Mahashivratri: महाशिवरात्रि की व्रत-कथा

Sooraj Krishna Shastri
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Mahashivratri: महाशिवरात्रि की व्रत-कथा
Mahashivratri: महाशिवरात्रि की व्रत-कथा


Mahashivratri: महाशिवरात्रि की व्रत-कथा

भूमिका

एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से पूछा—
"ऐसा कौन-सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत-पूजन है, जिससे मृत्यु लोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं?"

उत्तर में भगवान शिव ने 'शिवरात्रि व्रत' का महत्व बताते हुए यह कथा सुनाई।


कथा

शिकारी का जीवन और ऋण बंधन

एक गाँव में एक शिकारी रहता था, जो पशुओं का शिकार कर अपने परिवार का पालन-पोषण करता था। वह एक साहूकार का ऋणी था, परंतु समय पर ऋण चुका न सका। क्रोधित होकर साहूकार ने उसे शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोगवश, वह दिन शिवरात्रि का था।

शिवमठ में रहते हुए शिकारी ने शिव संबंधी धार्मिक वार्तालाप सुने और चतुर्दशी के दिन शिवरात्रि की कथा भी सुनी। संध्या होते ही साहूकार ने उसे बुलाया और ऋण चुकाने की बात की। शिकारी ने अगले दिन ऋण लौटाने का वचन दिया, जिससे वह बंधन से मुक्त हो गया।


बेलवृक्ष पर पड़ाव और अनजाने में शिव पूजन

बंदीगृह में दिनभर भूखे-प्यासे रहने के कारण शिकारी अत्यंत व्याकुल था। वह शिकार के लिए जंगल की ओर चला गया और एक तालाब के किनारे स्थित बेलवृक्ष पर पड़ाव बनाने लगा। वृक्ष के नीचे शिवलिंग स्थित था, किंतु शिकारी इससे अनजान था।

वह जैसे-जैसे टहनियाँ तोड़ता गया, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरती गईं। इस प्रकार उसका उपवास भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र अर्पण भी हो गए


पहली मृगी—गर्भवती होने का विनम्र निवेदन

रात्रि के प्रथम प्रहर में एक गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पीने आई। शिकारी ने जैसे ही धनुष पर तीर चढ़ाया, मृगी ने विनती की—
"मैं गर्भवती हूँ और शीघ्र ही प्रसव करूँगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो उचित नहीं है। मैं अपने बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही लौट आऊँगी, तब तुम मुझे मार लेना।"

शिकारी ने उसकी बात मानकर उसे जाने दिया।


दूसरी मृगी—अपने प्रिय से मिलने की याचना

कुछ समय बाद दूसरी मृगी वहाँ आई। शिकारी ने धनुष पर बाण चढ़ाया, किंतु मृगी ने प्रार्थना की—
"मैं अभी-अभी ऋतु से निवृत्त हुई हूँ और अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूँ। मुझे अपने पति से मिल लेने दो, फिर मैं तुम्हारे सामने उपस्थित हो जाऊँगी।"

शिकारी ने उसे भी जाने दिया।


तीसरी मृगी—मातृत्व का करुण निवेदन

रात्रि के अंतिम प्रहर में एक मृगी अपने बच्चों के साथ आई। शिकारी ने तुरंत तीर चलाने की ठानी, परंतु मृगी बोली—
"हे पारधी! जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, वैसे ही मुझे भी। मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर शीघ्र लौटूँगी। कृपया मुझे कुछ समय दो।"

मृगी की दीनता देखकर शिकारी ने उसे भी जीवनदान दिया।


मृग का आगमन और शिकारी का हृदय परिवर्तन

प्रातः होने को आई। तभी एक हृष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते से आया। शिकारी को लगा कि यह शिकार हाथ से नहीं जाने देना चाहिए। उसने धनुष पर बाण चढ़ाया, तभी मृग विनम्र स्वर में बोला—
"हे पारधी भाई! यदि तुमने मेरी पत्नियों को मार डाला है, तो मुझे भी शीघ्र मार दो, ताकि मैं उनके वियोग में अधिक कष्ट न सहूँ। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है, तो मुझे भी जाने दो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे सामने उपस्थित हो जाऊँगा।"

मृग की बात सुनते ही शिकारी की आँखें खुल गईं। पूरी रात की घटनाएँ उसके मन-मस्तिष्क में घूम गईं। उसने मृग को पूरी कथा सुनाई।

मृग ने उत्तर दिया—
"मेरी तीनों पत्नियाँ यदि प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, तो मेरी मृत्यु से वे अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएँगी। जैसे तुमने उन्हें जाने दिया, वैसे ही मुझे भी जाने दो। हम सब शीघ्र ही तुम्हारे सामने उपस्थित होंगे।"


शिव कृपा से शिकारी का अंतःकरण शुद्ध

रात्रि जागरण, उपवास, और शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने के प्रभाव से शिकारी का हृदय निर्मल हो गया। उसमें भगवद् शक्ति का वास हो गया। उसके हाथ से धनुष-बाण स्वतः गिर पड़े। वह अपने अतीत के पापों को याद कर पश्चाताप की अग्नि में जलने लगा।

कुछ ही देर में मृग अपने परिवार सहित शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया। किंतु उनकी सत्यनिष्ठा, सात्विकता और पारिवारिक प्रेमभावना देखकर शिकारी का मन करुणा से भर गया।

उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। उसने सदैव के लिए हिंसा का त्याग कर दिया और कोमल व दयालु हृदय वाला बन गया।


देवताओं की कृपा और मोक्ष प्राप्ति

इस अद्भुत घटना को देव समाज देख रहा था। जैसे ही शिकारी ने अहिंसा और दया का मार्ग अपनाया, समस्त देवताओं ने पुष्प वर्षा की। भगवान शिव की कृपा से शिकारी तथा मृग परिवार को मोक्ष की प्राप्ति हुई।


शिवरात्रि व्रत का महत्त्व

भगवान शिव ने माता पार्वती से कहा—
"हे देवी! शिवरात्रि का व्रत परम मंगलकारी है। जो कोई इस व्रत को श्रद्धा और भक्ति से करता है, वह सहज ही मेरी कृपा प्राप्त कर लेता है और अंत में मोक्ष को प्राप्त होता है।"


उपसंहार

इस कथा से हमें भक्ति, उपवास, सत्य, अहिंसा और दया के महत्व का बोध होता है। शिवरात्रि के व्रत के प्रभाव से सबसे कठोर हृदय भी कोमल हो सकता है और अंततः परमात्मा की कृपा प्राप्त कर सकता है।

हर-हर महादेव!


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