सुबह 4 बजे की बस है

Sooraj Krishna Shastri
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यह कहानी के अनुरूप चित्र, जिसमें नेहा अपने कमरे में गहरी सोच में बैठी हुई है। आस-पास बैग, गहने और पारिवारिक गतिविधियाँ – जैसे पापा का काम, अनिकेत की पढ़ाई और माँ का सोना – भावुकता और निर्णय के इस क्षण को दर्शाते हैं।

यह कहानी के अनुरूप चित्र, जिसमें नेहा अपने कमरे में गहरी सोच में बैठी हुई है। आस-पास बैग, गहने और पारिवारिक गतिविधियाँ – जैसे पापा का काम, अनिकेत की पढ़ाई और माँ का सोना – भावुकता और निर्णय के इस क्षण को दर्शाते हैं।



 रात के 12 बज रहे थे। अनुज का फोन आया। फोन पर एक धीमी आवाज में फुसफुसाहट हुई - "हेलो..."

नेहा ने भी धीमे स्वर में जवाब दिया, "हां बोलो..."


अनुज ने पूछा, "सब तैयारी हो गई? सुबह 4 बजे की बस है।"

नेहा ने कहा, "हां, मेरे कपड़े पैक हो गए हैं। बस पैसे और गहने लेना बाकी है।"


अनुज ने फिर कहा, "अपने सारे डॉक्यूमेंट भी ले लेना। नया घर बसाना है, शायद दोनों को काम करना पड़े।"

नेहा ने जवाब दिया, "ठीक है, सब कुछ लेकर तुम्हें कॉल करती हूं।"


इसके बाद नेहा ने माँ की अलमारी खोली। उसमें से गहनों का डिब्बा निकाला और अपने लिए बनवाया गया मंगलसूत्र बैग में रखा। झुमके पहन लिए, और चूड़ियों का डिब्बा बैग में डाल ही रही थी कि माँ की तस्वीर गिर पड़ी। तस्वीर को उठाते हुए उसे याद आया कि माँ ने कितनी मेहनत से ये सब जोड़ा था। माँ की बातें उसे अंदर तक कचोट गईं।


फिर उसने घर के पैसे निकाले। यह वही रकम थी जो पापा, अनिकेत की पढ़ाई के लिए लोन लेकर आए थे। नेहा ने इसे भी बैग में रख लिया। उसके दिल में उलझन थी, लेकिन वह खुद को समझाने की कोशिश कर रही थी।


उसने अनिकेत के कमरे में झांका। अनिकेत पढ़ाई में डूबा हुआ था। माँ नींद की दवा लेकर सो रही थीं। पापा, हमेशा की तरह, वर्किंग टेबल पर बही खाता बना रहे थे। सब अपने काम में व्यस्त थे।


अपने कमरे में जाकर उसने अनुज को फोन लगाया। "सब कुछ तैयार है। घर में कोई जाग नहीं रहा।"

अनुज ने पूछा, "पैसे और गहने ले लिए ना?"

इस बार नेहा को अनुज का यह सवाल चुभा। उसने गुस्से में कहा, "हां ले लिए। लेकिन तुम बार-बार यही क्यों पूछ रहे हो?"


अनुज ने बहलाते हुए कहा, "अरे, नए घर के लिए पैसे तो चाहिए ही ना। मोबाइल भी लेना है। बस तुम फिक्र मत करो।"

नेहा ने एक पल के लिए सोचा और बोली, "सुनो, क्या तुममें इतनी हिम्मत नहीं है कि मेरे लिए कुछ कमा सको?"


अनुज बगलें झांकते हुए बोला, "अरे, ऐसी बात नहीं है। बस शादी के बाद सब ठीक हो जाएगा।"

नेहा अब चुप हो गई। उसे अनुज की बातों में सच्चाई नहीं दिख रही थी।


थोड़ी देर की खामोशी के बाद उसने कहा, "सुनो, अभी के लिए ये भागने का प्लान कैंसल करते हैं। पहले तुम कुछ कमा कर दिखाओ। जब दो महीने का खर्च इकट्ठा कर सको, तब मुझे बुलाना। नहीं कर पाए, तो मुझे भूल जाना।"

अनुज कुछ बोलने ही वाला था कि नेहा ने फोन काट दिया।


नेहा ने पापा के कमरे का दरवाजा खटखटाया। पापा ने चौंककर पूछा, "क्या हुआ बेटा, अभी तक सोई नहीं?"

नेहा ने कहा, "पापा, मैं नौकरी करना चाहती हूं। जब तक अनिकेत की पढ़ाई पूरी नहीं हो जाती, मुझे घर का हाथ बंटाने दीजिए।"

पापा ने स्नेह से नेहा के सिर पर हाथ फेरा। उनकी आंखों में गर्व था।


नेहा मन ही मन सोच रही थी कि भगवान ने उसे सही वक्त पर संभाल लिया। "थैंक यू गॉड, आपने मुझे एक बड़ी गलती करने से बचा लिया।"


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