उत्तररामचरितम्, तृतीय अंक, श्लोक 23-24 का अर्थ, व्याख्या और शाब्दिक विश्लेषण

Sooraj Krishna Shastri
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Here is depiction of the serene, emotional scene with Rama, Sita in her radiant shadow form, and Vasanti. The atmosphere reflects deep sorrow, longing, and a mystical connection between the characters.
Here is depiction of the serene, emotional scene with Rama, Sita in her radiant shadow form, and Vasanti. The atmosphere reflects deep sorrow, longing, and a mystical connection between the characters.

संस्कृत पाठ और हिन्दी अनुवाद


संस्कृत पाठ:
सीता:
सखि! पश्यामि।
तमसा:
पश्य प्रियं भूयः।
सीता:
(इति पश्यन्ती स्थिता)
हा दैव! एष मया विना अहमप्येतेन विनेति केन सम्भावितमासीत्?
तन्मुहूर्तमात्रं जन्मान्तरादपि दुर्लभलब्धदर्शनं
बाष्पसलिलान्तरेषु पश्यामि तावद्वत्सलमार्यपुत्रम्।

तमसा:
(परिष्वज्य सास्रम्)
विलुलितमतिपूरैर्बाष्पमानन्दशोक-
प्रभवमवसृजन्ती पक्ष्मलोत्तानदीर्घा।
स्नपयति दयेशं स्नेहनिष्यन्दिनी ते
धवलमधुरमुग्धा दुग्धकुल्येव दृष्टिः॥ २३ ॥

वासंती:
ददतु तरवः पुष्पैरर्घ्यं फलैश्च
मधुश्च्युतः स्फुटितकमलामोदप्रायाः।
प्रवान्तु वनानिलाः कलमविरलं
रज्यत्कण्ठाः क्वणन्तु शकुन्तयः।
पुनरिदमयं देवो रामः स्वयं वनमागतः॥ २४ ॥


हिन्दी अनुवाद:

सीता:
सखी! मैं देख रही हूँ।

तमसा:
अपने प्रिय को पुनः देखो।

सीता:
(देखते हुए ठहर जाती है)
हे दैव!
यह कैसे संभव हुआ कि मैं उनके बिना रही, और वे मेरे बिना?
क्या किसी ने सोचा था कि ऐसा भी हो सकता है?
यह दुर्लभ दर्शन, जो जन्म-जन्मांतर में भी कठिनाई से मिलता है,
मैं इसे इन आँसुओं के बीच देख रही हूँ—
अपने प्रिय और वात्सल्य से भरे आर्यपुत्र को।

तमसा:
(सीता को गले लगाते हुए, आँसुओं के साथ)
तेरी आँखें, जो आँसुओं से भरी हैं,
आनंद और शोक के प्रभाव से जल रही हैं।
यह दृष्टि, जो दया और स्नेह की धारा बहा रही है,
धवल, मधुर और सुंदर है—
जैसे दूध की धारा प्रवाहित हो रही हो।

वासंती:
वृक्ष अपने पुष्पों से अर्घ्य दें,
फल और मधु टपकाएँ।
सुगंधित कमलों की गंध से
वन की हवा बहने लगे।
पक्षी अपनी मीठी ध्वनि से
यह संदेश फैलाएँ—
कि यह देवता राम स्वयं वन में लौट आए हैं।


शब्द-विश्लेषण

1. जन्मान्तरादपि दुर्लभलब्धदर्शनम्

  • समास: तत्पुरुष समास (जन्म + अन्तर + अति + दुर्लभ + लब्ध + दर्शन)।
    • जन्मान्तर: जन्म-जन्मांतर में;
    • दुर्लभ: जो कठिनाई से मिले;
    • लब्ध: प्राप्त हुआ।
  • अर्थ: जो जन्म-जन्मांतर में भी दुर्लभ हो, ऐसा दर्शन।

2. बाष्पसलिलान्तरेषु

  • संधि-विच्छेद: बाष्प + सलिल + अन्तरेषु।
    • बाष्प: आँसू;
    • सलिल: जल;
    • अन्तरेषु: के बीच।
  • अर्थ: आँसुओं के जल के बीच।

3. विलुलितमतिपूरैर्बाष्पमानन्दशोकप्रभवम्

  • समास: बहुव्रीहि समास (विलुलित + अतिपूरैः + बाष्प + आनन्द + शोक + प्रभव)।
    • विलुलित: बिखरी हुई;
    • अतिपूरैः: अत्यधिक भरी हुई;
    • प्रभव: उत्पन्न।
  • अर्थ: अत्यधिक आँसुओं से बिखरी हुई दृष्टि, जो आनंद और शोक से उत्पन्न है।

4. दयेशं स्नेहनिष्यन्दिनी दृष्टिः

  • संधि-विच्छेद: दयेशं + स्नेह + निष्यन्दिनी + दृष्टिः।
    • दयेश: दया के स्वामी;
    • स्नेह: प्रेम;
    • निष्यन्दिनी: प्रवाहित।
  • अर्थ: दया और स्नेह की धारा बहाने वाली दृष्टि।

5. ददतु तरवः पुष्पैरर्घ्यम्

  • संधि-विच्छेद: ददतु + तरवः + पुष्पैः + अर्घ्यम्।
    • ददतु: दें;
    • तरवः: वृक्ष;
    • अर्घ्यम्: पूजा का जल या अर्पण।
  • अर्थ: वृक्ष अपने पुष्पों से अर्घ्य अर्पित करें।

6. पुनरिदमयं देवो रामः

  • संधि-विच्छेद: पुनः + इदम् + अयम् + देवः + रामः।
    • पुनः: फिर से;
    • इदम्: यह;
    • अयम्: यही।
  • अर्थ: यह देवता राम फिर से लौट आए हैं।

व्याख्या:

इस अंश में सीता की भावनाएँ, जो राम के प्रति गहरे प्रेम और वियोग की पीड़ा में डूबी हुई हैं, अत्यंत गहनता से व्यक्त हुई हैं। सीता के लिए राम का दर्शन एक दुर्लभ आनंद है, जिसे आँसुओं और प्रेम की दृष्टि के बीच अनुभव किया जाता है।
तमसा, सीता को गले लगाकर उनकी ममता और प्रेम की अभिव्यक्ति को मान्यता देती हैं।
वासंती अपने उत्साह में वन के प्रत्येक अंग को राम की वापसी का स्वागत करने के लिए प्रेरित करती हैं।

इस अंश में प्रेम, वियोग, और पुनर्मिलन की भावना को काव्यात्मक रूप में दर्शाया गया है।

आगे के अंश के लिए निर्देश दें।

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