महाराज अंबरीष की कथा भागवत पुराण, नवम स्कंध, अध्याय 4-5

Sooraj Krishna Shastri
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यह चित्र दुर्वासा ऋषि को तपस्वी रूप में दिखाता है, जहां वे जटाधारी, लंबी दाढ़ी और केसरिया वस्त्र धारण किए हुए हैं। उनके चेहरे पर क्रोध का भाव है, और सुदर्शन चक्र भगवान विष्णु की कृपा का प्रतीक बनकर अम्बरीष की सुरक्षा कर रहा है।
यह चित्र दुर्वासा ऋषि को तपस्वी रूप में दिखाता है, जहां वे जटाधारी, लंबी दाढ़ी और केसरिया वस्त्र धारण किए हुए हैं। उनके चेहरे पर क्रोध का भाव है, और सुदर्शन चक्र भगवान विष्णु की कृपा का प्रतीक बनकर अम्बरीष की सुरक्षा कर रहा है।

 महाराज अंबरीष की कथा भागवत पुराण के नौवें स्कंध, अध्याय 4-5 में वर्णित है। यह कथा भक्ति, समर्पण, और भगवान विष्णु की करुणा का अद्भुत उदाहरण है। महाराज अंबरीष भगवान विष्णु के परम भक्त थे, और उनकी भक्ति ने महान ऋषि दुर्वासा के क्रोध को शांत किया। यह कथा यह सिखाती है कि भगवान अपने भक्तों की रक्षा के लिए सदा तत्पर रहते हैं।

महाराज अंबरीष का परिचय

  • महाराज अंबरीष इक्ष्वाकु वंश के राजा नाभाग के पुत्र थे।
  • वे धर्म, सत्य, और न्याय पर आधारित शासन करते थे।
  • उनकी भगवान विष्णु के चरणों में अटूट भक्ति थी।

श्लोक:

स वै मनः कृष्णपदारविन्दयोः।

वचांसि वैकुण्ठगुणानुवर्णने।

करौ हरिर्मन्दिरमार्जनादिषु।

श्रुतिं चकाराच्युतसत्कथोदये।।

(भागवत पुराण 9.4.18)

भावार्थ:

महाराज अंबरीष ने अपना मन भगवान विष्णु के चरणों में, वाणी भगवान की कथा में, और अपने कर्म भगवान की सेवा में लगा रखे थे । 

अंबरीष की भक्ति

  • अंबरीष ने अपना सम्पूर्ण जीवन भगवान विष्णु की भक्ति में समर्पित कर दिया था।
  • वे प्रति एकादशी और द्वादशी व्रत का पालन करते थे।
  • उनकी भक्ति के प्रभाव से उनका राज्य समृद्ध और शांतिपूर्ण था।

श्लोक:

नाभागपुत्रोऽभवदंबरीषो महाभागवतधर्ममाहतः।

सत्यं दयां चोपरतं च धर्मं दास्यं कर्तारं हरिं स्मृतः।।

(भागवत पुराण 9.4.13)

भावार्थ:

महाराज अंबरीष महाभागवत और धर्म के अनुयायी थे। उन्होंने सत्य, दया, और धर्म का पालन करते हुए भगवान की भक्ति की।

अंबरीष का एकादशी व्रत

  • अंबरीष ने एक बार एकादशी व्रत किया और उसका समापन करने के लिए नियम के अनुसार पारण (व्रत खोलने की प्रक्रिया) की तैयारी की।
  • उसी समय, महान ऋषि दुर्वासा उनके महल में पहुँचे।
  • अंबरीष ने दुर्वासा का आदरपूर्वक स्वागत किया और भोजन के लिए आमंत्रित किया।

श्लोक:

अथ द्वादश्यां राजा यथाविधि नन्दनं हरिं।

अभ्यर्चयित्वा द्विजवरोपनेतारं प्रणम्य ते।।

(भागवत पुराण 9.4.29)

भावार्थ:

द्वादशी के दिन अंबरीष ने भगवान विष्णु की पूजा कर अपने व्रत का पारण करने की तैयारी की।

दुर्वासा का क्रोध

  • दुर्वासा ऋषि ने भोजन के लिए कहा, लेकिन वे स्नान के लिए चले गए।
  • अंबरीष द्वादशी का समय बीतने से पहले नियम का पालन करते हुए जल ग्रहण कर पारण करने लगे।
  • दुर्वासा को यह देखकर अत्यधिक क्रोध आया कि अंबरीष ने उनके बिना व्रत खोल लिया।
  • क्रोधित होकर दुर्वासा ने अंबरीष को श्राप देने के लिए अपनी जटा से एक क्रूर राक्षसी उत्पन्न की।

श्लोक:

स वै जटा धृतः कोपात् किमिदं कृतवान्नृपः।

रौद्रां कृत्तिका रक्षां ससर्ज प्रहणाय तम्।।

(भागवत पुराण 9.4.35)

भावार्थ:

दुर्वासा ऋषि ने क्रोध में आकर अंबरीष को मारने के लिए एक भयंकर राक्षसी उत्पन्न की।

सुदर्शन चक्र का प्रकट होना

  • जैसे ही राक्षसी ने अंबरीष पर आक्रमण किया, भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र प्रकट हुआ।
  • सुदर्शन चक्र ने राक्षसी को तुरंत भस्म कर दिया और दुर्वासा ऋषि का पीछा करने लगा।
  • दुर्वासा ऋषि भयभीत होकर तीनों लोकों में भागे, लेकिन सुदर्शन चक्र ने उनका पीछा नहीं छोड़ा।

श्लोक:

सुदर्शनं भगवतो विरजं ते जसाप्रियम्।

तेयं रक्षांसि भद्रं ते पुरस्तादुपसर्पति।।

(भागवत पुराण 9.4.39)

भावार्थ:

सुदर्शन चक्र ने दुर्वासा ऋषि को चारों ओर से घेर लिया और वे भयभीत होकर भागने लगे।

दुर्वासा का भगवान विष्णु की शरण जाना

  • दुर्वासा ऋषि ने भगवान ब्रह्मा और भगवान शिव की शरण ली, लेकिन किसी ने सहायता नहीं की।
  • अंततः वे भगवान विष्णु की शरण में गए।
  • भगवान विष्णु ने कहा कि वे अपने भक्त अंबरीष के प्रति समर्पित हैं और केवल उनके द्वारा क्षमा मिलने पर सुदर्शन चक्र शांत होगा।

श्लोक:

अहं भक्तपराधीनो ह्यस्वतन्त्र इव द्विज।

साधुभिर्ग्रस्तहृदयो भक्तैर्भक्तजनप्रियः।।

(भागवत पुराण 9.4.63)

भावार्थ:

भगवान विष्णु ने कहा, "मैं अपने भक्तों का सेवक हूँ। मेरी स्वतंत्रता उनके प्रेम में बंधी हुई है।"

दुर्वासा की अंबरीष से क्षमा याचना

  • भगवान विष्णु के निर्देशानुसार, दुर्वासा ऋषि ने अंबरीष के पास जाकर क्षमा मांगी।
  • अंबरीष ने अपनी भक्ति और विनम्रता से उन्हें क्षमा कर दिया।
  • सुदर्शन चक्र शांत हो गया, और दुर्वासा ऋषि ने अंबरीष की भक्ति की प्रशंसा की।

श्लोक:

त्वं हि विश्वेश्वरं विष्णुं भक्त्या समर्पितं मनः।

त्वं ममाप्यव्ययं चित्तं क्षमस्वानुग्रहं कुरु।।

(भागवत पुराण 9.5.13)

भावार्थ:

दुर्वासा ऋषि ने अंबरीष की भक्ति की प्रशंसा की और उनसे क्षमा मांगी।

अंबरीष की विनम्रता और भक्ति

  • अंबरीष ने दुर्वासा ऋषि को सम्मान दिया और उनका आतिथ्य किया।
  • उनकी भक्ति और धैर्य ने भगवान विष्णु की कृपा और दुर्वासा ऋषि का आशीर्वाद प्राप्त किया।

श्लोक:

न किंचिदभिनन्द्याहं स्वदोषं परिदृश्य च।

त्वत्प्रसादं ह्यहो जातं सर्वं शान्तिमुपागतम्।।

(भागवत पुराण 9.5.16)

भावार्थ:

अंबरीष ने कहा, "मैं अपने दोषों को देखता हूँ और ऋषि का आशीर्वाद ही मेरे जीवन की शांति है।"

कथा का संदेश

1. भक्ति का महत्व:

भगवान विष्णु अपने भक्तों की सदा रक्षा करते हैं।

2. धैर्य और क्षमा:

अंबरीष ने कठिन परिस्थितियों में भी धैर्य और क्षमा का परिचय दिया।

3. अहंकार का नाश:

दुर्वासा ऋषि का क्रोध और अहंकार अंबरीष की भक्ति के सामने शांत हो गया।

4. भगवान की कृपा:

भगवान अपने भक्तों के प्रति सदैव समर्पित रहते हैं।

निष्कर्ष

 महाराज अंबरीष की कथा भक्ति, धैर्य, और समर्पण का आदर्श है। उनकी भक्ति ने सिखाया कि भगवान विष्णु अपने भक्तों की रक्षा के लिए सदा तत्पर रहते हैं। यह कथा यह भी सिखाती है कि सच्ची भक्ति से हर संकट का समाधान संभव है।


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