारा सम्मान होगा।
3. परेभ्यो भयं नोत्पादयेत्संवृतः।
वे अपने शासन में धर्म और सत्य की स्थापना करेंगे और सभी प्राणियों को भयमुक्त करेंगे।
मुख्य संदेश:
1. भगवान की कृपा का महत्व: परीक्षित का जीवन भगवान श्रीकृष्ण की कृपा का प्रत्यक्ष प्रमाण है। गर्भ में भगवान ने उनकी रक्षा की और उनके जीवन को धर्म के लिए समर्पित किया।
2. एक आदर्श राजा के गुण: महाराज परीक्षित को धर्मपरायणता, प्रजावत्सलता, और भगवान भक्ति के लिए आदर्श माना गया है।
3. भक्ति और धर्म का संबंध: इस अध्याय में दिखाया गया है कि जब व्यक्ति भगवान की भक्ति करता है, तो धर्म और सत्य अपने-आप स्थापित होते हैं।
4. प्रजा के लिए राजा की जिम्मेदारी: एक राजा का मुख्य कर्तव्य प्रजा की रक्षा करना, धर्म की स्थापना करना, और प्रजा को भयमुक्त करना है।
विशेषता:
यह अध्याय महाराज परीक्षित के महान व्यक्तित्व और भगवान श्रीकृष्ण की कृपा का वर्णन करता है। परीक्षित के चरित्र और उनके धर्मपालन से यह शिक्षा मिलती है कि जीवन का उद्देश्य भगवान की भक्ति करना और धर्म की रक्षा करना है।
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