मन्त्र 3 (ईशावास्य उपनिषद)

Sooraj Krishna Shastri
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मन्त्र 3 (ईशावास्य उपनिषद)
मन्त्र 3 (ईशावास्य उपनिषद)

मन्त्र 3 (ईशावास्य उपनिषद)


मूल पाठ

असुर्या नाम ते लोका अन्धेन तमसाऽऽवृताः।
ताँस्ते प्रेत्याभिगच्छन्ति ये के चात्महनो जनाः।


शब्दार्थ

  1. असुर्या: असुरों के (अज्ञानमय) लोक।
  2. नाम: वास्तव में।
  3. ते लोका: वे लोक।
  4. अन्धेन तमसा: घने अंधकार से आवृत।
  5. आवृताः: ढके हुए।
  6. तान्: उन लोकों को।
  7. ते: वे।
  8. प्रेत्य: मृत्यु के बाद।
  9. अभिगच्छन्ति: प्राप्त होते हैं।
  10. ये: जो।
  11. क:: कोई भी।
  12. आत्महनो: आत्मा का हनन करने वाले।
  13. जनाः: लोग।

अनुवाद

असुरों (अज्ञान) के वे लोक, जो घने अंधकार से आवृत हैं, वहाँ वे लोग जाते हैं जो आत्मा का हनन करते हैं।


व्याख्या

यह मन्त्र आत्मा और अज्ञान के प्रभाव पर गहराई से विचार करता है।

  1. असुर्य लोक का अर्थ:
    "असुर्य" का अर्थ है वे लोक जहाँ प्रकाश (ज्ञान) का अभाव है। ऐसे लोकों को अज्ञान, आत्मिक अंधकार और दुःख का प्रतीक माना गया है।

  2. आत्महनो जनाः:
    "आत्महन्ता" का मतलब है वे लोग जो आत्मा को पहचानने में असफल रहते हैं या जो आत्मा के वास्तविक स्वरूप को भूलकर केवल भौतिक सुखों में लिप्त रहते हैं। वे आत्मा के सत्य स्वरूप का हनन करते हैं।

  3. मृत्यु के बाद की स्थिति:
    इस मन्त्र में यह कहा गया है कि जो लोग जीवन में आत्मा का ज्ञान नहीं प्राप्त करते, वे मृत्यु के बाद अज्ञान और अंधकार के लोक में चले जाते हैं। यह दुःख और पुनर्जन्म के चक्र का प्रतीक है।


आध्यात्मिक संदेश

  • आत्मज्ञान का महत्व: आत्मा का ज्ञान न होने से मनुष्य अज्ञान और मोह में फंसा रहता है।
  • अज्ञान का परिणाम: जो लोग आत्मा की सच्चाई को नकारते हैं, वे जीवन में सुख-शांति नहीं पाते और मृत्यु के बाद भी अंधकार में जाते हैं।
  • जीवन का उद्देश्य: आत्मज्ञान को प्राप्त करना और अज्ञान से मुक्ति पाना ही जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य है।

आधुनिक संदर्भ में उपयोग

  • यह मन्त्र हमें बताता है कि जीवन केवल भौतिक सुखों तक सीमित नहीं है। आत्मा का वास्तविक ज्ञान प्राप्त किए बिना जीवन अधूरा है।
  • अज्ञान (मोह, लोभ, और स्वार्थ) को त्यागकर ज्ञान के मार्ग पर चलना ही जीवन को सार्थक बनाता है।

विशेष बात

यह मन्त्र हमें प्रेरित करता है कि हम आत्मा की गहराई को समझें और अपने भीतर छिपे परमात्मा के सत्य को पहचानें। अज्ञान के कारण होने वाले आत्मिक अंधकार से बचकर हमें आत्मज्ञान के प्रकाश की ओर बढ़ना चाहिए।

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