नहिं पद त्रान सीस नहिं छाया। पेमु नेमु ब्रतु धरमु अमाया॥

Sooraj Krishna Shastri
By -

यह चित्र भगवान श्रीराम के वनवास के समय का एक और स्पष्ट और दिव्य दृश्य प्रस्तुत करता है। प्रत्येक पात्र के चेहरे के भाव, वेशभूषा, और प्राकृतिक परिवेश को अत्यंत सजीव और विस्तृत रूप में चित्रित किया गया है। स्वर्णिम प्रकाश और अद्भुत वनस्पति इस दृश्य की आध्यात्मिकता को और गहन बनाते हैं।नहिं पद त्रान सीस नहिं छाया। पेमु नेमु ब्रतु धरमु अमाया॥


नहिं पद त्रान सीस नहिं छाया। पेमु नेमु ब्रतु धरमु अमाया॥

 यह चौपाई गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरितमानस से ली गई है। यह अरण्यकांड में श्री राम के वनगमन के समय वर्णित है। इसमें श्रीराम के वनवासी स्वरूप और उनकी सादगीपूर्ण जीवनशैली का वर्णन है।

श्रीराम के इस स्वरूप से यह संदेश मिलता है कि सच्चा धर्म और भक्ति बाहरी आडंबरों से मुक्त, प्रेम और सच्चाई पर आधारित होना चाहिए।

चौपाई

"नहिं पद त्रान सीस नहिं छाया।
पेमु नेमु ब्रतु धरमु अमाया॥"

संदर्भ

यह चौपाई गोस्वामी तुलसीदासजी की काव्य रचना रामचरितमानस के अरण्यकांड से ली गई है। इसमें श्रीराम के वनवास के समय उनके तपस्वी स्वरूप का चित्रण किया गया है। श्रीराम अपने अनुज लक्ष्मण और सीता के साथ वन में निवास कर रहे हैं। इस चौपाई में उनकी सादगी, त्याग और आदर्श जीवनशैली का वर्णन हुआ है।


प्रसंग

यह चौपाई उस समय की है जब भगवान श्रीराम वनवास का कठिन जीवन व्यतीत कर रहे हैं। वे राजसी सुखों और साधनों का त्याग कर तपस्वी जीवन जी रहे हैं। यहाँ तुलसीदासजी ने श्रीराम के सरल और निष्कपट जीवन का वर्णन किया है।


शब्दार्थ

  1. पद त्रान: पैरों में पहनने के लिए जूते (चरण पादुका)।
  2. सीस छाया: सिर पर छत्र या धूप-बरसात से बचने के लिए छाया।
  3. पेमु: प्रेम, जो सच्चा और शुद्ध होता है।
  4. नेमु: नियम, अनुशासन।
  5. ब्रतु: व्रत, संकल्प या तप।
  6. धरमु अमाया: निष्कपट और सच्चा धर्म।

भावार्थ

इस चौपाई में तुलसीदासजी ने बताया है कि:

  • पद त्रान नहिं: श्रीराम के पैरों में जूते तक नहीं हैं, जो साधनहीनता और उनकी सहनशीलता का प्रतीक है।
  • सीस छाया नहिं: उनके सिर पर छत्र नहीं है, जो यह दर्शाता है कि वे राजसी ऐश्वर्य का त्याग कर चुके हैं।
  • पेमु नेमु ब्रतु धरमु अमाया: उनका जीवन प्रेम, अनुशासन, व्रत और सच्चे धर्म पर आधारित है। उनके कर्तव्य और धर्म में कोई छल-कपट नहीं है।

विश्लेषण

यह चौपाई श्रीराम के आदर्श जीवन का प्रतीक है। इसका विस्तार से विश्लेषण निम्न बिंदुओं में किया जा सकता है:

  1. सादगी का प्रतीक:
    श्रीराम का वनवास केवल एक राजकुमार का राज्य त्याग नहीं था, बल्कि यह एक सादगीपूर्ण जीवन की ओर एक प्रेरणा थी। उनके पैरों में जूते न होना और सिर पर छत्र न होना यह दर्शाता है कि सच्चा सुख भौतिक चीजों में नहीं, बल्कि आंतरिक संतोष में है।

  2. धर्म की निष्कपटता:
    "धरमु अमाया" यह दिखाता है कि धर्म का पालन छल-कपट और दिखावे से मुक्त होना चाहिए। श्रीराम का धर्म केवल कर्मकांड नहीं, बल्कि प्रेम और सच्चाई पर आधारित था।

  3. प्रेम और नियम:
    "पेमु नेमु ब्रतु" यह बताता है कि उनके जीवन में प्रेम सबसे महत्वपूर्ण स्थान रखता था। उनका नियम और व्रत उनकी आत्मानुशासन और दृढ़ संकल्प का प्रतीक है।

  4. सर्वजन हितकारी संदेश:
    श्रीराम का वनवासी जीवन यह सिखाता है कि सच्चा जीवन वह है जो समाज और प्राणी मात्र के कल्याण के लिए समर्पित हो। यह चौपाई साधनों की अपेक्षा मूल्यों और आदर्शों को अधिक महत्व देती है।

  5. त्याग और तप का आदर्श:
    श्रीराम का यह रूप त्याग और तप का आदर्श प्रस्तुत करता है। उन्होंने एक राजा होते हुए भी अपने कर्तव्यों के लिए राजमहल और सुख-वैभव छोड़ दिया।


आधुनिक संदर्भ में उपयोगिता

यह चौपाई हमें सिखाती है कि:

  • जीवन में बाहरी वस्त्र और सुविधाओं का उतना महत्व नहीं है जितना सच्चे प्रेम, अनुशासन और धर्म का है।
  • दिखावे और छल-कपट से रहित जीवन ही सच्चे सुख का आधार है।
  • सादगी, सहनशीलता और त्याग जीवन को सुंदर और अर्थपूर्ण बनाते हैं।

निष्कर्ष

गोस्वामी तुलसीदासजी ने इस चौपाई के माध्यम से भगवान श्रीराम के आदर्श चरित्र का चित्रण किया है। यह चौपाई हमें प्रेरणा देती है कि हमें सच्चा और निष्कपट जीवन जीना चाहिए, जहाँ प्रेम, नियम और धर्म के मूल्यों को सर्वोपरि रखा जाए। यह केवल श्रीराम के जीवन का वर्णन नहीं, बल्कि संपूर्ण मानव जाति के लिए एक अमूल्य जीवन दर्शन है।

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!