भागवत माहात्म्य, स्कन्द पुराण, द्वितीय अध्याय(हिन्दी अनुवाद)

Sooraj Krishna Shastri
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भागवत माहात्म्य, स्कन्द पुराण, द्वितीय अध्याय  (हिन्दी अनुवाद)

यह चित्र गोवर्धन पर्वत के समीप का एक सुंदर दृश्य प्रदर्शित करता है, जहाँ उद्धव अपनी दिव्य उपस्थिति के साथ प्रकट हो रहे हैं। भक्तजन कुसुम सरोवर के पास भजन-कीर्तन में लीन हैं। गोवर्धन पर्वत और हरी-भरी प्रकृति के साथ वातावरण भक्ति और आनंद से भरपूर है।



भागवत माहात्म्य, स्कन्द पुराण, द्वितीय अध्याय  (हिन्दी अनुवाद)

 नीचे भागवत माहात्म्य, स्कन्द पुराण, द्वितीय अध्याय (हिन्दी अनुवाद) के श्लोकों का विस्तृत हिन्दी अनुवाद क्रमशः दिया गया है:


ऋषयः ऊचुः

श्लोक १: शाण्डिल्य ऋषि का निर्देश

शाण्डिल्ये तौ समादिश्य परावृत्ती स्वमाश्रमम्।
किं कथं चक्रतुस्तौ तु राजानौ सूत तद् वद ॥

हिन्दी अनुवाद:
ऋषियों ने कहा: जब शाण्डिल्य ऋषि ने वज्र और परीक्षित को निर्देश देकर अपने आश्रम लौटने के लिए कहा, तब उन दोनों राजाओं ने क्या किया? हे सूत जी, कृपया हमें विस्तार से बताइए कि उन्होंने आगे किस प्रकार कार्य किया और अपने राज्य में भगवान की सेवा का क्या प्रबंध किया।


सूत उवाच

श्लोक २: मथुरा की व्यवस्था

ततस्तु विष्णुरातेन श्रेणीमुख्याः सहस्रशः।
इन्द्रप्रस्थान् समानाय्य मथुरास्थानमापिताः ॥

हिन्दी अनुवाद:
सूत जी बोले: तत्पश्चात, राजा विष्णुरात (परीक्षित) ने हजारों श्रेणियों के मुखिया (श्रेष्ठ व्यक्तियों) को इन्द्रप्रस्थ से मथुरा बुलाया। उन्होंने मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति और धर्म की पुनर्स्थापना के लिए विभिन्न योजनाएँ बनाईं।


श्लोक ३: मथुरा के निवासियों का सम्मान

माथुरान् ब्राह्मणान् तत्र वानरांश्च पुरातनान्।
विज्ञाय माननीयत्वं तेषु स्थापैतवान् स्वराट् ॥

हिन्दी अनुवाद:
परीक्षित ने मथुरा के ब्राह्मणों और वहाँ के पुराने निवासियों (वानरों) का सम्मान किया। उन्होंने इन लोगों के महत्व को समझते हुए उन्हें उनके स्थान पर प्रतिष्ठित किया और उन्हें भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति के मार्ग पर अग्रसर किया।


श्लोक ४: वज्र की सेवा

वज्रस्तु तत्सहायेन शाण्डिल्यस्याप्यनुग्रहात्।
गोविन्दगोपगोपीनां लीलास्थानान्यनुक्रमात् ॥

हिन्दी अनुवाद:
वज्रनाभ ने शाण्डिल्य ऋषि की कृपा और सहयोग से भगवान श्रीकृष्ण, गोप और गोपियों की लीलाओं के स्थलों को पहचाना। उन्होंने इन स्थलों को पुनः स्थापित किया ताकि वे भगवान की महिमा को दर्शा सकें।


श्लोक ५: तीर्थों और ग्रामों की स्थापना

विज्ञायाभिधयाऽऽस्थाप्य ग्रामानावासयद् बहून्।
कुण्डकूपादिपूर्तेन शिवादिस्थापनेन च ॥

हिन्दी अनुवाद:
वज्रनाभ ने इन पवित्र स्थलों की पहचान करके वहाँ गाँवों की स्थापना की। उन्होंने कुंड, कूप (कुएँ) और अन्य जल स्रोतों का निर्माण कराया। साथ ही, शिव और अन्य देवताओं की मूर्तियों की स्थापना कराई, ताकि तीर्थ स्थलों का महत्व बढ़ सके।


श्लोक ६: कृष्ण भक्ति का प्रचार

गोविन्दहरिदेवादि स्वरूपारोपणेन च।
कृष्णैकभक्तिं स्वे राज्ये ततान च मुमोद ह ॥

हिन्दी अनुवाद:
गोविन्द, हरिदेव आदि भगवान के स्वरूपों को प्रतिष्ठित करने के बाद, वज्रनाभ ने अपने राज्य में कृष्ण भक्ति का प्रचार किया। उन्होंने सुनिश्चित किया कि सभी लोग भगवान श्रीकृष्ण के प्रति समर्पित हों। यह देखकर वह अत्यंत प्रसन्न हुए।


श्लोक ७: प्रजा का आनंद और राज्य की प्रशंसा

प्रजास्तु मुदितास्तस्य कृष्णकीर्तनतत्पराः।
परमानन्दसम्पन्ना राज्यं तस्यैव तुष्टुवुः ॥

हिन्दी अनुवाद:
उनकी प्रजा अत्यंत प्रसन्न थी और वे निरंतर कृष्ण-कथा और कीर्तन में मग्न रहती थीं। उनके राज्य में सभी लोग परमानंद से संपन्न हो गए और राजा के भक्ति से प्रेरित कार्यों की प्रशंसा करने लगे।


श्लोक १०: कृष्ण पत्नियों की व्याकुलता

एकदा कृष्णपत्‍न्यस्तु श्रीकृष्णविरहातुराः।
कालिन्दीं मुदितां वीक्ष्य तत्तासां करुणापरमानसा ॥

हिन्दी अनुवाद:
एक दिन, भगवान श्रीकृष्ण की पत्नियाँ उनके विरह से अत्यंत व्याकुल हो रही थीं। जब उन्होंने यमुना (कालिंदी) को देखा, जो अपने जल से प्रसन्न और शांत दिखाई दे रही थी, तो वे करुणा और दया से भर गईं।


श्लोक ११: कालिंदी का राधा की महिमा का वर्णन

कालिन्दी उवाच - आत्मारामस्य कृष्णस्य ध्रुवमात्मास्ति राधिका।
तस्या दास्यप्रभावेण विरहोऽस्मान् न संस्पृशेत् ॥

हिन्दी अनुवाद:
कालिंदी ने कहा: भगवान श्रीकृष्ण, जो आत्माराम (स्वयं में संतुष्ट) हैं, उनकी आत्मा राधा हैं। उनकी सेवा का प्रभाव इतना अद्भुत है कि उनके साथ होने पर राधा को कभी विरह का अनुभव नहीं होता।


श्लोक १२: राधा और श्रीकृष्ण की सखियों का संबंध

तस्या एवांशविस्ताराः सर्वाः श्रीकृष्णनायिकाः।
नित्यसम्भोग एवास्ति तस्याः साम्मुख्ययोगतः ॥

हिन्दी अनुवाद:
राधा की सभी सखियाँ श्रीकृष्ण की प्रेयसी हैं और उनके साथ नित्य संबंध में रहती हैं। भगवान श्रीकृष्ण और राधा का मिलन उनकी लीलाओं का आधार है, और उनकी सखियाँ इस संबंध का आनंद लेती हैं।


श्लोक १३: राधा-कृष्ण और प्रेम का स्वरूप

स एव सा स सैवास्ति वंशी तत्प्रेमरूपिका।
श्रीकृष्णनखचन्द्रालि सङ्‌घाच्चन्द्रावली स्मृता ॥

हिन्दी अनुवाद:
राधा और श्रीकृष्ण एक ही हैं, वे प्रेम के दो रूप हैं। राधा की सखियों का प्रेम वंशी की ध्वनि के समान श्रीकृष्ण से जुड़ा हुआ है। श्रीकृष्ण के नख-चंद्र जैसे तेज से उनकी प्रिय चंद्रावली का स्मरण होता है, जो उनकी लीलाओं की मधुरता को दर्शाती हैं।


श्लोक १४: रुक्मिणी और अन्य पत्नियों की सेवा लालसा

रूपान्तरमगृह्णाना तयोः सेवातिलालसा।
रुक्मिण्यादिसमावेशो मयात्रैव विलोकितः ॥

हिन्दी अनुवाद:
श्रीकृष्ण की पत्नियाँ, जैसे रुक्मिणी आदि, उनके रूप और लीलाओं को देख-देखकर उनकी सेवा करने की तीव्र इच्छा से भरी रहती हैं। मैंने स्वयं उनके इस प्रेमपूर्ण समर्पण को देखा है, जिसमें वे राधा-कृष्ण के संगम में पूरी तरह लीन हो जाती हैं।


श्लोक १५: पत्नियों का विरह भाव

युष्माकमपि कृष्णेन विरहो नैव सर्वतः।
किन्तु एवं न जानीथ तस्माद् व्याकुलतामिताः ॥

हिन्दी अनुवाद:
हे पत्नियों, आप सभी का भी श्रीकृष्ण से पूर्ण विरह नहीं हुआ है। लेकिन यह बात आप नहीं समझ पातीं, इसलिए व्यर्थ में व्याकुल रहती हैं। वास्तव में, आप सभी हमेशा श्रीकृष्ण की कृपा में रहती हैं।


श्लोक १६: गोपियों का अक्रूर आगमन के समय का अनुभव

एवमेवात्र गोपीनां अक्रूरावसरे पुरा।
विरहाभास एवासीद् उद्धवेन समाहितः ॥

हिन्दी अनुवाद:
गोपियों ने भी पहले (जब अक्रूर मथुरा से भगवान श्रीकृष्ण को ले गए थे) ऐसा ही विरह अनुभव किया था। लेकिन उस समय उद्धव ने उनके इस विरह भाव को शांत किया और उन्हें भगवान की उपस्थिति का बोध कराया।


श्लोक १७: उद्धव से मिलन का सुझाव

तेनैव भवतीनां चेद् भवेदत्र समागमः।
तर्हि नित्यं स्वकान्तेन विहारमपि पल्स्यथ ॥

हिन्दी अनुवाद:
यदि आप सभी उद्धव से मिलेंगी, तो आपके प्रिय श्रीकृष्ण के साथ सदा के लिए संबंध का अनुभव हो सकता है। उद्धव के उपदेश से आप भगवान की नित्य लीलाओं का आनंद भी प्राप्त कर सकती हैं।


श्लोक १८: पत्नियों की प्रसन्नता और प्रश्न

एवमुक्तास्तु ताः पत्‍न्यः प्रसन्नां पुनरब्रुवन्।
उद्धवालोकनेनात्म प्रेष्ठसङ्‌गमलालसाः ॥

हिन्दी अनुवाद:
कालिंदी के वचनों को सुनकर श्रीकृष्ण की पत्नियाँ प्रसन्न हो गईं। लेकिन वे उद्धव से मिलने की लालसा रखते हुए उनसे यह पूछने लगीं कि उन्हें उद्धव से कैसे मिलन संभव हो सकता है।


श्लोक १९: राधा की महिमा की प्रशंसा

श्रीकृष्णपत्‍न्य ऊचुः - धन्यासि सखि कान्तेन यस्या नैवास्ति विच्युतिः।
यतस्ते स्वार्थसंसिद्धिः तस्या दास्यो बभूविम ॥

हिन्दी अनुवाद:
श्रीकृष्ण की पत्नियाँ कहने लगीं: हे सखी, राधा अत्यंत धन्य हैं क्योंकि उनके और श्रीकृष्ण के बीच कभी भी कोई विछोह नहीं होता। राधा के साथ श्रीकृष्ण का प्रेम उनके अपने उद्देश्य की पूर्णता है। हम भी उनकी दासी बनने के लिए लालायित हैं।


श्लोक २०: उद्धव से मिलने की इच्छा

परन्तूद्धवलाभे स्याद् अस्मत् सर्वार्थसाधनम्।
तथा वदस्व कालिन्दि तल्लाभोऽपि यथा भवेत् ॥

हिन्दी अनुवाद:
हम उद्धव से मिलना चाहती हैं, क्योंकि उनके दर्शन से हमें हमारे समस्त उद्देश्यों की प्राप्ति होगी। हे कालिंदी, कृपया हमें बताइए कि हम उद्धव से कैसे मिल सकती हैं।


श्लोक २१: कालिंदी का समाधान

एवमुक्ता तु कालिन्दी प्रत्युवाचाथ तास्तथा।
स्मरन्ती कृष्णचन्द्रस्य कलाः षोडशरूपिणीः ॥

हिन्दी अनुवाद:
पत्नियों के वचन सुनकर कालिंदी ने उन्हें शांत किया। वह श्रीकृष्ण की षोडश कलाओं को स्मरण करते हुए उन्हें समझाने लगीं कि उद्धव से मिलना और भगवान की कृपा प्राप्त करना कैसे संभव हो सकता है।


श्लोक २२: उद्धव के स्थान का संकेत

साधनभूमिर्बदरी व्रजता कृष्णेन मंत्रिणे प्रोक्ता।
तत्रास्ते स तु साक्षात् तद् वयुनं ग्राहयन् लोकान् ॥

हिन्दी अनुवाद:
श्रीकृष्ण ने अपने मंत्री उद्धव को बद्रीनाथ (बदरी) जाने का निर्देश दिया था। उद्धव वहाँ तपस्या कर रहे हैं और अपने दिव्य ज्ञान से लोगों को भगवान की लीला और उपदेश समझा रहे हैं।


श्लोक २३: उद्धव की उपस्थिति का स्थान

फलभूमिर्व्रजभूमिः दत्ता तस्मै पुरैव सरहस्यम्।
फलमिह तिरोहितं सत्तद् इहेदानीं स उद्धवोऽलक्ष्यः ॥

हिन्दी अनुवाद:
भगवान श्रीकृष्ण ने उद्धव को वृन्दावन की पवित्र भूमि में एक विशेष स्थान सौंपा है। वह स्थान अत्यंत रहस्यमय है, और वहीं उद्धव तपस्या करते हुए भगवान की दिव्य लीलाओं का स्मरण कर रहे हैं।


श्लोक २४: गोवर्धन के पास उद्धव का निवास

गोवर्द्धनगिरिनिकटे सखीस्थले तद्रजः कामः।
तत्रत्याङ्‌कुरवल्लीरूपेणास्ते स उद्धवो नूनम् ॥

हिन्दी अनुवाद:
गोवर्धन पर्वत के निकट सखीस्थली नामक स्थान में उद्धव निवास कर रहे हैं। वह स्थान अत्यंत पवित्र है और वहाँ की लताएँ और अंकुर भी भगवान की लीलाओं से परिपूर्ण हैं।

श्लोक २५: उद्धव का सेवा स्थल

आत्मोत्सवरूपत्वं हरिणा तस्मै समार्पितं नियतम्।
तस्मात् तत्र स्थित्वा कुसुमसरःपरिसरे सवज्राभिः ॥

हिन्दी अनुवाद:
भगवान श्रीकृष्ण ने उद्धव को अपनी सेवा का वह स्थान सौंपा, जो आत्मिक उत्सव के समान है। इसलिए, वज्र और अन्य भक्तों को उस क्षेत्र में जाकर, कुसुम सरोवर के निकट स्थित स्थान पर भगवान के चरणों की सेवा करनी चाहिए।


श्लोक २६: उत्सव का प्रारंभ

वीणावेणुमृदङ्‌गैः कीर्तनकाव्यादिसरससङ्‌गीतैः।
उत्सव आरब्धव्यो हरिरतलोकान् समानाय्य ॥

हिन्दी अनुवाद:
वीणा, बांसुरी, मृदंग और अन्य वाद्ययंत्रों के साथ भगवान के कीर्तन और कविताओं के माध्यम से भव्य उत्सव का आयोजन करना चाहिए। इस उत्सव से भगवान के लोकों (वैकुंठ) और उनके भक्तों के बीच संबंध प्रकट होता है।


श्लोक २७: उद्धव का दर्शन

तत्रोद्धवावलोको भविता नियतं महोत्सवे वितते।
यौष्माकीणां अभिमतसिद्धिं सविता स एव सवितानाम् ॥

हिन्दी अनुवाद:
इस महोत्सव के दौरान, उद्धव का दर्शन निश्चित रूप से होगा। उद्धव सभी भक्तों की इच्छाओं को पूर्ण करने वाले हैं और भगवान के प्रिय भक्तों के रूप में वे महोत्सव को दिव्य बना देंगे।


सूत उवाच

श्लोक २८: पत्नियों की प्रसन्नता

इति श्रुत्वा प्रसन्नास्ताः कालिन्दीं अभिवन्द्य तत्।
कथयामासुरागत्य वज्रं प्रति परीक्षितम् ॥

हिन्दी अनुवाद:
कालिंदी के वचनों को सुनकर भगवान श्रीकृष्ण की पत्नियाँ अत्यंत प्रसन्न हो गईं। उन्होंने कालिंदी को प्रणाम किया और फिर वज्र और परीक्षित के पास जाकर सारी बातें बताईं।


श्लोक २९: वज्र का आदेश

विष्णुरातस्तु तत् श्रुत्वा प्रसन्नस्तद्युतस्तदा।
तत्रैवागत्य तत् सर्वं कारयामास सत्वरम् ॥

हिन्दी अनुवाद:
राजा विष्णुरात (परीक्षित) ने इन वचनों को सुनकर प्रसन्नता व्यक्त की। उन्होंने तुरंत गोवर्धन के पास जाकर उस स्थान पर सभी आवश्यक प्रबंध किए और भगवान के लिए एक भव्य उत्सव का आयोजन करवाया।


श्लोक ३०: गोवर्धन के समीप उत्सव का आयोजन

गोवर्द्धनाददूरेण वृन्दारण्ये सखीस्थले।
प्रवृत्तः कुसुमाम्भोधौ कृष्णसंकीर्तनोत्सवः ॥

हिन्दी अनुवाद:
गोवर्धन पर्वत के समीप, वृंदावन के सखीस्थल नामक स्थान पर, कुसुम सरोवर के किनारे, भगवान श्रीकृष्ण का भव्य संकीर्तन उत्सव प्रारंभ हुआ।


श्लोक ३१: भगवान की लीला का अनुभव

वृषभानुसुताकान्त विहारे कीर्तनश्रिया।
साक्षादिव समावृत्ते सर्वेऽनन्यदृशोऽभवन् ॥

हिन्दी अनुवाद:
वृषभानु की पुत्री (राधा) और श्रीकृष्ण के विहार स्थलों पर कीर्तन की महिमा से ऐसा प्रतीत हुआ जैसे भगवान स्वयं उपस्थित हो गए हों। वहाँ उपस्थित सभी भक्तों की दृष्टि एकमात्र भगवान पर केंद्रित हो गई।


श्लोक ३२: उद्धव का आगमन

ततः पश्यत्सु सर्वेषु तृणगुल्मलताचयात्।
आजगामोद्धवः स्रग्वी श्यामः पीताम्बरावृतः ॥

हिन्दी अनुवाद:
जब सभी भक्त उत्सव में मग्न थे, तो गोवर्धन के पास की झाड़ियों और लताओं के मध्य से उद्धव प्रकट हुए। वे पीले वस्त्र धारण किए हुए थे और उनके गले में पुष्पमाला शोभायमान थी।


श्लोक ३३: उद्धव का दिव्य स्वरूप

गुञ्जमालाधरो गायन् वल्लवीवल्लभं मुहुः।
तदागमनतो रेजे भृशं सङ्‌कीर्तनोत्सवः ॥

हिन्दी अनुवाद:
उद्धव ने अपने सिर पर गुञ्जा माला धारण कर रखी थी और वे भगवान श्रीकृष्ण की मधुर लीलाओं का गायन कर रहे थे। उनके आगमन से संकीर्तन उत्सव की शोभा और अधिक बढ़ गई।


श्लोक ३४: आनंद का विस्तार

चन्द्रिकागमतो यद्वत् स्फाटिकाट्टालभूमणिः।
अथ सर्वे सुखाम्भोधौ मग्नाः सर्वं विसस्मरुः ॥

हिन्दी अनुवाद:
जैसे चाँदनी के आने से स्फटिक मणि की चमक बढ़ जाती है, वैसे ही उद्धव के आगमन से सभी भक्त आनंद के सागर में डूब गए। वे अपनी सभी चिंताओं को भूलकर केवल भगवान के भजन और लीला में लीन हो गए।


श्लोक ३५: उद्धव का पूजन और श्रीकृष्ण का अनुभव

क्षणेनागतविज्ञाना दृष्ट्वा श्रीकृष्णरूपिणम्।
उद्धवं पूजयाञ्चक्रुः प्रतिलब्धमनोरथाः ॥

हिन्दी अनुवाद:
क्षणभर में, सभी ने उद्धव के स्वरूप में भगवान श्रीकृष्ण की झलक देखी। उन्होंने उद्धव का आदर और पूजन किया और अपने मन में भगवान श्रीकृष्ण की उपस्थिति का अनुभव किया।


इति श्रीस्कांदे महापुराणे एकशीतिसाहस्र्यां संहितायां द्वितीये वैष्णव खण्डे श्रीमद्भागवत माहात्म्ये गोवर्धन पर्वत समीपे परीक्षिदादीनां उद्धव दर्शन वर्णनं नाम द्वितीयोऽध्यायः ॥

इस प्रकार, श्रीस्कंद महापुराण के वैष्णव खंड में गोवर्धन पर्वत के समीप परीक्षित, वज्र और अन्य भक्तों द्वारा उद्धव के दर्शन का यह दूसरा अध्याय समाप्त होता है।


यहाँ भागवत माहात्म्य, स्कन्द पुराण, द्वितीय अध्याय (हिन्दी अनुवाद) के सभी श्लोकों का विस्तृत अनुवाद समाप्त हुआ। यदि भागवत माहात्म्य, स्कन्द पुराण, द्वितीय अध्याय (हिन्दी अनुवाद) किसी श्लोक पर और गहराई से चर्चा या व्याख्या चाहिए, तो कृपया कमेंट में बताएं।

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