उत्तररामचरितम्, तृतीय अंक, श्लोक 28 का अर्थ, व्याख्या और शाब्दिक विश्लेषण

Sooraj Krishna Shastri
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Here is depiction of the serene, emotional scene with Rama, Sita in her radiant shadow form, and Vasanti. The atmosphere reflects deep sorrow, longing, and a mystical connection between the characters.
Here is depiction of the serene, emotional scene with Rama, Sita in her radiant shadow form, and Vasanti. The atmosphere reflects deep sorrow, longing, and a mystical connection between the characters.

संस्कृत पाठ और हिन्दी अनुवाद


संस्कृत पाठ:
सीता:
सखि वासंती! त्वमेव दारुणा कठोरा च।
यैवं प्रलपन्तं प्रलापयसि।

तमसा:
प्रणय एवं व्याहरति शोकश्च।

रामः:
सखि! किमत्र मन्तव्यम्?
त्रस्तैकहायनकुरङ्गविलोलदृष्टेस्तस्याः
परिस्फुरितगर्भभरालसायाः।
ज्योत्स्नामयीव मृदुबालमृणालकल्पा
क्रव्याद्भिरङ्गलतिका नियतं विलुप्ता॥

सीता:
आर्यपुत्र! ध्रिये एषा ध्रिये।

रामः:
हा प्रिये जानकि! क्वासि?

सीता:
हा धिक्! हा धिक्! अन्य इवार्यपुत्रः प्रमुक्तकण्ठं प्ररुदितो भवति।

तमसा:
वत्से! साम्प्रतिकमेवैतत्।
कर्त्तव्यानि खलु दुःखितैर्दुःखनिर्धारणानि।
पूरोत्पीडे तटाकस्य परीवाहः प्रतिक्रिया।
शोकक्षोभे च दयं प्रलापैरेव धार्यते॥ २९ ॥


हिन्दी अनुवाद:

सीता:
हे सखी वासंती! तुम ही दारुण और कठोर हो।
जो इस प्रकार दुखी होकर प्रलाप कर रहे हैं,
तुम उन्हें और अधिक प्रलाप करने के लिए प्रेरित करती हो।

तमसा:
प्रेम और शोक इस प्रकार ही बोलते हैं।

राम:
सखी! यहाँ और क्या सोचा जा सकता है?
वह स्त्री, जिसकी आँखें डरे हुए हिरण-शावक की तरह थीं,
जो गर्भ के भार से थकी हुई प्रतीत होती थी।
जो चाँदनी जैसी उज्ज्वल और कोमल कमल के डंठल जैसी थी,
वह अंग-लता (देह) निश्चित रूप से क्रूर जीवों द्वारा नष्ट कर दी गई।

सीता:
हे आर्यपुत्र! मैं यह सहन करूँगी, इसे सहन करना होगा।

राम:
हे प्रिय जानकी! तुम कहाँ हो?

सीता:
हा धिक्! हा धिक्! यह आर्यपुत्र जैसे और कोई हैं,
जो इस प्रकार मुक्त कंठ से रो रहे हैं।

तमसा:
वत्से! यह समय की बात है।
दुखी लोगों को अपने दुखों को सहने के लिए कुछ करना ही होता है।
जैसे तालाब के तट पर पानी का बहाव प्रतिक्रिया है,
वैसे ही शोक और आघात के समय, करुणा
और प्रलाप के माध्यम से मन को संभाला जाता है।


शब्द-विश्लेषण

1. त्रस्तैकहायनकुरङ्गविलोलदृष्टेः

  • समास: कर्मधारय समास (त्रस्त + एकहायन + कुरङ्ग + विलोल + दृष्टेः)।
    • त्रस्त: डरा हुआ;
    • एकहायन: एक वर्ष का;
    • कुरङ्ग: हिरण;
    • विलोल: चंचल;
    • दृष्टेः: दृष्टि।
  • अर्थ: डरे हुए एक वर्षीय हिरण के समान चंचल आँखों वाली।

2. परिस्फुरितगर्भभरालसायाः

  • संधि-विच्छेद: परिस्फुरित + गर्भ + भर + आलसायाः।
    • परिस्फुरित: थरथराती हुई;
    • गर्भ: गर्भ;
    • भर: भार;
    • आलसायाः: थकी हुई।
  • अर्थ: गर्भ के भार से थकी हुई।

3. ज्योत्स्नामयीव मृदुबालमृणालकल्पा

  • समास: उपमान कर्मधारय समास (ज्योत्स्ना + मयी + इव + मृदु + बाल + मृणाल + कल्पा)।
    • ज्योत्स्ना: चाँदनी;
    • मयी: युक्त;
    • मृदु: कोमल;
    • मृणाल: कमल का डंठल;
    • कल्पा: के समान।
  • अर्थ: चाँदनी के समान उज्ज्वल और कोमल कमल के डंठल जैसी।

4. कर्त्तव्यानि खलु दुःखितैर्दुःखनिर्धारणानि

  • संधि-विच्छेद: कर्त्तव्यानि + खलु + दुःखितैः + दुःख + निर्धारणानि।
    • कर्त्तव्यानि: जो किया जाना चाहिए;
    • दुःखितैः: दुखी लोगों द्वारा;
    • दुःखनिर्धारणानि: दुखों को सहन करना।
  • अर्थ: दुखी लोगों को अपने दुख सहने के उपाय खोजने चाहिए।

5. पूरोत्पीडे तटाकस्य परीवाहः प्रतिक्रिया

  • संधि-विच्छेद: पूर + उत्पीडे + तटाकस्य + परीवाहः + प्रतिक्रिया।
    • पूर: पानी का बढ़ना;
    • उत्पीडे: दबाव में;
    • परीवाहः: बहाव;
    • प्रतिक्रिया: परिणाम।
  • अर्थ: तालाब में पानी बढ़ने पर तट का बहाव प्रतिक्रिया होती है।

व्याख्या:

यह अंश शोक, करुणा और सहनशीलता का अद्भुत चित्रण है।

  • सीता: वासंती की कठोर बातों को अस्वीकार करते हुए कहती हैं कि शोकग्रस्त राम को और अधिक आहत न किया जाए।
  • राम: अपने शब्दों में जानकी की सौम्यता, उनकी थकी हुई स्थिति और उनकी अनुपस्थिति के कारण हुए विनाश को व्यक्त करते हैं।
  • तमसा: दुःख को सहने और उसे प्रलाप के माध्यम से व्यक्त करने की स्वाभाविक प्रक्रिया की बात करती हैं।

यह अंश मानवीय भावनाओं की गहराई को दिखाता है, जहाँ कर्तव्य और शोक का संघर्ष स्पष्ट है।

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