मन्त्र 13 (ईशावास्य उपनिषद)

Sooraj Krishna Shastri
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मन्त्र 13 (ईशावास्य उपनिषद)
मन्त्र 13 (ईशावास्य उपनिषद)

मन्त्र 13 (ईशावास्य उपनिषद)


मूल पाठ

अन्यदेवाहुर्विद्यया अन्यदाहुरविद्यया।
इति शुश्रुम धीराणां ये नस्तद्विचचक्षिरे।


शब्दार्थ

  1. अन्यत्: भिन्न।
  2. देव: कहा गया।
  3. विद्यया: विद्या (आध्यात्मिक ज्ञान) के द्वारा।
  4. अविद्यया: अविद्या (कर्मकांड या भौतिक ज्ञान) के द्वारा।
  5. इति: ऐसा।
  6. शुश्रुम: हमने सुना है।
  7. धीराणाम्: ज्ञानी लोगों से।
  8. यः: जो।
  9. नः: हमें।
  10. तत्: वह।
  11. विचचक्षिरे: स्पष्ट किया।

अनुवाद

विद्या (ज्ञान) से एक प्रकार का फल प्राप्त होता है और अविद्या (कर्म) से भिन्न प्रकार का। ऐसा हमने ज्ञानीजनों से सुना है, जिन्होंने इसे स्पष्ट किया है।


व्याख्या

यह मन्त्र विद्या (आध्यात्मिक ज्ञान) और अविद्या (सांसारिक कर्म) के फलों और उनके अलग-अलग महत्व को दर्शाता है।

  1. विद्या और अविद्या का भेद:

    • विद्या: आत्मा का ज्ञान, ब्रह्म की अनुभूति, और आध्यात्मिक दृष्टि।
    • अविद्या: कर्मकांड, भौतिक ज्ञान, और सांसारिक जीवन के कर्तव्य।

    दोनों के लक्ष्य और परिणाम अलग-अलग हैं। विद्या से आत्मा का ज्ञान होता है, जबकि अविद्या से संसार में भौतिक जीवन व्यवस्थित होता है।

  2. ज्ञानीजनों की शिक्षा:
    यह मन्त्र बताता है कि ज्ञानीजनों ने यह समझाया है कि विद्या और अविद्या दोनों के अपने-अपने क्षेत्र में अलग-अलग महत्व हैं। दोनों को समझने और अपनाने से ही जीवन में पूर्णता आती है।

  3. संतुलन का महत्व:
    केवल विद्या (आध्यात्मिक ज्ञान) या केवल अविद्या (कर्म) का पालन जीवन को अधूरा बना सकता है। दोनों का संयुक्त पालन व्यक्ति को संसारिक और आध्यात्मिक दोनों दृष्टियों से सफल बनाता है।

  4. अलग-अलग फलों की प्राप्ति:

    • अविद्या (कर्म) व्यक्ति को संसार में सही ढंग से जीने का मार्ग दिखाती है।
    • विद्या (ज्ञान) व्यक्ति को मोक्ष और आत्मा के सत्य का अनुभव कराती है।

आध्यात्मिक संदेश

  • दोनों का महत्व: विद्या और अविद्या दोनों जीवन के लिए आवश्यक हैं। एक के बिना दूसरा अधूरा है।
  • जीवन में संतुलन: व्यक्ति को अपने भौतिक और आध्यात्मिक कर्तव्यों के बीच संतुलन बनाना चाहिए।
  • ज्ञानीजनों का अनुसरण: विद्या और अविद्या के महत्व को समझने के लिए ज्ञानीजनों की शिक्षाओं का पालन करना चाहिए।

आधुनिक संदर्भ में उपयोग

  • जीवन में भौतिक और आध्यात्मिक दोनों पहलुओं पर ध्यान देना चाहिए।
  • केवल भौतिक सुख या केवल ध्यान-साधना में लीन होने से जीवन का सही उद्देश्य पूरा नहीं होता।
  • ज्ञानी और अनुभवी लोगों की सलाह को अपनाकर जीवन को संतुलित और सार्थक बनाया जा सकता है।

विशेष बात

यह मन्त्र हमें प्रेरित करता है कि हम विद्या और अविद्या के महत्व को समझें और दोनों का उपयोग जीवन की पूर्णता के लिए करें। जीवन का लक्ष्य भौतिक और आध्यात्मिक दोनों क्षेत्रों में संतुलन स्थापित करना है।

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