 |
महाभारत कथा: होनी बहुत बलवान है |
महाभारत कथा: होनी बहुत बलवान है
🔹 जन्मेजय का अभिमान और वेदव्यास जी से संवाद
महाभारत के युद्ध के बाद राजा परीक्षित के पुत्र जन्मेजय हस्तिनापुर के राजा बने। एक दिन वे वेदव्यास जी के पास पहुंचे और चर्चा के दौरान उन्होंने नाराजगी भरे शब्दों में कहा—
"गुरुदेव! जब महाभारत के युद्ध के समय आप स्वयं वहाँ थे, भगवान श्रीकृष्ण थे, भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य जैसे महान ज्ञानी और धर्मराज युधिष्ठिर जैसे सत्यनिष्ठ राजा वहाँ उपस्थित थे, तो फिर भी युद्ध को क्यों नहीं रोका गया? इतने महान लोग होते हुए भी इतना भयंकर विनाश क्यों हुआ? यदि मैं उस समय उपस्थित होता, तो अपने पुरुषार्थ से इस विनाश को रोक सकता था।"
व्यास जी जन्मेजय के अहंकार को देखकर भी शांत रहे और बोले—
"पुत्र! अपने पूर्वजों की क्षमता पर शंका मत करो। यह विधि द्वारा निश्चित था। यदि इसे टाला जा सकता, तो स्वयं भगवान श्रीकृष्ण इस युद्ध को रोक सकते थे।"
परंतु जन्मेजय अपने विचारों पर अडिग रहे और बोले—
"गुरुदेव! मैं इस सिद्धांत को नहीं मानता। आप तो भविष्यवक्ता हैं, मेरे जीवन की कोई भी आगामी घटना बताइए, मैं उसे रोककर सिद्ध कर दूंगा कि होनी निश्चित नहीं होती।"
व्यास जी मुस्कुराए और बोले—
"यदि तू यही चाहता है तो सुन…"
🔹 वेदव्यास जी की भविष्यवाणी
व्यास जी ने जन्मेजय को उसकी आगामी जीवन-घटनाओं का संक्षिप्त वर्णन किया—
1️⃣ तू एक दिन काले घोड़े पर बैठकर शिकार के लिए निकलेगा।
2️⃣ दक्षिण दिशा में समुद्र तट पर तुझे एक सुंदर स्त्री मिलेगी।
3️⃣ तू उसे अपने महल में लाएगा और उससे विवाह करेगा।
4️⃣ उस स्त्री के कहने पर तू एक यज्ञ करेगा।
5️⃣ मैं तुझे पहले से सचेत करूंगा कि उस यज्ञ को वृद्ध ब्राह्मणों से ही कराना, लेकिन तू युवा ब्राह्मणों से कराएगा।
6️⃣ यज्ञ में ऐसी घटना घटेगी कि तू क्रोधित होकर उन युवा ब्राह्मणों को प्राणदंड देगा।
7️⃣ इससे तुझे ब्रह्म-हत्या का पाप लगेगा और तू कुष्ठ रोग से ग्रसित हो जाएगा, जो अंततः तेरी मृत्यु का कारण बनेगा।
जन्मेजय यह सुनकर हंस पड़ा और बोला—
"गुरुदेव! मैं आज से काले घोड़े पर चढ़ूंगा ही नहीं, तो यह सब होगा ही नहीं।"
व्यास जी बोले—
"यह सब निश्चित होकर रहेगा, चाहे तू कितना भी प्रयास कर ले।"
🔹 होनी के समय को कोई नहीं टाल सकता
जन्मेजय ने शिकार पर जाना छोड़ दिया। परंतु जब होनी का समय आया, तो उसके भीतर शिकार पर जाने की बलवती इच्छा जागृत हुई। उसने सोचा कि 'मैं काला घोड़ा नहीं लूंगा', लेकिन उस दिन अस्तबल में केवल काला घोड़ा ही मिला। उसने फिर सोचा 'मैं दक्षिण दिशा में नहीं जाऊंगा', परंतु घोड़ा अनियंत्रित होकर दक्षिण दिशा की ओर ही भागा और समुद्र तट पर पहुंचा।
वहीं उसने एक सुंदर स्त्री को देखा और उस पर मोहित हो गया। जन्मेजय ने ठान लिया कि 'मैं इसे महल तो ले जाऊंगा, लेकिन विवाह नहीं करूंगा।' परंतु कुछ समय बाद उस स्त्री के प्रेम में पड़कर उसने विवाह भी कर लिया।
फिर रानी के कहने पर राजा ने यज्ञ किया। व्यास जी की चेतावनी के बावजूद, यज्ञ के लिए युवा ब्राह्मणों को ही बुलाया गया।
यज्ञ के दौरान किसी प्रसंग में युवा ब्राह्मण रानी पर हंस पड़े। इससे रानी क्रोधित हो गई और जन्मेजय से उनकी सजा की मांग की।
राजा ने क्रोध में आकर सभी युवा ब्राह्मणों को प्राणदंड दे दिया।
इसके परिणामस्वरूप—
✔ उसे ब्रह्म-हत्या का पाप लगा।
✔ कुष्ठ रोग हो गया।
✔ यही रोग उसकी मृत्यु का कारण बना।
अब जन्मेजय घबरा गया और तुरंत वेदव्यास जी के पास पहुंचा।
🔹 महाभारत कथा श्रवण – अंतिम अवसर
राजा ने व्यास जी से प्रार्थना की—
"गुरुदेव! कृपया मेरे जीवन की रक्षा करें।"
व्यास जी बोले—
"एक अंतिम अवसर है—मैं तुझे महाभारत की कथा सुनाऊंगा। यदि तू पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ इसे सुनेगा, तो तेरा कुष्ठ रोग मिटता जाएगा। लेकिन यदि किसी भी प्रसंग पर तेरा विश्वास डगमगाया, तो मैं कथा वहीं रोक दूंगा, और तब मैं भी तुझे नहीं बचा पाऊंगा।"
अब तक जन्मेजय को व्यास जी की बातों पर पूर्ण विश्वास हो चुका था। उसने संकल्प लिया कि वह पूरी श्रद्धा और विश्वास से कथा श्रवण करेगा।
🔹 अविश्वास के कारण बचा हुआ कुष्ठ रोग
महाभारत कथा का श्रवण प्रारंभ हुआ।
जब भीम की शक्ति के प्रसंग आए—
"भीम ने हाथियों को सूंड से पकड़कर अंतरिक्ष में उछाल दिया, और वे हाथी आज भी अंतरिक्ष में घूम रहे हैं।"
यह सुनकर जन्मेजय स्वयं को रोक नहीं पाया और बोल उठा—
"गुरुदेव! यह कैसे संभव हो सकता है? मैं इसे नहीं मानता।"
व्यास जी ने तुरंत महाभारत कथा सुनाना रोक दिया और बोले—
"पुत्र! मैंने तुझे पहले ही चेताया था कि श्रद्धा न डगमगाना। परंतु यह भी होनी द्वारा निश्चित था।"
फिर व्यास जी ने अपनी मंत्र शक्ति से आकाश में घूम रहे हाथियों को पृथ्वी की ओर खींचा, और वे नीचे गिरने लगे।
यह देखकर जन्मेजय को अपनी भूल का अहसास हुआ।
✔ जितनी श्रद्धा और विश्वास से उसने कथा सुनी, उतनी मात्रा में उसका कुष्ठ रोग दूर हो गया।
✔ लेकिन एक बिंदु शेष रह गया, और वही उसकी मृत्यु का कारण बना।
🔹 सारांश एवं शिक्षा
✅ पहले बनती है तकदीर, फिर बनता है शरीर।
✅ कर्म हमारे हाथ में हैं, लेकिन उसका फल हमारे नियंत्रण में नहीं है।
✅ गीता (अध्याय 11, श्लोक 33) में श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं—
"उठ खड़ा हो और अपने कार्य द्वारा यश प्राप्त कर। यह सब मेरे द्वारा पहले ही मारे जा चुके हैं, तू केवल निमित्त बना है।"
✅ होनी को टाला नहीं जा सकता, लेकिन पुण्य कर्म और ईश्वर-नाम जप से उसके प्रभाव को कम किया जा सकता है।
✅ रोग आएंगे, परंतु यदि पुण्य कर्म किए जाएं तो पीड़ा नहीं होगी।
👉 इसलिए अहंकार से बचना चाहिए और भाग्य एवं ईश्वर की शक्ति को स्वीकार करना चाहिए।