भागवत कथा: दत्तात्रेय के 24 गुरुओं की कथा

Sooraj Krishna Shastri
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भागवत कथा: दत्तात्रेय के 24 गुरुओं की कथा
भागवत कथा: दत्तात्रेय के 24 गुरुओं की कथा

भागवत कथा: दत्तात्रेय के 24 गुरुओं की कथा

श्रीमद्भागवत 11.07.32-35 में अवधूत ब्राह्मण (भगवान दत्तात्रेय) कहते हैं—

श्रीब्राह्मण उवाच
सन्ति मे गुरवो राजन्बहवो बुद्ध्युपश्रिताः।
यतो बुद्धिमुपादाय मुक्तोऽटामीह तान्शृणु ॥३२॥

पृथिवी वायुराकाशमापोऽग्निश्चन्द्र मा रविः।
कपोतोऽजगरः सिन्धुः पतङ्गो मधुकृद्गजः ॥३३॥

मधुहा हरिणो मीनः पिङ्गला कुररोऽर्भकः।
कुमारी शरकृत्सर्प ऊर्णनाभिः सुपेशकृत् ॥३४॥

एते मे गुरवो राजन्चतुर्विंशतिराश्रिताः।
शिक्षा वृत्तिभिरेतेषामन्वशिक्षमिहात्मनः ॥३५॥

कथा

राजा यदु ने देखा कि एक ब्राह्मण पूर्ण संतुष्ट, निःस्पृह और आनंदमग्न होकर विचरण कर रहा है। जब उन्होंने इसका कारण पूछा, तो ब्राह्मण ने बताया कि उन्होंने 24 गुरुओं से शिक्षा प्राप्त की है।

1. पृथ्वी

पृथ्वी सहनशील और उदार है। मनुष्य को चाहिए कि वह दूसरों के दुर्व्यवहार को सहन करे और बदले में भलाई करे।

2. वायु

वायु निर्लिप्त होकर बहती है। योगी को भी संसार में रहते हुए निर्लिप्त रहना चाहिए।

3. आकाश

आकाश सर्वव्यापी है, फिर भी किसी से बंधा नहीं। आत्मा भी वैसे ही स्वतंत्र होनी चाहिए।

4. जल

जल निर्मल और शुद्ध करता है। साधु का जीवन भी ऐसा ही होना चाहिए, जिससे अन्य लोग भी शुद्ध हों।

5. अग्नि

अग्नि तेजस्वी और पवित्र होती है। साधु को भी तपस्या द्वारा अपने भीतर ऐसा तेज उत्पन्न करना चाहिए।

6. चंद्रमा

चंद्रमा घटता-बढ़ता दिखता है, परंतु असल में वैसा नहीं होता। आत्मा भी शरीर के परिवर्तन से प्रभावित नहीं होती।

7. सूर्य

सूर्य जल को सोखकर पुनः बरसाता है, परंतु स्वयं निर्मल रहता है। ज्ञानी भी संसार से ज्ञान ग्रहण कर उसे पुनः लोगों में वितरित करता है।

8. कपोत (कबूतर)

एक कबूतर अपने परिवार से अत्यधिक मोह के कारण शिकारी के जाल में फंस गया। इसने सिखाया कि अत्यधिक मोह बंधन का कारण बनता है।

9. अजगर

अजगर परिश्रम नहीं करता, फिर भी जो प्राप्त होता है, उसी में संतुष्ट रहता है। वैरागी को भी यही सीखना चाहिए।

10. समुद्र

समुद्र बाहर से शांत दिखता है, लेकिन भीतर अथाह गहराई होती है। योगी को भी अंतर्मुखी होकर गहन शांति रखनी चाहिए।

11. पतंगा

पतंगा प्रकाश की ओर आकर्षित होकर जलकर मर जाता है। यह सिखाता है कि इंद्रियों के असंयम से नाश हो जाता है।

12. मधुमक्खी

मधुमक्खी फूलों से थोड़ा-थोड़ा रस लेकर शहद बनाती है। इसी प्रकार, साधक को विभिन्न शास्त्रों से सार ग्रहण करना चाहिए।

13. गज (हाथी)

हाथी कामना में फंसकर शिकारी द्वारा पकड़ा जाता है। यह सिखाता है कि वासना में फंसना पतन का कारण बनता है।

14. मधुहा (मधु लूटने वाला)

मधुहा (भौंरा) मधुमक्खी के परिश्रम का सारा शहद ले जाता है। इसी प्रकार, मनुष्य को धन का अत्यधिक संग्रह नहीं करना चाहिए।

15. मृग (हिरण)

हिरण मधुर संगीत के कारण फंस जाता है। यह सिखाता है कि असावधानी से इंद्रियों का मोह बंधन का कारण बनता है।

16. मीन (मछली)

मछली कांटे में लगे चारे के लोभ में फंस जाती है। यह बताता है कि जिह्वा का असंयम विनाश का कारण बनता है।

17. पिंगला

वेश्या पिंगला एक रात ग्राहक की प्रतीक्षा में निराश हो गई और अंततः परमात्मा में शांति पाई। यह सिखाता है कि सांसारिक आशाएं दुःख का कारण हैं।

18. कुरर (गिद्ध)

गिद्ध मांस का टुकड़ा ले जाने पर दूसरे पक्षी उसे परेशान करते हैं। जब वह टुकड़ा छोड़ देता है, तो उसे शांति मिलती है। यह सिखाता है कि त्याग से सुख मिलता है।

19. अर्भक (बालक)

बालक चिंता-मुक्त और आनंद में रहता है। यह बताता है कि जो सांसारिक चिंता छोड़ देता है, वह सुखी रहता है।

20. कुमारी (कन्या)

एक कन्या के घर मेहमान आए, तो वह चुपचाप अकेले काम करने लगी ताकि चूड़ियों की आवाज़ न हो। इससे शिक्षा मिलती है कि एकाकी जीवन में शांति होती है।

21. शरकृत (बाण बनाने वाला)

बाण बनाने वाला इतना तन्मय था कि राजा के आने की भी उसे खबर नहीं हुई। यह सिखाता है कि साधना में एकाग्रता अति आवश्यक है।

22. सर्प

सर्प बिना घर बनाए रहता है। यह सिखाता है कि योगी को एक स्थान से दूसरे स्थान पर विचरण करना चाहिए।

23. ऊर्णनाभि (मकड़ी)

मकड़ी अपने जाले को स्वयं रचती और समेटती है। यह ब्रह्मा की सृष्टि और प्रलय की प्रक्रिया को दर्शाता है।

24. सुपेशकृत (भृंग)

भृंग (गुबरैला) किसी कीड़े को पकड़कर अपने छत्ते में बंद कर देता है, जिससे वह स्वयं भृंग बन जाता है। यह ध्यान और मनोवृत्ति के प्रभाव को दर्शाता है।

निष्कर्ष

इन 24 गुरुओं से दत्तात्रेय ने ज्ञान प्राप्त किया और संसार में निर्लिप्त रहते हुए आत्म-साक्षात्कार किया। यह कथा सिखाती है कि प्रकृति से सीखकर जीवन को सार्थक बनाया जा सकता है।

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