उत्तररामचरितम्, तृतीय अंक, श्लोक 18,19, 20 का अर्थ, व्याख्या और शाब्दिक विश्लेषण

Sooraj Krishna Shastri
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Here is depiction of the serene, emotional scene with Rama, Sita in her radiant shadow form, and Vasanti. The atmosphere reflects deep sorrow, longing, and a mystical connection between the characters.
Here is depiction of the serene, emotional scene with Rama, Sita in her radiant shadow form, and Vasanti. The atmosphere reflects deep sorrow, longing, and a mystical connection between the characters.


संस्कृत पाठ और हिन्दी अनुवाद


संस्कृत पाठ:
वासन्ती:
इतोऽपि देवः पश्यतु—

अनुदिवसमवर्धयत्प्रिया ते यमचिरनिर्गतमुग्धलोलबहम्।
मणिमुकुट इवोच्छिखः कदम्बे नदति स एष वधूसखः शिखण्डी॥ १८ ॥

सीता:
(सकौतुकस्नेहास्रम्)
एष सः।

रामः:
मोदस्व वत्स! वयमद्य वर्धामहे।

सीता:
एवं भवतु।

रामः:
भ्रमिषु कृतपुटान्तर्मण्डलावृत्तिचक्षुः
प्रचलितचटुलभ्रूताण्डवैर्मण्डयन्त्या।
करकिसलयतालैर्मुग्धया नर्त्यमानं
सुतमिव मनसा त्वां वत्सलेन स्मरामि॥19॥

हन्त! तिर्यञ्चोऽपि परिचयमनुरुन्धन्ते।
कतिपयकुसुमोद्गमः कदम्बः प्रियतमया परिवर्धितोऽयमासीत्।

सीता:
(सास्रम्)
सुष्ठु प्रत्यभिज्ञातमार्यपुत्रेण।

रामः:
स्मरति गिरिमयूर एष देव्याः स्वजन इवात्र यतः प्रमोदमेति॥ २० ॥


हिन्दी अनुवाद:

वासंती:
हे देव! यहाँ देखें—

आपकी प्रिय पत्नी ने जिसे रोज़ प्यार और देखभाल से पाला,
वही यह नवोदित और सुंदर पंख वाला मोर,
मणि-मुकुट के समान कदंब के वृक्ष पर बैठकर मधुर स्वर में गा रहा है।

सीता:
(प्रसन्नता और स्नेह के आँसुओं के साथ)
यह वही है।

राम:
हे पुत्र! आनंद करो। आज हम तुम्हारे साथ बढ़ते हैं।

सीता:
ऐसा ही हो।

राम:
तेरा स्मरण मुझे कराता है कि जब तू छोटे पंखों के साथ
अपनी आँखों में चंचलता भरकर वृक्षों के चारों ओर घूमता था,
अपने कोमल हाथों की ताल के साथ नृत्य करते हुए
एक बच्चे की तरह चंचलता दिखाता था।
हे वत्सले! तुम्हारी इस सुंदर छवि को मैं अपने मन में रखता हूँ।

अरे! पशु-पक्षी भी परिचय और प्रेम को याद रखते हैं।
यह कदंब का वृक्ष, जो कभी प्रियतम सीता द्वारा बढ़ाया गया था,
अब अपने नए फूलों के साथ खिला हुआ है।

सीता:
(आँसू भरे शब्दों में)
आर्यपुत्र ने इसे सही पहचाना।

राम:
यह पहाड़ी मोर, देवी का साथी,
इसीलिए यहाँ खुशी से नाच रहा है, मानो अपने स्वजन को पहचान रहा हो।


शब्द-विश्लेषण

1. अनुदिवसमवर्धयत्

  • संधि-विच्छेद: अनुदिनम् + समवर्धयत्।
  • धातु: √वृध् (बढ़ना)।
  • उपसर्ग: सम् (साथ)।
  • अर्थ: प्रतिदिन प्यार से बढ़ाया।

2. मणिमुकुट इवोच्छिखः

  • समास: उपमान कर्मधारय समास (मणि + मुकुट + इव + उच्छिखः)।
    • मणि: रत्न।
    • मुकुट: सिर का आभूषण।
    • उच्छिखः: ऊपर उठा हुआ।
  • अर्थ: मणि-मुकुट के समान सुशोभित।

3. भ्रमिषु कृतपुटान्तर्मण्डलावृत्तिचक्षुः

  • संधि-विच्छेद: भ्रमिषु + कृतपुट + अन्तर् + मण्डल + आवृत्ति + चक्षुः।
    • भ्रमिषु: घूमते हुए;
    • कृतपुट: छोटे घेरों में;
    • मण्डलावृत्ति: वृत्ताकार घूमना।
  • अर्थ: वृक्षों के चारों ओर घूमते हुए।

4. करकिसलयतालैः

  • समास: कर्मधारय समास (कर + किसलय + तालैः)।
    • कर: हाथ;
    • किसलय: कोमल पत्ते।
    • तालैः: ताल देना।
  • अर्थ: कोमल हाथों से ताल देना।

5. कतिपयकुसुमोद्गमः

  • समास: कर्मधारय समास (कतिपय + कुसुम + उद्गमः)।
    • कतिपय: कुछ;
    • कुसुम: फूल;
    • उद्गमः: उत्पत्ति।
  • अर्थ: कुछ फूलों का खिलना।

6. सुष्ठु प्रत्यभिज्ञातम्

  • संधि-विच्छेद: सुष्ठु + प्रत्यभिज्ञातम्।
    • सुष्ठु: सही से;
    • प्रत्यभिज्ञातम्: √ज्ञा (जानना), प्रत्य (सामने)।
  • अर्थ: सही से पहचाना।

7. गिरिमयूरः

  • समास: तत्पुरुष समास (गिरि + मयूर)।
    • गिरि: पर्वत;
    • मयूर: मोर।
  • अर्थ: पहाड़ी मोर।

व्याख्या:

इस अंश में वासंती सीता और राम को मोर का स्मरण कराती है, जिसे सीता ने पहले अपने स्नेह से पाला था। मोर का चंचल व्यवहार और उसका कदंब वृक्ष से जुड़ा होना राम और सीता को उनके अतीत की स्मृतियों में ले जाता है। यह अंश माता-पिता के स्नेह, प्रकृति से जुड़ाव और पशु-पक्षियों के साथ मानवीय भावनाओं की गहराई को दर्शाता है।

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