भगवान राम के अवतार की कथा,भागवत पुराण, स्कंध 9, अध्याय 10-11

Sooraj Krishna Shastri
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यह चित्र भगवान राम के अवतार की कथा को दर्शाता है, जैसा कि भागवत पुराण, नवम स्कंध, अध्याय 10-11 में वर्णित है। 



 भगवान राम के अवतार की कथा भागवत पुराण के नौवें स्कंध, अध्याय 10-11 में विस्तृत रूप से वर्णित है। भगवान श्रीराम, विष्णु के सप्तम अवतार माने जाते हैं। उनका अवतार धर्म की स्थापना, राक्षसों के विनाश, और आदर्श जीवन के माध्यम से मानवता को शिक्षा देने के लिए हुआ। यह कथा उनके जीवन की मुख्य घटनाओं और आदर्शों का वर्णन करती है।

श्रीराम के अवतार का उद्देश्य

भगवान विष्णु ने धर्म की रक्षा और अधर्म के विनाश के लिए श्रीराम के रूप में अवतार लिया। रावण और अन्य राक्षसों के अत्याचारों से पृथ्वी और देवता त्रस्त हो गए थे। भगवान ने रावण का वध कर धर्म की स्थापना करने का निर्णय लिया।

श्लोक:

रक्षसां कर्मणामुच्चैः परितोषाय चानघ।

रामो रघुकुलोत्तंसो रावणं जहि दुर्मतम्।।

(भागवत पुराण 9.10.2)

भावार्थ:

भगवान श्रीराम, रघुकुल के रत्न के रूप में अवतरित हुए और रावण जैसे अधर्मी राक्षस का विनाश किया।

श्रीराम के जन्म की कथा

  • भगवान विष्णु ने राजा दशरथ और रानी कौशल्या के पुत्र के रूप में अयोध्या में जन्म लिया।
  • दशरथ की तीन रानियों (कौशल्या, कैकेयी, और सुमित्रा) से चार पुत्र हुए: राम, भरत, लक्ष्मण, और शत्रुघ्न।
  • भगवान श्रीराम का जन्म चैत्र शुक्ल नवमी को हुआ।

श्लोक:

ततो दशरथो राजा रामं धर्मभृतां वरम्।

जातं कौसल्यायां विष्णुं लोकाभिरामम्।।

(भागवत पुराण 9.10.3)

भावार्थ:

राजा दशरथ ने कौशल्या के गर्भ से धर्म के रक्षक भगवान राम को प्राप्त किया।

राम का बाल्यकाल और शिक्षा

  • श्रीराम ने बचपन में ऋषि वशिष्ठ से वेद और शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त किया।
  • वे अपने भाइयों लक्ष्मण, भरत, और शत्रुघ्न के साथ अयोध्या में आनंदपूर्वक बड़े हुए।

विश्‍वामित्र का आगमन और ताड़का-वध

  • ऋषि विश्वामित्र राजा दशरथ के पास आए और श्रीराम और लक्ष्मण को अपने साथ लेकर गए।
  • राम ने ताड़का और सुबाहु जैसे राक्षसों का वध किया और विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा की।

श्लोक:

ताडकां सुबाहुं हत्वा यज्ञस्य परिरक्षणम्।

रामः कृतः शीलवन्तं धर्मं स्थापयते प्रजा।।

(भागवत पुराण 9.10.5)

भावार्थ:

श्रीराम ने ताड़का और सुबाहु का वध कर धर्म की स्थापना की।

सीता स्वयंवर और विवाह

  • राम ने जनकपुर में सीता स्वयंवर में भाग लिया।
  • भगवान शिव का धनुष (पिनाक) तोड़कर उन्होंने सीता का वरण किया।
  • उनका विवाह सीता से हुआ और उनके तीनों भाइयों का विवाह भी जनक के परिवार की कन्याओं से हुआ।

श्लोक:

धनुः पूज्यं महादेवस्य विदारितं यथा हरेः।

सीतां च जानकीं रामः परिगृहीतवान्।।

(भागवत पुराण 9.10.7)

भावार्थ:

श्रीराम ने शिव धनुष तोड़कर सीता का वरण किया।

वनवास की कथा

  • कैकेयी ने दशरथ से दो वरदान मांगे: भरत का राज्याभिषेक और राम का 14 वर्षों का वनवास।
  • श्रीराम ने धर्म का पालन करते हुए वनवास स्वीकार किया।
  • लक्ष्मण और सीता ने राम के साथ वनवास में जाने का निर्णय लिया।

श्लोक:

रामः स सीतया सार्धं लक्ष्मणेन च धर्मवित्।

वनं गतः पितुर्वाचा कैकेय्याः प्रियतां गतः।।

(भागवत पुराण 9.10.10)

भावार्थ:

श्रीराम धर्म का पालन करते हुए सीता और लक्ष्मण के साथ वन चले गए।

रावण का वध और धर्म की स्थापना

  • वनवास के दौरान रावण ने सीता का हरण किया।
  • श्रीराम ने वानरराज सुग्रीव, हनुमान, और उनकी सेना की सहायता से लंका पर चढ़ाई की।
  • उन्होंने रावण का वध कर सीता को मुक्त किया और धर्म की स्थापना की।

श्लोक:

रावणं जग्निरे रामः पापं लोकक्लेशकारिणम्।

धर्मं स्थापयते लोकं रामो राघवनन्दनः।।

(भागवत पुराण 9.10.21)

भावार्थ:

श्रीराम ने रावण का वध कर धर्म की स्थापना की और सीता को मुक्त किया।

अयोध्या वापसी और राज्याभिषेक

  • 14 वर्षों का वनवास समाप्त कर राम, सीता, और लक्ष्मण अयोध्या लौटे।
  • अयोध्या में उनका राज्याभिषेक हुआ और उन्होंने रामराज्य की स्थापना की।
  • रामराज्य में प्रजा सुखी, धर्मपरायण, और समृद्ध थी।

श्लोक:

रामराज्यं हि सततं धर्मं स्थापयते हरिः।

लोकं त्राणं करिष्यन्ति प्रजासुखं यथा युगम्।।

(भागवत पुराण 9.10.27)

भावार्थ:

श्रीराम ने रामराज्य की स्थापना की, जहाँ प्रजा सुखी और धर्मपरायण थी।

कथा का संदेश

1. धर्म का पालन:

श्रीराम का जीवन धर्म और कर्तव्य पालन का आदर्श उदाहरण है।

2. त्याग और समर्पण:

उन्होंने व्यक्तिगत सुख और ऐश्वर्य को त्यागकर प्रजा और धर्म की सेवा की।

3. अहंकार का अंत:

रावण का वध यह सिखाता है कि अहंकार और अधर्म का अंत निश्चित है।

4. आदर्श जीवन:

श्रीराम का आचरण आदर्श पुत्र, पति, भाई, और राजा का प्रतीक है।

निष्कर्ष

श्रीराम की कथा भागवत पुराण में धर्म, त्याग, और भक्ति का अद्भुत उदाहरण है। यह कथा सिखाती है कि भगवान अपने भक्तों और धर्म की रक्षा के लिए हर संभव प्रयास करते हैं। श्रीराम का जीवन आदर्श मानवता और सत्य का मार्ग दिखाता है। भागवत पुराण में वर्णित यह कथा हमें धर्म और कर्तव्य के पथ पर चलने की प्रेरणा देती है।


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