भागवत महापुराण के स्कंध 1, अध्याय 7 का सार

Sooraj Krishna Shastri
By -
0

 भागवत महापुराण के स्कंध 1, अध्याय 7 में भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन द्वारा अश्वत्थामा को पकड़ने की कथा, द्रौपदी की करुणा, और धर्म के आदर्श का वर्णन किया गया है। यह अध्याय धर्म, करुणा, और भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का अद्भुत संगम है।

अध्याय 7 का सारांश:

1. व्यासजी का भागवत रचना में ध्यान:

  • व्यासजी ने नारद मुनि की प्रेरणा से भागवत महापुराण की रचना प्रारंभ की।
  • इसमें भगवान की लीलाओं, भक्ति और धर्म का वर्णन किया गया।

2. अश्वत्थामा का अपराध:

  • महाभारत युद्ध समाप्त होने के बाद द्रोणपुत्र अश्वत्थामा ने द्रौपदी के पांच पुत्रों का छलपूर्वक वध कर दिया।
  • अश्वत्थामा ने यह घोर पाप युद्ध समाप्ति के बाद किया, जो धर्म और शास्त्रों के विरुद्ध था।

3. अर्जुन द्वारा अश्वत्थामा का बंदीकरण:

  • भगवान श्रीकृष्ण के निर्देश पर अर्जुन ने अश्वत्थामा को बंदी बना लिया।
  • अश्वत्थामा ने अपनी रक्षा के लिए ब्रह्मास्त्र का उपयोग किया। अर्जुन ने भी ब्रह्मास्त्र छोड़ा।
  • श्रीकृष्ण ने अर्जुन को ब्रह्मास्त्र को वापस लेने का निर्देश दिया और संसार को विनाश से बचाया।

4. द्रौपदी की करुणा:

  • अश्वत्थामा को बंदी बनाकर जब अर्जुन उसे द्रौपदी के पास ले आए, तो द्रौपदी ने उसे दंडित करने से मना कर दिया।
  • उन्होंने कहा कि अश्वत्थामा उनके गुरु द्रोणाचार्य का पुत्र है, और गुरु के पुत्र का वध करना अधर्म होगा।
  • द्रौपदी ने करुणा दिखाते हुए अश्वत्थामा को क्षमा कर दिया।

5. श्रीकृष्ण का धर्मोपदेश:

  • श्रीकृष्ण ने धर्म के पालन और पाप के दंड के महत्व को समझाया।
  • उन्होंने कहा कि धर्म की स्थापना के लिए न्याय आवश्यक है, लेकिन उसमें करुणा का भी स्थान होना चाहिए।

6. अश्वत्थामा को दंड:

  • अंततः अर्जुन ने अश्वत्थामा का मुकुट (मणि) छीन लिया, जो उसकी शक्ति का स्रोत था।
  • उसे जीवित छोड़ दिया गया, लेकिन अपमानित और शक्तिहीन कर दिया गया। यह दंड धर्म और करुणा का आदर्श था।

7. श्रीमद्भागवत का महत्त्व:

  • इस घटना के माध्यम से धर्म, भक्ति, और न्याय के आदर्श को स्थापित किया गया।
  • भगवान श्रीकृष्ण ने धर्म की रक्षा के लिए अर्जुन और पांडवों को प्रेरित किया।

मुख्य श्लोक:

1. शृण्वतः श्रद्दधानस्य नित्यमानं यथाऽश्रुतम्।

  • भगवान की कथा नियमित रूप से सुनने वाले व्यक्ति का हृदय शुद्ध होता है।

2. तस्माद्भारत सर्वात्मा भगवान्हरिरीश्वरः।

  • भगवान श्रीकृष्ण ही संपूर्ण धर्म और सत्य के आधार हैं।

3. यत्र धर्मसुतो राजा गदापाणिर्वृकोदरः।

जहाँ धर्मराज युधिष्ठिर और भगवान श्रीकृष्ण हैं, वहाँ धर्म, भक्ति और सत्य अवश्य होते हैं।

मुख्य संदेश:

1. धर्म और न्याय का संतुलन: अश्वत्थामा की घटना धर्म और न्याय में करुणा का समावेश सिखाती है।

2. भक्ति का महत्व: भगवान श्रीकृष्ण की उपस्थिति से धर्म और न्याय का सही मार्ग प्रशस्त होता है।

3. क्षमा और करुणा: द्रौपदी का व्यवहार दिखाता है कि क्षमा और करुणा से भी धर्म की स्थापना की जा सकती है।

4. कथा श्रवण का महत्त्व: इस अध्याय में भागवत कथा सुनने और सुनाने से आत्मा को शुद्ध करने का महत्व बताया गया है।

विशेषता:

 यह अध्याय धर्म के आदर्श, भगवान की लीला, और क्षमा व करुणा के महत्व को समझाने वाला है। यदि आप किसी विशेष प्रसंग या श्लोक का विस्तृत विवरण चाहते हैं, तो बताएं!



Post a Comment

0 Comments

Post a Comment (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!