उत्तररामचरितम्, तृतीय अंक, श्लोक 5 और 6 का अर्थ, व्याख्या और शाब्दिक विश्लेषण

Sooraj Krishna Shastri
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उत्तररामचरितम्, तृतीय अंक, श्लोक 5 और 6 का अर्थ, व्याख्या और शाब्दिक विश्लेषण
उत्तररामचरितम्, तृतीय अंक, श्लोक 5 और 6 का अर्थ, व्याख्या और शाब्दिक विश्लेषण

संस्कृत पाठ और हिन्दी अनुवाद


संस्कृत पाठ:
मुरला:
इयं हि सा—

किसलयमिव मुग्धं बन्धनाद्विप्रलूनं
दयकमलशोषी दारुणो दीर्घशोकः।
ग्लपयति परिपाण्डु क्षाममस्याः शरीरं
शरदिज इव धर्मः केतकीगर्भपत्रम्॥ ५ ॥

(इति परिक्रम्य निष्क्रान्ते।)
इति शुद्धविष्कम्भकः।

(नेपथ्ये)
जात! जात!!
(ततः प्रविशति पुष्पावचयव्यग्रा सकरुणौत्सुक्यमाकर्णयन्ती सीता।)
सीता:
अही, जानामि ‘प्रियसखी वासन्ती व्याहरती’ इति।
(पुनर्नेपथ्ये)
सीतादेव्या स्वकरकलितैः सल्लकीपल्लवाग्रैः
अग्रे लोलः करिकलभको यः पुरा वर्धितोऽभूत्।

सीता:
किं तस्य?
(पुनर्नेपथ्ये)
वध्वा सार्धं विहरन् सोऽयमन्येन दर्पा-
दुद्दामेन द्विरदपतिना सन्निपत्याभियुक्तः॥ ६ ॥


हिन्दी अनुवाद:

मुरला:
यह वही है—

जैसे नवोदित पत्ते (किसलय) को बंधन से अलग कर दिया गया हो,
वैसे ही दीर्घकालीन शोक ने इसे कमजोर और निर्बल बना दिया है।
दुख के प्रभाव से इसका पीला और कमजोर शरीर
शरद ऋतु में केतकी के पत्ते जैसा हो गया है।

(यह कहते हुए मुरला परिक्रमा करती है और बाहर चली जाती है।)
यह शुद्ध विष्कम्भक है।

(नेपथ्य में आवाज आती है।)
जात! जात!!
(फिर, मंच पर प्रवेश करती है सीता, जो पुष्प चुनने में व्यस्त है और करुणा एवं उत्सुकता से सुन रही है।)
सीता:
अरे! मैं जानती हूँ, "मेरी प्रिय सखी वासंती पुकार रही है।"
(फिर नेपथ्य से आवाज आती है।)
सीता देवी के हाथों से सल्लकी (एक प्रकार का वृक्ष) के पत्तों से खेलता हुआ
वह छोटा हाथी जो कभी बढ़ा हुआ था।

सीता:
क्या हुआ उसे?
(फिर नेपथ्य से आवाज आती है।)
अपनी वधू के साथ खेलते हुए,
दूसरे अहंकारी और उन्मत्त हाथी ने उसे टक्कर मार कर घायल कर दिया।


शब्द-विश्लेषण:

  1. किसलयमिव -

    • किसलय - नव पत्ता;
    • इव - जैसा।
    • अर्थ: जैसे नव पत्ते को।
  2. बन्धनाद्विप्रलूनं -

    • बन्धनात् - बंधन से;
    • विप्रलूनं - अलग किया हुआ।
    • अर्थ: बंधन से तोड़ा हुआ।
  3. दयकमलशोषी -

    • दय - करुणा;
    • कमलशोषी - सूखा हुआ कमल।
    • अर्थ: सूखे हुए कमल जैसा।
  4. दीर्घशोक -

    • दीर्घ - लंबा;
    • शोक - दुःख।
    • अर्थ: लंबे समय से चला आ रहा शोक।
  5. परिपाण्डु -

    • परि - अत्यंत;
    • पाण्डु - पीला।
    • अर्थ: अत्यंत पीला।
  6. शरदिज इव धर्मः केतकीगर्भपत्रम् -

    • शरदिज - शरद ऋतु में उत्पन्न;
    • धर्मः - स्वाभाविक गुण;
    • केतकीगर्भपत्रम् - केतकी के भीतर का पत्ता।
    • अर्थ: शरद ऋतु में केतकी के सूखे पत्ते जैसा।
  7. पुष्पावचयव्यग्रा -

    • पुष्प - फूल;
    • अवचय - चुनना;
    • व्यग्रा - व्यस्त।
    • अर्थ: फूल चुनने में व्यस्त।
  8. द्विरदपतिना -

    • द्विरद - हाथी;
    • पतिना - स्वामी।
    • अर्थ: उन्मत्त हाथी।

व्याख्या:

इस अंश में सीता की करुणा और संवेदनशीलता को दर्शाया गया है। मुरला सीता के दीर्घकालीन शोक और उसकी शारीरिक दुर्बलता को केतकी के पत्ते जैसे सूखे और कमजोर रूप में प्रस्तुत करती है। नेपथ्य में हाथी की घटना और वासंती की पुकार सीता के भीतर करुणा और चिंता का संचार करती है।

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