भगवान श्रीकृष्ण का अवतार, भागवत दशम स्कंध

Sooraj Krishna Shastri
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भगवान श्रीकृष्ण का अवतार, भागवत दशम स्कंध

भगवान श्रीकृष्ण का अवतार, भागवत दशम स्कंध । यह भव्य चित्र भगवान श्रीकृष्ण के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं को दर्शाता है। इसमें उनके जन्म का दृश्य, बाल लीलाएँ जैसे माखन चोरी और कालिया नाग पर नृत्य, मथुरा में कंस वध, द्वारका में उनके राजसी जीवन, और महाभारत के युद्धक्षेत्र में अर्जुन को गीता उपदेश देने का दृश्य शामिल है। चित्र को दिव्यता और आध्यात्मिकता से सजाया गया है। 



भगवान श्रीकृष्ण का अवतार, भागवत दशम स्कंध 

 भगवान श्रीकृष्ण का अवतार भागवत पुराण के दशम स्कंध में विस्तार से वर्णित है। श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के पूर्ण अवतार माने जाते हैं, जो धर्म की स्थापना, अधर्म का नाश, और भक्ति के आदर्श स्थापित करने के लिए अवतरित हुए। उनकी कथा उनके जन्म, बाल लीलाओं, मथुरा और द्वारका की लीलाओं, और महाभारत में उनकी भूमिका का विवरण प्रस्तुत करती है।

श्रीकृष्ण के अवतार का उद्देश्य

जब पृथ्वी पर अधर्म बढ़ गया, और कंस, जरासंध, शिशुपाल जैसे असुरों का अत्याचार बढ़ा, तब पृथ्वी ने गाय के रूप में ब्रह्मा के पास जाकर भगवान विष्णु से रक्षा की प्रार्थना की। भगवान विष्णु ने वादा किया कि वे यदु वंश में अवतार लेंगे।

श्लोक:

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।

(भागवत पुराण 10.1.17)

भावार्थ:

भगवान ने कहा कि जब-जब धर्म का ह्रास और अधर्म का उत्थान होगा, तब-तब मैं अवतार लूंगा।

श्रीकृष्ण का जन्म - कंस का अत्याचार

  • कंस ने अपने पिता उग्रसेन को कैद कर मथुरा पर अधिकार कर लिया।
  • आकाशवाणी ने भविष्यवाणी की कि वसुदेव और देवकी का आठवां पुत्र कंस का वध करेगा।
  • कंस ने देवकी और वसुदेव को कैद कर लिया और उनके छह बच्चों का वध कर दिया।

श्लोक:

कंसः श्रुत्वा च वचनं देवकी गर्भसंभवम्।

हन्तुं प्रवृत्तः सुदृढं भ्रातुः भयमवस्थितः।।

(भागवत पुराण 10.1.38)

भावार्थ:

आकाशवाणी सुनकर कंस भयभीत हो गया और उसने देवकी की संतानों का वध करना शुरू कर दिया।

श्रीकृष्ण का जन्म

  • श्रीकृष्ण ने भाद्रपद मास की अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र में वसुदेव और देवकी के पुत्र के रूप में जन्म लिया।
  • उनके जन्म के समय जेल में दिव्य प्रकाश फैल गया, और वसुदेव-देवकी को भगवान के दिव्य रूप का दर्शन हुआ।

श्लोक:

ततः क्षीरोदकांभोधौ कृष्णं प्रादुर्बभूव हरेः।

वसुदेवगृहे शौरिः कृष्णः सकलपातकनाशनः।।

(भागवत पुराण 10.3.1)

भावार्थ:

श्रीकृष्ण ने वसुदेव और देवकी के घर दिव्य रूप में जन्म लिया।

गोकुल में स्थानांतरण

  • वसुदेव ने नवजात श्रीकृष्ण को कंस से बचाने के लिए यमुना पार कर नंद और यशोदा के घर गोकुल में छोड़ दिया।
  • नंद के घर कन्या के रूप में जन्मी योगमाया को वसुदेव ने मथुरा वापस लाकर कंस को सौंप दिया।

बाल लीलाएँ - पूतना वध

  • गोकुल में पूतना नामक राक्षसी ने श्रीकृष्ण को मारने का प्रयास किया, लेकिन भगवान ने उसे वध कर दिया।

श्लोक:

स तु द्राक्ष्यति तां पूतनां दुर्धर्षां दैत्ययोषितम्।

स्तनं ग्रसन्तं बालं मृत्युमिवापहृतं शनैः।।

(भागवत पुराण 10.6.4)

भावार्थ:

श्रीकृष्ण ने पूतना के स्तनपान के बहाने उसका वध कर दिया।

शकटासुर और तृणावर्त वध

भगवान ने बचपन में ही शकटासुर और तृणावर्त जैसे असुरों का वध किया।

माखन चोरी और गोप बालकों के साथ लीला

श्रीकृष्ण ने माखन चुराने और गोपियों के साथ रास रचाने की बाल लीलाएँ कीं।

श्लोक:

कृष्णं विदुर्व्रजवनं चरन्तं गोपांगनाः।

नन्दमन्दिरे नन्दनं बाललीलाप्रचारिणम्।।

(भागवत पुराण 10.8.15)

भावार्थ:

गोपियों और गोपबालकों ने श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का आनंद लिया।

कालिया नाग का दमन

यमुना में विष फैलाने वाले कालिया नाग का भगवान ने दमन किया और उसे वहाँ से भगा दिया।

श्लोक:

कालियं विषराशिं तं कृष्णः पर्याक्रमत्।

पदाघातेन लोकानां विषं नाशयतीश्वरः।।

(भागवत पुराण 10.16.67)

भावार्थ:

भगवान श्रीकृष्ण ने कालिया नाग का दमन कर यमुना को शुद्ध किया।

गोवर्धन लीला

इंद्र द्वारा की गई मूसलधार वर्षा से गोकुलवासियों की रक्षा के लिए श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाया।

श्लोक:

गोवर्धनं च धारयामास कृष्णो भुजाग्रतः।

व्रजवासिनां त्राणाय महेन्द्रस्य गर्वनाशनम्।।

(भागवत पुराण 10.25.19)

भावार्थ:

श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाकर इंद्र के अहंकार को नष्ट किया।

कंस वध

  • श्रीकृष्ण ने मथुरा जाकर कुश्ती प्रतियोगिता में कंस का वध किया।
  • उन्होंने उग्रसेन को पुनः मथुरा का राजा बनाया।

श्लोक:

कंसं हत्वा महासत्त्वो राघवो वसुदेवजः।

उग्रसेनं पुनः कृत्वा राज्ये धर्मं प्रस्थापयत्।।

(भागवत पुराण 10.45.52)

भावार्थ:

श्रीकृष्ण ने कंस का वध कर धर्म की स्थापना की।

द्वारका की स्थापना

श्रीकृष्ण ने मथुरा छोड़कर समुद्र किनारे द्वारका नगरी की स्थापना की।

महाभारत और गीता का उपदेश

श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध में अर्जुन को गीता का दिव्य उपदेश दिया, जो धर्म और कर्म योग का मार्गदर्शन करता है।

श्लोक:

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।

(भागवत पुराण 10.50.13)

भावार्थ:

भगवान ने अर्जुन को धर्म की रक्षा के लिए कर्म करने की प्रेरणा दी।

श्रीकृष्ण का प्रस्थान

यदुवंश के आपसी संघर्ष के बाद श्रीकृष्ण ने अपना लीला संवरण किया और अपने धाम वापस लौट गए।

श्लोक:

कृष्णो गत्वा निजं धाम धर्मं स्थाप्य च भूतले।

लोकानां त्राणकारणं जगाम परमं पदम्।।

(भागवत पुराण 11.31.25)

भावार्थ:

श्रीकृष्ण ने अपना कार्य पूर्ण कर परमधाम को प्रस्थान किया।

कथा का संदेश

1. धर्म की स्थापना:

श्रीकृष्ण का अवतार धर्म की पुनः स्थापना और अधर्म के विनाश के लिए हुआ।

2. भक्ति का महत्व:

गोपियों और भक्तों के साथ उनकी लीलाएँ भक्ति के महत्व को दर्शाती हैं।

3. अहंकार का नाश:

इंद्र और कंस जैसे पात्रों के अहंकार को नष्ट कर उन्होंने विनम्रता और सत्य का आदर्श प्रस्तुत किया।

4. कर्म योग:

गीता का उपदेश कर्म करते हुए धर्म का पालन करने की शिक्षा देता है।

निष्कर्ष

भगवान श्रीकृष्ण की कथा भक्ति, धर्म, और कर्मयोग का अद्भुत मिश्रण है। भागवत पुराण में उनकी कथा उनके जीवन के प्रत्येक पहलू को विस्तार से प्रस्तुत करती है, जो हमें धर्म, भक्ति, और सेवा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है

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